शादीशुदा जोड़े के बीच सेक्स होना रेप नहीं, भले जबरन किया जाए: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट

रायपुर
वैवाहिक संबंधों में रेप के आरोपी एक शख्स को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने गुरुवार को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि कानूनी रूप से शादी कर चुके दो लोगों के बीच यौन संबंध बनना भले ही जबरदस्ती की गई हो, रेप नहीं कहा जा सकता। हालांकि अदालत ने शख्स के खिलाफ अप्राकृतिक यौन संबंध की धारा 377 को बरकरार रखा है। उसके तहत शख्स के खिलाफ मामला जारी रहेगा। LiveLaw की रिपोर्ट के मुताबिक महिला ने अपने पति और सास-ससुर पर दहेज की मांग करने और घरेलू हिंसा के आरोप लगाए थे। इसके अलावा महिला ने आरोप लगाया था कि उसकी ओर से विरोध किए जाने के बाद भी पति जबरन अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता है।
इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एनके चंद्रवंशी ने कहा, ‘सेक्शुअल इंटरकोर्स या फिर पुरुष की ओर से ऐसी कोई क्रिया रेप नहीं कहलाएगी। बशर्ते पत्नी की उम्र 18 साल से अधिक हो।’ जज ने कहा कि इस मामले में शिकायतकर्ता महिला आरोपी शख्स की वैध रूप से पत्नी है। ऐसे में पति के द्वारा उससे यौन संबंध बनाया जाना रेप नहीं कहा जा सकता। भले ही यह जबरन या फिर उसकी उसकी मर्जी के बगैर ही किया गया हो। इसके साथ ही अदालत ने शख्स को सेक्शन 376 यानी रेप के आरोप से बरी कर दिया। हालांकि अब भी उस पर अप्राकृतिक संबंध बनाने, दहेज उत्पीड़न के आरोपों के तहत केस चलता रहेगा।
मैरिटल रेप की परिभाषा को लेकर रही है लंबी बहस
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का मैरिटल रेप को लेकर यह फैसला आने वाले मामलों के लिए नजीर हो सकता है। इसलिए इस फैसले को अहम माना जा रहा है। महिला अधिकार कार्यकर्ता लंबे समय से मैरिटल रेप को लेकर भी कानून बनाए जाने की मांग कर रहे हैं। हालांकि इसकी जटिलता को देखते हुए अब तक इस पर कोई सहमति बनती नहीं दिखी है। एक वर्ग का मानना है कि भारत जैसे परंपरावादी समाज में इस तरह का कानून एक नई समस्या खड़ी कर सकता है। इसके अलावा मैरिटल रेप कैसे तय होगा, इसे लेकर भी सवाल उठते रहे हैं।