संसद को ठप कर विपक्ष को कुचल कर ‘विपक्ष मुक्त भारत’ का नारा देने वाली ये मोदी सरकार ?

दुनिया भर के संसदीय इतिहास में सम्भवत: ऐसा उदाहरण ढूंढे से भी नहीं मिलेगा जो भारतीय संसद पेश कर रही है
दुनिया भर के संसदीय इतिहास में सम्भवत: ऐसा उदाहरण ढूंढे से भी नहीं मिलेगा जो भारतीय संसद पेश कर रही है। अमूमन सरकारें संसद को चलाती हैं और गतिरोध विपक्ष पैदा करता है। देश में इसके उलट हो रहा है। यह नरेन्द्र मोदी सरकार की देन है। यह उनका तीसरा कार्यकाल है लेकिन यह प्रवृत्ति और संसद के दोनों सदनों को चलाने का तरीका उनके नेतृत्व में बनी सरकारों ने पहले ही कार्यकाल से अख्तियार कर लिया था।
विपक्ष को कुचलने के लिये जानी जाने वाली भाजपा सरकार ने लोकसभा में कमजोर विपक्ष देखकर पहले से ही ठान लिया था कि विरोधी आवाज को सदनों के बाहर भी कुचला जायेगा, भीतर भी, हर जगह…। ऐलानिया तौर पर पहले ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ और बाद में ‘विपक्ष मुक्त भारत’ का नारा देने वाले मोदी और भाजपा ने संसद के बाहर येन केन प्रकारेण कांग्रेस समेत प्रतिपक्ष को या तो चुनावों में हराया या फिर उनकी निर्वाचित सरकारों को ललचाकर या डरा-धमकाकर गिराया। साथ ही दूसरी पार्टियों के नेताओं को दल में आयात किया। इसके समांतर सदन के भीतर विरोधी पार्टियों के सदस्यों को अपनी बात न कहने देने के लिये संख्या बल के जरिये भाजपा ने सारे हथकण्डे हथियाये, जिसमें से उसका लोकप्रिय हथियार है सदन को ही ठप करना। यहीं पर भारतीय संसद दुनिया भर की अन्य संसदों से अलग हो जाती है- एकदम अनूठी।
इस साल की जून के पहले सप्ताह में निकले लोकसभा चुनावों के नतीजों के जरिये तीसरी बार यानी मौजूदा सरकार बनाने में मोदी-भाजपा को कामयाबी मिल तो गयी लेकिन विपक्ष बेहद मजबूत हो कर लौटा। ये अप्रत्याशित नतीजे थे जिसने मोदी को दो अन्य दलों के समर्थन से सरकार बनाने के लिये मजबूर कर दिया। ये नतीजे मोदी पर अनेकानेक आरोपों की छाया में लड़े गये लोकसभा चुनाव के थे। इनमें प्रमुख थे- संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने की भाजपायी साजिश, जातिगत जनगणना, कारोबारी गौतम अदाणी को मोदी द्वारा अंधाधुंध लाभ पहुंचाना, मणिपुर में हिंसा व कुकी समुदाय पर अत्याचार, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन सहित निर्वाचन आयोग का पक्षपातपूर्ण रवैया, इलेक्टोरल बॉंड्स के जरिये भाजपा को लाभ आदि। इनमें से कई मामले ऐसे थे जो कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा सितम्बर 2022 से जनवरी 2023 तक (कन्याकुमारी से कश्मीर) और जनवरी 2024 से मार्च तक (मणिपुर से मुम्बई) निकलीं क्रमश: ‘भारत जोड़ो यात्रा’ तथा ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ के दौरान जोरदार ढंग से उठाये जा चुके थे। पिछले लोकसभा चुनाव के प्रचार के पहले इंडिया गठबन्धन बन चुका था जिसने इन सारे मुद्दों को एक जनविमर्श का रूप दिया।
यह तो सही है कि मोदी-भाजपा ने इन मुद्दों के बावजूद विजय पायी लेकिन माना गया कि इन्हीं मसलों ने भाजपा के 400 पार के मंसूबों पर पानी फेर दिया। यह भी सच है कि इन मुद्दों को लेकर विपक्ष, खासकर कांग्रेस ने जो हमले भाजपा और मोदी पर किये उसी का परिणाम रहा कि मोदी तेलुगु देसम पार्टी एवं जनता दल यूनाइटेड की बैसाखियों पर जा टिके। कमजोर होकर संसद में आये तीसरी मर्तबा के पीएम मोदी का इस बार सामना अपेक्षाकृत बड़े, मजबूत व अब तक एकजुट विपक्षी गठबन्धन से हो रहा है।
इंडिया ने कहानी वहीं से शुरू की जहां उसने लोकसभा के चुनावी अभियान के अंतिम दिन यानी प्रचार बन्द होने की शाम को छोड़ी थी। पहले की दोनों लोकसभाओं (2014 एवं 2019 की) में भाजपा बेहद ताकतवर थी, विशेषकर इसकी पूर्ववर्ती। इसलिये 10 वर्षों तक मोदी की दिलचस्पी कम से कम उतनी देर तक संसद के सदनों को चलाये रखने में होती थी जितनी देर वे विपक्ष की आलोचना कर सकें, कांग्रेस के पूर्ववर्ती शासनकाल की खामियां गिना सकें, नेहरू खानदान का अपमान कर सकें और अपने आप को अकेले ही सब पर भारी बतला सकें। अब लोकसभा का चेहरा दूसरा है। इसलिये अब भाजपा का लक्ष्य होता है कि संसद थोड़ी देर भी न चले। संसद की बैठकें प्रारम्भ होने पर जैसे ही प्रतिपक्ष अदानी के मुद्दे को लेकर हमलावर होता है; क्योंकि यह इस वक्त सबसे बड़ा मुद्दा है, सत्ता बेंच का नियोजित खेल होने लगता है।
हिंडनबर्ग की दो-दो रिपोर्टों में अदानी एवं उनके भाइयों की कारगुजारियों की बहुतेरी गाथाएं सामने आने के बाद हाल ही में सेबी अध्यक्ष माधवी बुच पर उंगलियां उठने से विपक्ष पहले दिन से आक्रामक है और इस बाबत गहन जांच संयुक्त संसदीय समिति द्वारा कराये जाने की मांग पर अड़ा हुआ है।
ऐसे में लोकसभा में सरकार का बचाव सदन के अध्यक्ष ओम बिरला कर रहे हैं तो राज्यसभा में सभापति जगदीप धनखड़। दोनों ने ही अदानी का नाम लेने पर अपने-अपने सदनों में पूरी पाबंदी लगा रखी है। लोकसभा हो या राज्यसभा- अदानी या रिलायंस के मालिक मुकेश अंबानी का नाम लेते ही उन वाक्यांशों को कार्यवाही से हटा दिया जाता है और सदस्यों को बोलने नहीं दिया जाता। बिरला-धनखड़ ने अदानी के नाम पर पिछली लोकसभा में कई दर्जन सदस्यों को निलम्बित कर दिया था। बिरला को इसका पुरस्कार दोबारा अध्यक्ष बनाकर दिया गया तो वहीं धनखड़ जो पदेन उप राष्ट्रपति हैं, एक पायदान ऊपर चढ़कर देश का सर्वोच्च पद पाने को लालायित हैं। इसलिये वे राज्यसभा में अदानी का नाम लेने से विरोधी सदस्यों को मना करते हैं पर जॉर्ज सोरोस का भाजपायी सदस्यों द्वारा उल्लेख करने से उन्हें गुरेज़ नहीं है। उनके खिलाफ इसलिये नाराज़ विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव ला रहा है। इस आड़ में सत्तारुढ़ दल ही संसद को ठप किये हुए हैं जो दुर्भाग्यपूर्ण तो है ही, संसदीय परम्परा के प्रतिकूल भी।