संभल का सच छिपाती ‘बटेंगे तो कटेंगे’का नारा देने वाली सत्तारुढ़ भाजपा सरकार !

अपनी पूर्व घोषणा के अनुसार कांग्रेस के नेता राहुल गांधी हिंसाग्रस्त संभल (उत्तर प्रदेश) जाने के लिये बुधवार की सुबह अपनी बहन व सांसद प्रियंका के साथ निकले तो थे
अपनी पूर्व घोषणा के अनुसार कांग्रेस के नेता राहुल गांधी हिंसाग्रस्त संभल (उत्तर प्रदेश) जाने के लिये बुधवार की सुबह अपनी बहन व सांसद प्रियंका के साथ निकले तो थे, लेकिन तकरीबन डेढ़ सौ किलोमीटर पहले ही गाजीपुर बॉर्डर पर उन्हें रोक दिया गया। उप्र पुलिस ने उन्हें आगे जाने की इजाज़त नहीं दी। पिछले दिनों वहां की शाही मस्जिद में सर्वेक्षण को लेकर जो हिंसा हुई थी, उसका सच छिपाने के लिये उप्र तथा केन्द्र की डबल इंजिन सरकार इतनी बेताब है कि वह यह भी भूल गयी कि राहुल अब केवल रायबरेली के सांसद या एक पार्टी विशेष के नेता ही नहीं है बल्कि वे लोकसभा में विपक्ष के नेता भी हैं। किसी घटना स्थल का दौरा करना उनका सिर्फ नैतिक कर्तव्य नहीं है वरन यह उनका संवैधानिक अधिकार भी है। यदि सरकार इस हद तक जाती है तो साफ है कि वह संभल का सच छिपाना चाहती है। सत्य के उजागर होने का डर साफ दिखाई पड़ता है।
उल्लेखनीय है कि जब कांग्रेस सांसद राहुल गांधी अन्य नेताओं व अपने काफिले के साथ दिल्ली-गाजीपुर सीमा पर पहुंचे तो वहां तैनात बड़े पुलिस बल ने उन्हें रोक दिया। राहुल की कोई भी बात नहीं मानी गयी और उन्हें आगे जाने की अनुमति नहीं मिली। उन्होंने इस आशय का प्रस्ताव तक दिया कि वे अकेले जाने के लिये तैयार हैं और उनके साथ चाहें तो पुलिस अधिकारी चल सकते हैं। उन्हें बार-बार इस बात की दुहाई दी गयी कि वहां जाने से माहौल और बिगड़ेगा। ‘ऊपर से ही उन्हें न जाने देने’ के आदेश के संकेत तो दिये गये लेकिन ऐसा कोई आदेश दिखाया नहीं गया। अंतत: राहुल-प्रियंका को लौट जाना पड़ा।
एक अदालती आदेश के बाद शाही मस्जिद का, जो तकरीबन 500 साल पुरानी है, भारतीय पुरातात्विक विभाग द्वारा 24 नवम्बर को सर्वेक्षण किया गया था। पहला सर्वे शांतिपूर्ण गुजरा लेकिन जब दूसरे चरण के सर्वे के लिये वज़ूखाना खाली कराया गया, तो शहर में हिंसा भड़क उठी थी। इसे शांत करने के नाम अल्पसंख्यकों के खिलाफ जुल्म होने के आरोप अनेक संगठनों तथा कई विपक्षी नेताओं ने लगाये हैं। सांसद डिम्पल यादव (समाजवादी पार्टी) का आरोप है कि राज्य में विधानसभा की 9 सीटों के लिये हुए उपचुनाव के मद्देनज़र भाजपा ने दंगे कराये। इसमें लगभग आधा दर्जन लोगों की पुलिस के गोली चालन से मौत हो गयी थी। अगर यह आरोप सही है तो इसका फायदा मिलता दिखा भी। भाजपा को 7 विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल हुई। उसी दौरान हुए महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान भी संभल मामले को भाजपा ने भुनाने की कोशिश की थी। उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पहले हरियाणा के विधानसभा चुनाव में प्रचार करते हुए ‘बटेंगे तो कटेंगे’ का जो नारा दिया था, उसे उन्होंने झारखंड के दूसरे तथा महाराष्ट्र के प्रचार-अभियान के दौरान संभल का दृष्टांत देते हुए दोहराया था। यह अलग बात है कि उसे महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार गुट) की ओर से यह कहकर खारिज कर दिया गया था कि ‘महाराष्ट्र में यह नारा नहीं चलेगा।’ संभल की प्रासंगिकता बनाये रखने तथा उसका हवाला देने में सहूलियत हो, इसके लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘एक हैं तो सेफ हैं’ का नारा दिया था।
बहरहाल, संभल की घटना को लेकर उप्र सरकार का कहना रहा है इस हिंसा के दोषी अल्पसंख्यक हैं। यदि ऐसा होना सच भी मान लिया जाये तब तो उप्र सरकार को सभी को संभल जाने देना चाहिये ताकि यह सत्य सामने आये। ऐसा वह इसलिये नहीं कर रही है क्योंकि वह जानती है कि सच्चाई कुछ और है। धर्म स्थलों से सम्बन्धित कोई विवाद स्वतंत्र भारत की धर्मनिरपेक्ष बुनियाद को हिला न सके इसलिये 1991 में उपासना स्थल अधिनियम बनाया गया था कि 1947 की स्थिति बरकरार रखी जायेगी। यानी कि जो धर्म स्थल जिस मज़हब के हैं वे उसी के बने रहेंगे। जहां तक रामजन्मभूमि का मामला था तो उसे अपवाद माना गया था क्योंकि वह पहले से न्यायाधीन था। जब से (2014 में) मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने सरकार बनाई है, तभी से उसके समर्थकों तथा कट्टर हिंदूवादियों का उत्साह आसमान पर है। वैसे तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक प्रमुख मोहन भागवत कहते हैं कि ‘ज़रूरी नहीं कि रोज किसी धर्म स्थल की खुदाई की जाये,’ लेकिन प्रति दिन देश की किसी न किसी मुस्लिम शासनकाल की इमारत के नीचे भाजपाइयों-संघियों या अनुषांगिक संगठनों से जुड़े लोगों को मंदिर या हिन्दू धर्म स्थल दिखलाई पड़ता है। यहां तक कि विश्वविख्यात ताजमहल परिसर में वे वहां कभी हनुमान चालीसा पढ़ते हैं या फिर जल चढ़ाते हैं। भारत के स्वतंत्र होने के बाद यह प्रावधान ऐसी ही उन्मादी घटनाओं को टालने के दृष्टिकोण से किया गया था ताकि विभिन्न धार्मिक मतों वाले इस देश में इन स्थलों पर विवाद न हों। संभल के बाद अब राजस्थान की एक निचली अदालत ने अजमेर की प्रसिद्ध ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की खुदाई के लिये भी आदेश पारित कर दिये हैं।
संभल में यदि लोगों से बात होती तो ऐसी ही कई बातें सामने आतीं। वहां की हिंसा को लेकर यदि वास्तविक तथ्य सतह पर आएंगे तो यह भी साफ हो जायेगा कि इस घटना के पीछे किनका हाथ है। साथ ही यह भी पता चल सकता है कि राज्य सरकार की उसमें क्या भूमिका रही है। सत्तारुढ़ भाजपा ऐसा नहीं चाहेगी। यह भी नहीं चाहेगी कि राहुल या अन्य लोग वस्तुस्थिति का जायजा लें। ऐसा हुआ तो वह बेनकाब हो जायेगी।