महाराष्ट्र

देवेंद्र फडणवीस ने कभी आलाकमान का निर्देश माना था, शिंदे तो खुद ही आलाकमान हैं, चैलेंज शुरू होता है अब

 देवेंद्र फडणवीस ने एकनाथ शिंदे को साथ लाकर शपथ तो ले ली, लेकिन असली चैलेंज अब उनके सामने है. क्‍योंक‍ि फडणवीस को हर बात के ल‍िए आलाकमान के पास जाना है, जबक‍ि शिंदे को क‍िसी से निर्देश नहीं लेना. ऐसे में आगे की राह आसान नहीं होने वाली.

 

नई दिल्ली

कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि देवेंद्र देश को नागपुर का उपहार हैं. ऐसा सुनकर कोई भी उनके राजनीतिक भविष्य पर खयाली पुलाव पका सकता है. तो पकने शुरू भी हो गए थे. चर्चा लुटियन दिल्ली तक में चल रही थी कि देवेंद्र फडणवीस भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष हो सकते हैं. लेकिन फडणवीस बार-बार कहते रहे कि मुंबई का विकेट उन्हें भाता है. बैटिंग तो वहीं करेंगे. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों ने इसे साबित किया. 32 साल के राजनीतिक करियर में 54 साल के देवेंद्र ने बीजेपी को छोटे-बड़े भाई की लड़ाई से काफी ऊपर पहुंचा दिया. एक लीकर खींच दी. जो 2019 में भी खींची गई थी. तब बालासाहेब ठाकरे के उत्तराधिकारी उद्धव ठाकरे ने इसे मानने से इनकार कर दिया था. पता नहीं वो किस गुप्त मीटिंग में दिए गए वादे को दोहराते रहे. कभी शिवसेना की परछाईं में रही बीजेपी आज 288 सीटों में 132 सीटें अपने बूते जीत कर इस बहस से काफी आगे निकल चुकी है. कोई शक नहीं, अगर कुछ और सीटों पर लड़ी होती तो रूठने-मनाने का दौर भी नहीं चलता. लेकिन मोदी लहर यानी 2014 में मिली सत्ता का टेस्ट अलग था. इस बार महायुति के बैनर तले कहीं ज्यादा बड़ा बहुमत है. लेकिन सत्ता का टेस्ट कुछ और होगा.

संकेत तो 23 नवंबर और पांच दिसंबर के बीच ही दिख गए. पट‍िदार से जब अन-बन होती है तो क्या होता है. हमारे यहां पंचैती (पंचायत) बुलाकर गिले शिकवे दूर कराए जाते हैं. भोज-भात में आना-जाना शुरू हो जाता है. लेकिन एक इंच की लड़ाई भी जो हार गया हो उसके मन की टीस नहीं जाती. वो आज भी दिखाई दे रही थी. आजाद मैदान की गो-धूलि बेला में. पानी उतरता देख किनारे पर घर मत बना लेना, मैं समंदर हूं लौट कर आऊंगा. कोई शक नहीं कि ऐसा ही एहसास महाराष्ट्र के किंग देवेंद्र फडणवीस के चेहरे से महसूस हो रहा था. अजित दादा तो कल से ही मौज में दिख रहे, जब तीनों एक साथ प्रेस से मिले. लेकिन बाल ठाकरे की विचारधारा को उद्धव ठाकरे से झपटने वाले एकनाथ शिंदे के चेहरे पर सस्पेंस था. भले ही कुछ मिनट पहले ही वो शपथ पर सस्पेंस खत्म कर चुके हों. राजनीति 360 डिग्री घूमती हुई देखना और उसका किरदार होने में कितना फर्क है, साफ नजर आ रहा था.

तो चैलेंज क्‍या?
तो देवेंद्र फडणवीस के लिए पहला चैलेंज यही है कि एकनाथ शिंदे को खुद की तरह समझाएं. जिस तरह के हाव-भाव के साथ वो 2022 में बगल की कुर्सी पर बैठे थे, वही काम शिंदे को करना है. अजित दादा तो बाद में कारवां के हिस्सा बने थे. पर यहां भी एक पेच तो है ही. तब आलाकमान की सलाह पर फडणवीस सरकार में बतौर डिप्टी सीएम शामिल हुए. यहां तो शिंदे खुद ही आलाकमान हैं. इसमें कोई शक नहीं कि शिंदे की कोशिश अपनी राजनीतिक जमीन को बढ़ाने की होगी. किसकी कीमत पर, ये आप समझ सकते हैं. इस दौरान सरकार में उनकी एक्टिव भागीदारी परसेप्शन के लिहाज से भी जरूरी है. ‘लड़की बहिन योजना’ अगर जीत की गारंटी बनी तो शिंदे को श्रेय देना ही पड़ेगा. अब अगले कुछ दिन फडणवीस का ट्रैवल टाइम भी बढ़ेगा क्योंकि पोर्टफोलियो फाइनल करना बाकी है.

 

मराठा रिजर्वेशन भी झाम
वोट परसेंट और मराठा रिजर्वेशन भी झाम है. बीजेपी को लोकसभा के लगभग बराबर वोट मिले. शिवसेना के तो घट गए. अजित पवार के बढ़ गए. ऐसे में अन्नासाहब पाटिल के सुसाइड के बाद मनोज जरांगे ने जो ज्वाला भड़काई है, उसे शांत करना ब्राह्मण सीएम के लिए बड़ा चैलेंज होगा. चतुर फडणवीस ने अपने पिछले टर्म में 16 परसेंट रिजर्वेशन देकर गैंबल किया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 50 परसेंट की संवैधानिक सीलिंग का हवाला देते हुए रद्द कर दिया. फिर गायकवाड़ आयोग और उसके बाद पिछड़ा आयोग से मराठाओं को शैक्षणिक और सामाजिक तौर पर पिछड़ा कहलवाया जा चुका है. इसी साल फरवरी में शिंदे सरकार ने बिल पारित कर दस परसेंट रिजर्वेशन देने का फैसला भी कर लिया, लेकिन मामला फिर कोर्ट के आंगन में है. कुनबी की तरह 28 परसेंट मराठा को ओबीसी में शामिल करने का मतलब है जमे जमाए वोट बैंक को नाराज करना. यहां फडणवीस की अग्नि परीक्षा होगी.

 

खजाने का भी ख्‍याल रखना होगा
फिर जिन कारणों से आप चुनाव जीतते हैं वो भी आपके लिए चैलेंज बनते हैं. लड़की बहिन योजना में अभी तो 1500 रुपए मिलते हैं. अब इसे 2100 रुपए किया जाएगा. तो खजाने का भी खयाल रखना है. नहीं तो हिमाचल बनने का खतरा है. महाराष्ट्र देश का सबसे अमीर राज्य है. लिहाजा रेवन्यू भी देता है. इस लिहाज से एक बैलेंस बनाना फडणवीस की बड़ी चुनौती होगी. चाहे वित्त विभाग अजित पवार के पास क्यों न हो.

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