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मोदी सरकार की सिस्टम की भेंट चढ़ते वैज्ञानिक

देश में कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप बढ़ने के लिए सरकार की नीतियों और उसकी लापरवाही को जिम्मेदार माना जा रहा है

देश में कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप बढ़ने के लिए सरकार की नीतियों और उसकी लापरवाही को जिम्मेदार माना जा रहा है। अनेक विशेषज्ञों ने इस बात को लेकर सरकार को आगाह किया था कि जिस लड़ाई को वह जीती हुई मान रही है, उसमें पलटवार होने पर संभलना मुश्किल होगा। लेकिन सरकार ने अपने अहंकार में किसी की नहीं सुनी। कुछ दिनों के सख्त लॉकडाउन के बाद जब अनलॉक की प्रक्रिया शुरु हुई, तो उसके साथ ही लापरवाही का दौर भी शुरु हो गया। इसमें केवल जनता को ही दोषी नहीं ठहराया जा सकता, सरकार ने भी हद दर्जे की ढिलाई बरती। जब लोगों ने देखा कि सरकार चुनाव करवा रही है, नेता बिना मास्क के रैलियां कर रहे हैं, सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं, खेल-तमाशे शुरु हो गए हैं, ढिंढोरा पीटा जा रहा है कि हमने कोरोना से लड़ाई जीत ली है, तो ऐसे में जनता से लापरवाही होनी ही थी।

इसलिए राजनैतिक कार्यक्रमों के साथ पारिवारिक कार्यक्रम भी पहले की तरह आयोजित होने लगे। इस दौरान खबरें आती रहीं कि कई देशों में कोरोना वायरस नए तरीके से लोगों को चपेट में ले रहा है। भारत में भी उसके पहुंचने और फैलने की आशंकाएं थीं, जिसकी जानकारी विशेषज्ञ सरकार को दे रहे होंगे। लेकिन अपने स्वार्थ में सरकार ने इन जानकारियों पर ध्यान नहीं दिया। अब इसका खामियाजा पूरा देश भुगत रहा है। सरकार की नाकामी की ओर अब भी उंगलियां उठाई जा रही हैं। लेकिन सरकार पर इसका कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा, अलबत्ता वैज्ञानिक सिस्टम की भेंट चढ़ते दिख रहे हैं। यही वजह है कि देश के जाने-माने विषाणु विज्ञानी शाहिद जमील ने भारतीय-सार्स-कोव-2-जीनोमिक्स कंसोर्टियम यानी आईएनएसएसीओजी के प्रमुख पद से इस्तीफा दे दिया है।

गौरतलब है कि आईएनएसएसीओजी देश के जीनोम अनुक्रमण कार्य का समन्वय करने वाला वैज्ञानिक सलाहकार समूह है। इस साल जनवरी में सार्स-कोव-2 वायरस और इसके कई रूपों के जीनोम अनुक्रमण को बढ़ावा देने और तेज करने के लिए इस वैज्ञानिक निकाय का गठन किया गया था। कंसोर्टियम ने देश भर से वायरस के नमूनों की जीन अनुक्रमण करने के लिए 10 प्रमुख प्रयोगशालाओं का एक नेटवर्क स्थापित किया था। कंसोर्टियम को शुरू में छह महीने का कार्यकाल दिया गया था, लेकिन बाद में विस्तार मिला। जीनोम अनुक्रमण कार्य पहले बहुत धीमी गति से प्रगति कर रहा था, लेकिन कंसोर्टियम के गठन के बाद इसने गति पकड़ी थी।

भारत के मौजूदा कोरोना संकट के पीछे  बी-1.617 वैरियंट का बड़ा हाथ माना जा रहा है, कंसोर्टियम ने मार्च की शुरुआत में ही सरकारी अधिकारियों को कोरोना वायरस के वैरियंट के बारे में आगाह किया था, लेकिन इस चेतावनी पर कितना ध्यान दिया गया, ये आज के हालात देखकर समझा जा सकता है। ये केवल एक उदाहरण है, इस तरह की और भी बातें अंदरखाने होंगी, जो शायद कभी बाहर न आ पाएं, लेकिन शायद ऐसी ही कई वजहों से शाहिद जमील जैसे वैज्ञानिक को अपने पद से हटने पर मजबूर होना पड़ा।

वैसे शाहिद जमील ने हाल ही में न्यूयॉर्क टाइम्स में एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने बताया था कि कोरोना से भारत में जो हालात पैदा हुए हैं, उनसे भारत किस तरह निपट सकता है। उन्होंने कोरोना संकट से निपटने के सरकार के उपायों पर कुछ सवाल भी उठाए थे साथ ही सरकार को नीतियां बनाने में अड़ियल रवैया छोड़ने की सलाह भी दी थी। लेख में डॉ. जमील ने आरोप लगाया था कि वैज्ञानिकों की डाटा आधारित बातें नहीं सुनी जातीं। उन्होंने लिखा था कोरोना से लड़ने के सभी उपायों में हमारे साथी वैज्ञानिकों ने बहुत सहयोग किया है।

लेकिन उन्हें साक्ष्य आधारित नीति निर्माण को लेकर बहुत अड़ियल प्रतिरोध झेलना पड़ रहा है। 30 अप्रैल को भारत के वैज्ञानिकों ने प्रधानमंत्री से अपील की थी कि उन्हें डाटा उपलब्ध कराया जाए, ताकि वो आगे के शोध, अनुमान और इस वायरस से निपटने के उपाय बता सकें। भारत में जब से महामारी बेकाबू हुई है, डाटा के आधार पर फैसला लेना भी इसकी बलि चढ़ गया है। डॉ. जमील ने लेख में लिखा था कि एक विषाणु विज्ञानी के तौर पर मैं पिछले साल से ही संक्रमण और टीकाकरण पर नजर बनाए हुए हूं। मेरा आकलन है कि कई वैरिएंट्स फैल रहे हैं। ये कोरोना की अगली लहर के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। डॉ. जमील ने ये भी कहा था कि ये समय बड़े पैमाने पर टीकाकरण करने का है। तेजी से टीकाकरण के जरिए ही कोरोना संक्रमण को रोका जा सकता है।

डाटा उपलब्ध कराने को लेकर डॉ.जमील ने जो आरोप लगाए हैं, कायदे से उसकी पूरी पड़ताल हो, तभी कोरोना की दूसरी लहर की जिम्मेदारी का ठीकरा सिस्टम के अमूर्त सिर की जगह सही लोगों पर फोड़ा जा सकेगा। लेकिन आज के भारत में यह काम नामुमकिन दिख रहा है। अभी सरकार के लिए शायद यही सुविधाजनक है कि शाहिद जमील जैसे लोग महत्वपूर्ण पदों पर न रहें और सरकार को मनमाने तरीके से काम करने मिल सके। हालांकि सरकार की यह सुविधा जनता के लिए जानलेवा साबित हो रही है।

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