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दोषियों की पेशी के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंस का उपयोग क्यों नहीं हो रहा?सुप्रीम कोर्ट का महाराष्ट्र गृह सचिव से सवाल

सुनवाई के दौरान जब अदालत ने राज्य के वकील से पूछा कि आरोपी को पेश क्यों नहीं किया गया तो वे कोई स्पष्टीकरण नहीं दे पाए। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश एक आरोपी द्वारा याचिका दायर करने के बाद आया।

 

नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के गृह सचिव को यह बताने का निर्देश दिया है कि अदालत में आरोपियों को सबूत दर्ज करने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाओं का उपयोग क्यों नहीं किया जा रहा है। जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने सचिव को इस संबंध में दो सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने को कहा है।

पीठ ने कहा, “महाराष्ट्र के गृह सचिव को एक हलफनामा दाखिल करना चाहिए कि सबूतों की रिकॉर्डिंग और आरोपियों की पेशी के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाओं का उपयोग क्यों नहीं किया जा रहा है? हलफनामे में यह भी बताना होगा कि महाराष्ट्र में ऐसी सुविधाएं मौजूद है भी या नहीं? हलफनामे में यह भी बताना पड़ेगा कि अदालतों और जेलों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा उपलब्ध करने के लिए कितनी राशि जारी की गई थी?”

सुनवाई के दौरान जब अदालत ने राज्य के वकील से पूछा कि आरोपी को पेश क्यों नहीं किया गया तो वे कोई स्पष्टीकरण नहीं दे पाए। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश एक आरोपी द्वारा याचिका दायर करने के बाद आया। आरोपी ने बताया था कि उसके मामले में सुनवाई 30 बार स्थगित की गई थी, क्योंकि उसे पेश ही नहीं किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश के स्कूलों की दयनीय स्थिति पर एनजीओ की याचिका खारिज की

सुप्रीम कोर्ट ने एक एनजीओ की ओर से मध्यप्रदेश के स्कूलों की दयनीय स्थिति को लेकर दायर की गई याचिका खारिज कर दी। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने एनजीओ को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर करने के लिए कहा। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय का रुख करने के लिए स्वतंत्र है। एनजीओ ने अपनी याचिका में खजुराहो जिले के पांच स्कूलों की जर्जर इमारतों सहित खराब स्थितियों को उजागर किया था।

वकील पर कोर्ट का समय बर्बाद करने पर एक लाख का जुर्माना लगाने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक

सुप्रीम कोर्ट ने वकील पर अदालत का कीमती समय बर्बाद करने के लिए एक लाख का जुर्माना लगाने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जवल भुइयां की पीठ ने नोटिस जारी करते हुए कहा कि क्या वकील महमूद प्राचा के खिलाफ उच्च न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणियों को हटाने की जरूरत है? पीठ ने नोटिस को लेकर नौ दिसंबर 2024 तक जवाब मांगा है। तब तक हाईकोर्ट के आदेश पर रोक रहेगी। प्राचा ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया, जिसने उन्हें एक याचिका दायर करने के लिए कीमती समय बर्बाद करने का दोषी माना था। उच्च न्यायालय ने कहा था कि प्राचा अपना कोट और बैंड पहनकर उपस्थित हुए थे और उन्होंने अदालत को यह बताए बिना बहस की थी कि मामला उनका व्यक्तिगत है। इसमें प्राचा पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था।

वकीलों को युवाओं को पर्याप्त वेतन देना चाहिए: सीजेआई चंद्रचूड़

देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि वकीलों अपने चैंबर में सीखने के लिए आने वाले युवाओं को पर्याप्त वेतन और मेहनताना देना चाहिए। एक साक्षात्कार के दौरान मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि कानूनी पेशा ऐसा है, जहां शुरुआती वर्षों में रखी गई नींव युवा वकीलों को उनके पूरे करियर में अच्छी स्थिति में रखती है। उन्होंने कहा कि हर पेशे में उतार-चढ़ाव आते हैं। शुरुआत में कानूनी पेशे में अपने पहले महीने के अंत में आप जो राशि कमाते हैं वह बहुत अधिक नहीं हो सकती है।  इसलिए पहली बार आने वालों को इसमें लगे रहने, कड़ी मेहनत करने और जो करते हैं उसके प्रति ईमानदार रहने के लिए प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि समान रूप से हमारी संरचना में भी बदलाव होना चाहिए। वकीलों को सीखना चाहिए कि उनके चैंबर में प्रवेश करने वाले युवा वकीलों को उचित वेतन और मेहनताना कैसे दिया जाए।

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