दिल्ली

मंत्री ने यूक्रेन से आ रहे भारतीय बच्चों से लगवाए मोदी जी ज़िंदाबाद के नारे, ज़्यादातर ने साध ली चुप्पी; एक लड़की बोली- अपने प्रयासों से सुरक्षित लौटे हम, सरकार न लूटे वाहवाही

यूक्रेन से लौटीं सोनाली ने मीडिया को बताया कि फंसे होने के दौरान सभी स्टूडेंट्स रोते थे। सरकार ने किसी तरह बॉर्डर पहुंचने के लिए कहा, पर हमें अंदाजा भी नहीं था कि वहां तक पहुंचना कितना कठिन होगा।

नई दिल्ली

युद्धग्रस्त यूक्रेन से भारत लाए जाने के लिए भारतीय वायुसेना के सी-17 ग्लोबमास्टर प्लेन में बैठे छात्र-छात्राएं। ऑपरेशन गंगा के तहत इन छात्रों को वतन वापस लाया जा रहा है।

केंद्रीय राज्य मंत्री अजय भट्ट ने संकटग्रस्त यूक्रेन से वतन वापसी करने वाले भारतीय छात्र-छात्राओं के सामने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर तारीफ की। यहां तक कि उन्होंने इन बच्चों से “मोदी जी जिंदाबाद” का नारा भी लगवाया। हालांकि, उनकी इस कोशिश पर बैच के अधिकतर बच्चों ने चुप्पी साध ली थी। इस बीच, देश लौटी एक लड़की ने मीडिया को बताया कि वे लोग अपने प्रयास से मुल्क आ पाए हैं। ऐसे में सरकार को वाहवाही नहीं लूटनी चाहिए।

दरअसल, भारतीय वायु सेना का जो चौथा विमान यूक्रेन में फंसे भारतीय स्टूडेंट्स को लेकर दिल्ली के नजदीक हिंडन एयरबेस आया था, उसमें छात्र-छात्राओं से मंत्री अजय भट्ट भी मुखातिब हुए थे। उन्होंने सभी का स्वागत करते हुए बताया था कि पीएम मोदी एक-एक घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए हैं।

गुरुवार सुबह भट्ट ने इस बातचीत के दौरान भारतीय वायु सेना के अधिकारियों की सराहना भी की। वैसे, उन्होंने अपने भाषण के अधिकतर हिस्से में पीएम मोदी के तारीफों के पुल बांधे।

उन्होंने आगे कहा, “अगर पीएम मोदी का नेतृत्व हमें न मिला होता, तो न जाने आज क्या स्थिति होती…।” लगभग पांच मिनट के अपनी पूरी स्पीच में उन्होंने साफ कहा कि बच्चों का जीवन मोदी जी के प्रयासों की वजह से बच पाया है और सब कुछ ठीक होगा। यह कहने के बाद उन्होंने भारत मां की जय और मोदी जी जिंदाबाद का नारा लगवाया था। देखें, पूरा वीडियोः

इस बीच, पश्चिमी यूक्रेन के हॉस्टल रूम और बंकर में फंसे 22 वर्षीय अनिमेष मिश्रा ने कहा, “यह इवैक्युएशन कैसे कहा जाएगा?” उन्होंने आगे बताया कि सरकार इसे एक इवैक्युएशन कह रही है, पर वह पश्चिमी हिस्से से लोगों को ला रही है, जो पहले से ही सुरक्षित हैं। जो लोग भी बॉर्डर तक पहुंचे हैं, वे अपने बलबूते पहुंचे हैं। वहां उनकी मदद के लिए कोई भी नहीं था।

मिश्रा उन सैकड़ों छात्रों में थे, जो 25 किमी पैदल चलकर Pesochin पहुंचे। शहर से निकलने के लिए वह रेलवे स्टेशन तक पहुंचना चाहते थे, पर उन्हें वहां तक के लिए कोई साधन नहीं मिला। उन्होंने बताया- भगदड़ जैसी नौबत थी।

वहीं, यूक्रेन से लौटी इवैनोफ्रैक्विस मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली छात्रा सोनाली ने अंग्रेजी न्यूज चैनल एनडीटीवी को बताया- मैं रोमानिया बॉर्डर से आई हूं। हम लोगों से कहा जाता था कि बत्तियां बंद रखनी हैं। हमने वहां पर मोबाइल की फ्लैश लाइट जलाकर खाना खाना पड़ा। सभी स्टूडेंट्स रो रहे थे। बंकर में जाने के लिए कहा जाता था, पर उन्हें ढूंढने में बड़ी समस्या होती थी। उसके बाद हमारी सरकार ने बॉर्डर बुलाया, पर हमें नहीं मालूम था कि वहां तक आना इतना कठिन हो जाएगा।

हालांकि, वह आगे बोलीं, “मैं यूक्रेन के लिए प्रार्थना करना चाहती हूं। हमें यूक्रेन बहुत प्यारा है। उसने हमें पढ़ाई कराई है। वहां के नागरिक बहुत अच्छे हैं। हमारी हर चीज में हमारी मदद की है। पर अब उनके साथ ये सब (रूसी हमले) हो रहा है। राष्ट्रपति जेलेंस्की अंत तक लोगों के साथ वहां खड़े हुए हैं। अगर यूक्रेनी लोग हार भी जाते हैं, तब वह उनके लिए जीत होगी।”

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