‘सरकार की रेवड़ी योजनाओं के खिलाफ याचिका देने वाले शख्स की सुरक्षा पर हो फैसला’, पुलिस आयुक्त से हाईकोर्ट
न्यायमूर्ति विनय जोशी और न्यायमूर्ति अभय मंत्री की खंडपीठ ने मंगलवार को कहा कि प्रत्येक नागरिक के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है।
मुंबई
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने शहर के पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया है कि वह कार्यकर्ता को सुरक्षा देने पर फैसला करे। दरअसल, यह कार्यकर्ता वही शख्स है, जिसने लड़की बहिन योजना सहित महाराष्ट्र सरकार की अनियमित रेबड़ी (चुनाव से पहले की जाने वाली मुफ्त योजनाओं की घोषणा) के खिलाफ याचिका दायर की थी।
‘प्रत्येक नागरिक के जीवन की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य’
न्यायमूर्ति विनय जोशी और न्यायमूर्ति अभय मंत्री की खंडपीठ ने मंगलवार को कहा कि प्रत्येक नागरिक के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है। पीठ ने नागपुर के पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया कि वह सामाजिक कार्यकर्ता अनिल वडपल्लीवार की उन अर्जियों पर तेजी से फैसला करें, जिनमें पुलिस सुरक्षा की मांग की गई है।
वडपल्लीवार ने यह दी थी याचिका
वडपल्लीवार ने राज्य सरकार द्वारा मुफ्त उपहारों के बांटने के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की थी। जनहित याचिका में मांग की गई है कि हाईकोर्ट जनता के एक विशेष वर्ग को रेबड़ी के रूप में राज्य द्वारा दी जा रही उदारता के बंटवारे को अवैध घोषित करे। दावा किया गया कि ऐसी योजनाएं मौलिक अधिकारों का हनन हैं और सरकारी खजाने पर इससे वास्तविक करदाताओं पर वित्तीय बोझ बढ़ता है।
मैं अपने परिवार के जीवन को लेकर डरा हुआ हूं…
वडपल्लीवार ने अपने आवेदन में दावा किया कि जब से उन्होंने जनहित याचिका दायर की है तब से उन्हें समाज के विभिन्न वर्गों से नाराजगी मिल रही है। उन्होंने कहा, ‘राजनीतिक रैलियों और भाषणों में भी मेरे खिलाफ बातें बोली जा रही हैं। मैं अपने परिवार और अपने जीवन तथा स्वतंत्रता की सुरक्षा को लेकर डरा हुआ हूं। मैंने पुलिस के समक्ष दो आवेदन दायर कर सुरक्षा की मांग की थी, लेकिन इस मामले में कोई फैसला नहीं किया गया।’
हाईकोर्ट ने लगाई फटकार
इस पर हाईकोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा कि पुलिस आयुक्त को आवेदन पर गंभीरता से विचार करना चाहिए था और कानून के तहत निर्णय लेना चाहिए था। पीठ ने कहा, ‘इस बात पर कोई विवाद नहीं हो सकता है कि यह राज्य का कर्तव्य है कि वह प्रत्येक नागरिक के जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा करे। भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 ने उक्त संरक्षण को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी है।’