सुप्रीम कोर्ट: ‘उम्रकैद में छूट के लिए दो साल शालीन बर्ताव की शर्त संविधान के खिलाफ’; गुजरात HC का फैसला खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा में छूट के लिए दोषी को दो साल तक शालीनतापूर्ण व्यवहार करने की शर्त को स्पष्ट रूप से मनमाना बताते हुए खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा, यह बहुत अस्पष्ट, व्यक्तिपरक और संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। गुजरात हाईकोर्ट ने यह शर्त लगाई थी।
उच्चतम न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा में छूट के मामले में बड़ा फैसला सुनाया। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 432 की उपधारा (1) में मिली शक्ति का प्रयोग करते हुए ऐसी अस्पष्ट शर्त लगाने से कार्यपालिका के हाथ में अपनी मर्जी से छूट को रद्द करने का एक औजार मिल जाएगा। इसलिए, ऐसी शर्त मनमानी है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के अंतर्गत आएगी। पीठ ने कहा है कि छूट देने या न देने का फैसला सभी संबंधित पक्षों के लिए अच्छी तरह से सूचित, उचित और निष्पक्ष होना चाहिए।
पीठ ने कहा, कोई दोषी अधिकार के तौर पर छूट की मांग कभी नहीं कर सकता। हालांकि, उसे यह दावा करने का अधिकार है कि छूट देने के उसके मामले पर कानून और सरकार की लागू नीति के अनुसार विचार किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा, अगर लगाई गई शर्तें मनमानी हैं तो अनुच्छेद 14 के उल्लंघन के कारण इन्हें दोषपूर्ण माना जाएगा। ऐसी मनमानी शर्तें संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दोषी के अधिकारों का उल्लंघन कर सकती हैं।
संज्ञेय अपराध छूट आदेश को रद्द करने का नहीं हो सकता आधार
माफभाई मोतीभाई सागर की याचिका पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य शर्त भी स्पष्ट की। इसमें कहा गया था कि यदि अपीलकर्ता जेल से रिहा होने के बाद कोई संज्ञेय अपराध करता है या किसी नागरिक या संपत्ति को कोई गंभीर क्षति पहुंचाता है तो उसे फिर से गिरफ्तार किया जाएगा और उसे सजा की शेष अवधि जेल में काटनी होगी। पीठ ने कहा कि दोषी के विरुद्ध संज्ञेय अपराध का पंजीकरण, अपने आप में, छूट आदेश को रद्द करने का आधार नहीं है। पीठ ने कहा कि इस शर्त की व्याख्या ऐसे नहीं कर सकते कि इसके उल्लंघन का आरोप स्वतः ही छूट के आदेश को रद्द कर देगा।
शर्त उल्लंघन के आरोपों को प्रमाणित करने के लिए सामग्री होनी चाहिए
पीठ ने कहा, मामूली उल्लंघन छूट को रद्द करने का आधार नहीं हो सकता। उल्लंघन के आरोपों को प्रमाणित करने के लिए कुछ सामग्री अवश्य होनी चाहिए। इसकी गंभीरता के आधार पर कार्रवाई की जा सकती है। अदालत ने यह भी कहा कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किए बिना, कारण बताओ नोटिस जारी किए बिना और सुनवाई का अवसर दिए बिना छूट रद्द करने की कठोर शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता। इसे संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दोषी की ओर से चुनौती भी दी जा सकती है।
शालीन या शालीनता जैसे शब्द किसी कानून में परिभाषित नहीं
पीठ ने यह भी बताया कि शालीन या शालीनता जैसे शब्दों को सीआरपीसी या किसी अन्य समान कानून में परिभाषित नहीं किया गया है। कोर्ट ने कहा, हर इंसान की शालीनता की अवधारणा अलग-अलग हो सकती है। शालीनता का विचार समय के साथ बदलता रहता है। चूंकि शालीनता शब्द को सीआरपीसी या किसी अन्य समान कानून में परिभाषित नहीं किया गया है, इसलिए हर व्यक्ति या अधिकारी इसकी अलग-अलग व्याख्या कर सकता है। इसलिए, छूट देते समय ऐसी शर्त बहुत व्यक्तिपरक हो जाती है।