गौरी लंकेश की हत्या के अभियुक्तों को ज़मानत मिलने पर सम्मानित करने का क्या है मामला?

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पत्रकार और एक्टिविस्ट गौरी लंकेश की हत्या के दो अभियुक्तों के ज़मानत पर रिहा होने के बाद विजयपुरा के एक मंदिर में माला पहनाकर दोनों को सम्मानित किया गया.
दोनों अभियुक्तों परशुराम वागमोरे और मनोहर यादवे को विजयपुरा ज़िले से गिरफ्तार किया गया था. अदालत ने दोनों अभियुक्तों और छह अन्य अभियुक्तों को शुक्रवार को ज़मानत दी थी.
पांच सितंबर 2017 को गौरी लंकेश की हत्या उनके घर के बाहर गोली मारकर की गई थी, जिसके बाद बेंगलुरु पुलिस के विशेष जांच दल (एसआईटी) ने मामले की जांच की थी.
एसआईटी की जांच में सामने आया कि गौरी लंकेश की हत्या का संबंध तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर, सीपीआई नेता गोविंद पानसरे और स्कॉलर एमएम कलबुर्गी की हत्या से भी है
श्रीराम सेना के ज़िला अध्यक्ष नीलकांत कंडगल ने बीबीसी हिंदी को बताया, ”वो हिंदू कार्यकर्ता हैं. ज़मानत पर रिहा हुए थे, इसलिए हमने उनका स्वागत फूल और मालाओं से किया. हमने कालिका मंदिर में पूजा की और प्रार्थना की कि वे अदालत से बरी हो जाएं.”
मंदिर पहुंचने से पहले परशुराम वागमोरे और मनोहर यादवे ने विजयपुरा शहर के शिवाजी सर्किल पर शिवाजी महाराज की प्रतिमा पर माला चढ़ाई.
दोनों को मंदिर के अंदर समर्थकों की मौजूदगी में नीलकांत कंडगल और अन्य लोगों ने सम्मानित किया. इस मौके पर मीडिया को आने की अनुमति नहीं दी गई और न ही कोई जानकारी दी गई.
‘बलात्कारियों को माला पहनाई जा रही है’
गौरी लंकेश की बहन और इस मामले की शिकायतकर्ता कविता लंकेश ने बीबीसी हिंदी से कहा, “बलात्कारियों को माला पहनाई जा रही है और इन लोगों को बधाई दी जा रही है. हमारा समाज कहां पहुंच गया है?”
कविता का इशारा गोधरा कांड के बाद भड़की सांप्रदायिक हिंसा की शिकार बिलकिस बानो के सामूहिक बलात्कार के दोषियों को दी गई रिहाई और बधाई की ओर था.
सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की रिहाई को रद्द करते हुए उन्हें सज़ा काटने के लिए वापस जेल भेज दिया था.
हालांकि, नीलकांत कंडगल ने कहा, “हमारा मानना है कि वे इस मामले में शामिल नहीं हैं. वे निर्दोष हैं.”
ज़मानत की क्या है वजह?
इस मामले के 18 अभियुक्तों में से 16 को ज़मानत मिलने का मुख्य कारण ट्रायल में देरी थी. चार्जशीट में दर्ज 527 गवाहों में से अब तक लगभग 140 से पूछताछ की जा चुकी है और निकट भविष्य में मुक़दमे के पूरा होने की कोई संभावना नहीं है.
कर्नाटक हाई कोर्ट ने मोहन नाइक उर्फ संपांजे को ज़मानत दे दी थी, लेकिन अभियोजन पक्ष ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था.
इसके बाद केटी नवीन कुमार, अमित दिगवेकर और सुरेश एचएल को भी जुलाई 2024 में हाई कोर्ट से ज़मानत मिली. इसके बाद भरत कुमार, श्रीकांत पंगारकर, सुजीत कुमार और सुधाना गोंधकर को सितंबर, 2024 में ज़मानत मिली.
पिछले हफ़्ते सेशन कोर्ट ने वागमोरे और यादवे सहित आठ अभियुक्तों को ज़मानत दी थी. ज़मानत पाने वाले अन्य लोगों में अमित काले, राजेश डी बंगेरा, वासुदेव सूर्यवंशी, रुशिकेश देवदार, गणेश मिस्किन और अमृत रामचंद्र बद्दी शामिल हैं.
विकास पटेल उर्फ दादा उर्फ निहाल अभी भी फरार है. दो अन्य लोगों ने अभी तक अदालत का रुख नहीं किया है.
अभियुक्तों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), भारतीय शस्त्र अधिनियम और कर्नाटक संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम के प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए हैं.
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अभियुक्तों के सम्मान पर ये प्रतिक्रिया आई
हरमिंदर कौर के ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर सम्मान समारोह का वीडियो संलग्न करते हुए लिखा “गौरी लंकेश के हत्यारों को ज़मानत मिल गई. हत्यारों का खुलेआम हिंदू संगठनों ने स्वागत किया. यह बेहद घटिया है.”
अभिनेता प्रकाश राज ने एक्स पर एक अन्य पोस्ट में कहा, “इस देश में केवल हत्यारों और बलात्कारियों के लिए ज़मानत नियम है… शर्मनाक.”
लेकिन कार्यकर्ता और स्तंभकार शिव सुंदर पूरे मामले को अलग तरह से देखते हैं.
उन्होंने बीबीसी हिंदी से कहा, “सिद्धांत के तौर पर यह कहना सही है कि ट्रायल पूरा होने तक किसी भी आरोपी को जेल में नहीं रखा जाना चाहिए. समस्या यह है कि यह सिद्धांत बहुत भेदभावपूर्ण है.”
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उन्होंने कहा, “हालांकि यह उन लोगों पर लागू नहीं होता जो सरकार का विरोध कर रहे हैं, लेकिन यह दक्षिणपंथियों पर लागू होता है. किसी आरोपी को पूरी सुनवाई अवधि के लिए जेल में रखना मानवाधिकार सिद्धांत नहीं है. इसे दक्षिणपंथियों या वामपंथियों पर लागू नहीं किया जाना चाहिए.”
शिव सुंदर ने कहा, “हम तेज़ी से सुनवाई के लिए विशेष अदालत की मांग कर रहे हैं. अभियोजन पक्ष ने भी ट्रायल को जल्द पूरा करने के प्रयास में करीब 150 गवाहों को छोड़ने पर सहमति जताई है.”
“लेकिन बिलकिस बानो के मामले में जो हुआ, जिसमें आरोपियों का स्वागत किया गया और उन्हें माला पहनाई गई, वह भयानक है.”
वो कहते हैं, “गौरी के मामले में यह उनकी हत्या का जश्न मनाने जैसा है. यह 5 सितंबर 2017 को, जिस दिन उनकी हत्या हुई थी, उसे फिर से अनुभव करने जैसा है. यह भयानक है. समाज को यह संदेश देना खतरनाक है.”