राहुल गांधी ने मोदी सरकार को दिखाया आईना

लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के दौरान राहुल गांधी ने जो भाषण दिया, उसकी गिनती इस सदन में दिए गए प्रभावी भाषणों में होनी चाहिए।
लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के दौरान राहुल गांधी ने जो भाषण दिया, उसकी गिनती इस सदन में दिए गए प्रभावी भाषणों में होनी चाहिए। राहुल गांधी का भाषण पहली नजर में आलोचनात्मक लग सकता है, क्योंकि उन्होंने सरकार की आर्थिक नीति, विदेश नीति और गृह नीति पर सवाल उठाए।
मगर असल में राहुल गांधी के इस भाषण में उस राजनीतिज्ञ की झलक मिल रही थी, जो भारत को और यहां की ऐतिहासिक उदारवादी परंपराओं को समझता है। राहुल गांधी ने साफ कहा कि राष्ट्रपति के भाषण में नौकरशाही की झलक मिल रही थी, लेकिन उसमें कोई दूरदर्शिता नहीं थी। इस देश की समस्याओं का, नौकरी मांगते नौजवानों का कोई जिक्र नहीं था। भारत में अमीरों और गरीबों के बीच बढ़ती खाई और दो उद्योग समूहों के लिए सरकारी खजाने को लुटाने की बात राहुल गांधी ने साफ-साफ कही। उन्होंने बताया कि किस तरह इतने बरसों में लाखों लोगों को गरीबी रेखा से बाहर लाया गया था, लेकिन मोदी सरकार में फिर लाखों लोग गरीब बन गए।
करोड़ों रोजगार चले गए। छोटे और मध्यम उद्योग ही रोजगार पैदा करते हैं। लेकिन इन पर ध्यान न देकर सरकार मेड इन इंडिया की बात करती है, जबकि एमएसएमई के बिना मेड इन इंडिया संभव ही नहीं है। राहुल गांधी ने यह भी कहा कि इतने बरसों में भारत की विदेश नीति पाकिस्तान और चीन को अलग-अलग रखने की थी, लेकिन सरकार की नाकाम विदेश नीति के कारण अब चीन और पाकिस्तान साथ आ गए हैं। जबकि भारत अलग-थलग पड़ गया है और नेपाल, बर्मा, श्रीलंका, अफगानिस्तान हर जगह घिरता जा रहा है। अपने लगभग पौन घंटे के भाषण में कुल मिलाकर राहुल गांधी ने मौजूदा शासन की सारी कमजोरियों को चिन्हित कर दिया। लेकिन उनकी सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि उन्होंने भारत के विचार की बात करते हुए सरकार को चेतावनी दी कि अगर सरकार ने इस विचार को नहीं समझा, भारत के इतिहास को नहीं समझा, तो यह घातक होगा।
राहुल गांधी ने कहा कि भारत राज्यों का संघ है, जो साझेदारी और परस्पर बातचीत से चलता है। यहां पूर्व में जिन शासकों ने राज किया, उन्होंने भी इसी तरह शासन किया। लेकिन अभी भारत को साम्राज्य की तरह चलाने की कोशिश हो रही है, जहां राजा किसी की आवाज नहीं सुन रहा। 1947 में कांग्रेस ने राजा और साम्राज्यवाद के विचार को तोड़ा, लेकिन अब वह वापस आ गया है। तमाम संस्थाओं पर हमले हो रहे हैं। एक खास संगठन ने भारत की संस्थाओं पर कब्जा कर लिया है। इस बात को कहते हुए राहुल गांधी ने अपने परिवार की कुर्बानियों का जिक्र किया और कहा कि इसलिए मैं इस थोड़ा बहुत समझता हूं।
अगर देश में एक दशक पहले तक नजर आने वाली सहिष्णुता कायम रहती, तो शायद राहुल गांधी के इस भाषण पर विपक्षी भी उन्हें बधाई देते और अखबारों, न्यू•ा चैनलों पर इस पर सकारात्मक विमर्श होता। लेकिन व्यक्तिवाद के जिस खतरे की ओर राहुल गांधी इशारा करने की कोशिश कर रहे थे, उसी की झलक इस भाषण के बाद सरकार समर्थक लोगों की ओर से आ रही प्रतिक्रियाओं में देखने मिली। राहुल गांधी को किस बात के लिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने टोका या मणिपुर के नेताओं के जूते अमित शाह के घर उतरवाने को राहुल गांधी ने गलत क्यों ठहराया, इस पर खबरें भी बनीं और चर्चाएं भी हुईं। भाजपा आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने तो राहुल गांधी को इस बात के लिए घेरा कि उन्होंने भारत को राज्यों का संघ बता दिया। अमित मालवीय इस बयान को समस्या पैदा करने वाला और खतरनाक बताते हुए लिखा कि राहुल गांधी को हमारे संविधान की समझ नहीं है। उन्होंने लिखा कि यह आजाद भारत के विचार पर भी हमला है। राहुल गांधी का दावा भारत के विघटन के बीज बो रहा है। कुछ इसी तरह के विचार भाजपा के अन्य नेताओं ने भी प्रकट किए।
शब्दों के इस खेल से भाजपा ने एक बार फिर भारत के विचार पर किए जा रहे गंभीर विमर्श को गुमराह करने की कोशिश की है। राहुल गांधी अपने पूरे भाषण में भारत की संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों को सहेजने की वकालत करते रहे। लेकिन भाजपा उसे विघटनकारी साबित करने में लग गई। जबकि भाजपा का यह विरोध संविधान के भी खिलाफ है। संविधान के पहले अनुच्छेद में ही भारत को परिभाषित किया गया है। इसमें लिखा है कि भारत, अर्थात इंडिया, राज्यों का संघ होगा। इसके बाद ही केंद्र और राज्यों के अधिकार, कार्यक्षेत्र, उनके बीच परस्पर संबंध आदि का वर्णन है। जो संविधान में लिखा है, राहुल गांधी ने उसी की याद संसद में दिलाई। और जिन लोगों ने संविधान की शपथ लेकर कार्यभार संभाला है, उन सबको इस बात से इत्तेफाक रखना चाहिए। मगर क्षुद्र राजनैतिक स्वार्थों के लिए संविधान की भावना को ताक पर रखा जा रहा है। भारत का चाटुकार मीडिया भी विपक्ष की भूमिका को गौण और हास्यास्पद बताने की कोशिश कर रहा है। लेकिन ये सारी कोशिशें अंतत: भारत और भारत की जनता के विरूद्ध ही साबित होंगी।
अपने खिलाफ हो रही ऐसी किसी भी कोशिश को नाकाम करने का एक ही तरीका है कि भारत के लोग संविधान का पाठ करें, उसे समझें और सरकार के फैसलों को संविधान की कसौटी पर परखें।