5 मिनट की देरी और CJI बनने से चूक गए जस्टिस कुलदीप सिंह, सुप्रीम कोर्ट में ‘खेल’ की वो कहानी

जस्टिस कुलदीप सिंह (Justice Kuldeep Singh), जस्टिस अहमदी से उम्र में भी बड़े थे. नियमों के मुताबिक चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की कुर्सी के दावेदार भी थे. लेकिन एक शख़्स ने उनका खेल बिगाड़ दिया था.
14 दिसंबर 1988 को सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की नियुक्ति एक साथ हुई. एक थे जस्टिस एएम अहमदी और दूसरे थे जस्टिस कुलदीप सिंह. दोनों साल 1932 में जन्में थे. हालांकि जस्टिस कुलदीप सिंह, जस्टिस अहमदी से दो महीने बड़े थे. जस्टिस अहमदी गुजरात हाई कोर्ट के जज थे, जबकि कुलदीप सिंह की नियुक्ति बार से सीधे बेंच में हुई. जस्टिस कुलदीप सिंह को पहले हाईकोर्ट की जजशिप ऑफर हुई थी, लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया था. उन दिनों सुप्रीम (Supreme Court of India) कोर्ट में रूल था कि अगर एक ही दिन हाईकोर्ट और बार से दो लोगों की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट में होगी तो बार वाले को सीनियर माना जाएगा. उसे शपथ भी पहले दिलाई जाएगी. आसान शब्दों में कहें तो नियमों के मुताबिक जस्टिस कुलदीप सिंह, जस्टिस अहमदी से सीनियर होते.
एडवोकेट अभिनव चंद्रचूड़ अपनी किताब ‘सुप्रीम व्हिसपर्स’ में लिखते हैं कि अगर नियुक्ति वाले दिन जस्टिस कुलदीप सिंह को सीनियर माना जाता तो वह अक्टूबर 1994 में जस्टिस वेंकटचलैया के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश बनते और दिसंबर 1996 में रिटायरमेंट तक इस पद पर रहते. उनके बाद जस्टिस अहमदी का नंबर आता. हालांकि उन्हें सीजेआई की कुर्सी बस कुछ महीने के लिए मिलती.
CJI ने जस्टिस कुलदीप सिंह से किया था वादा
सुप्रीम कोर्ट में अपॉइंटमेंट से कुछ महीने पहले अगस्त 1988 में कुलदीप सिंह के पास खुद सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस आरएस पाठक का फोन आया. CJI पाठक ने उनसे कहा कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया जा रहा है. साथ ही यह वादा भी किया कि उन्हें सबसे पहले शपथ दिलाई जाएगी. इसका मतलब यह था कि वो जस्टिस अहमदी से सीनियर होंगे, लेकिन ऐन मौके पर शपथ वाले दिन खेला हो गया.
14 दिसंबर को शपथ वाले दिन सरकार ने शपथ का क्रम ही बदल दिया. जस्टिस एएम अहमदी को जस्टिस कुलदीप सिंह से पहले शपथ दिला दी गई. इस तरह वह कागजों में सीनियर हो गए और जस्टिस कुलदीप सिंह उनके जूनियर. बस 5 मिनट के अंतर से जस्टिस कुलदीप सिंह सीजेआई की दौड़ से भी बाहर हो गए. अभिनव चंद्रचूड़ लिखते हैं कि जस्टिस अहमदी को पहले शपथ दिलाने का मतलब था कि अब वो अक्टूबर 1994 में जस्टिस वेंकटचलैया के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश होंगे और 1997 में अपने रिटायरमेंट तक इस पद पर रहेंगे. चूंकि जस्टिस कुलदीप सिंह उनसे पहले ही दिसंबर 1996 में रिटायर हो रहे थे, इसलिए उनके CJI बनने की संभावना पूरी तरह खत्म हो गई.
शपथ वाले दिन किसने किया था ‘खेल’
अभिनव चंद्रचूड़ लिखते हैं कि गुजरात के रहने वाले सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज जस्टिस एमपी ठक्कर की शपथ क्रम बदलवाने में अहम भूमिका थी. वह जस्टिस अहमदी के करीबी थे. जस्टिस कुलदीप सिंह और जस्टिस पाठक दोनों को लगता था कि जस्टिस ठक्कर ने सरकार को इनफ्लुएंस किया. शपथ का क्रम बदलने से जस्टिस कुलदीप सिंह इतने नाराज हुए कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की जजशिप से अपना नाम वापस लेने का मन बना लिया, हालांकि चीफ जस्टिस पाठक ने उन्हें किसी तरह मनाया.
जजमेंट में इस घटना पर तंज
बाद में जस्टिस कुलदीप सिंह ‘सेकेंड जजेस’ केस में अपने जजमेंट में इस वाकये का घुमा-फिराकर रेफरेंस दिया. अपने फैसले में लिखा, ‘सुप्रीम कोर्ट में जब दो सोर्सेस से जजों की नियुक्ति होती है तो किसी को नहीं पता होता कि सीनियॉरिटी का पैरामीटर क्या होगा. पहले बार से अपॉइंट जज को सीनियर माना जाता था, लेकिन फिर इस प्रक्रिया को रिवर्स कर दिया गया…’