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मोदी के शासनकाल में देश की बुनियाद पर हो रहेहैं प्रहार ! 1

महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलते हुए अहिंसा की नीति को अपनाना, नेहरूजी की गुटनिरपेक्ष नीति और संविधान में कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका इन तीनों के बीच स्पष्ट कार्य विभाजन और एक-दूसरे की सीमाओं का सम्मान, ये कुछ ऐसी विशिष्ट बातें हैं

महात्मा गांधी के आदर्शों पर चलते हुए अहिंसा की नीति को अपनाना, नेहरूजी की गुटनिरपेक्ष नीति और संविधान में कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका इन तीनों के बीच स्पष्ट कार्य विभाजन और एक-दूसरे की सीमाओं का सम्मान, ये कुछ ऐसी विशिष्ट बातें हैं, जिनके कारण भारत के लोकतंत्र की दुनिया में अलग पहचान बनी। आजादी के 75 साल बाद भी भारत का लोकतंत्र मजबूत बना हुआ है और इस पर हो रहे तमाम प्रहार विफल हुए हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि भारत को बनाने वालों ने दूरदृष्टि के साथ जो विचार भारत की जड़ों में रोपे थे वो अब मजबूती से लोकतंत्र की रक्षा कर रहे हैं। लेकिन मौजूदा केंद्र सरकार भारत की इस खासियत को चोट पहुंचाने में लगी है। बीते दिनों ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के घर गणपति पूजा में पहुंचे। विधायिका और कार्यपालिका से न्यायपालिका की एक सम्मानजनक दूरी होना चाहिए, लेकिन यहां वो दूरी मिटती दिखी।

श्री मोदी के शासनकाल में देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा का सदस्य बनाया गया, पूर्व राष्ट्रपति को एक देश, एक चुनाव समिति का मुखिया बनाया गया। अब मुख्य न्यायाधीश के घर की निजी पूजा में प्रधानमंत्री के पहुंचने से कई किस्म के सवाल खड़े हुए, लेकिन भाजपा को इसमें कुछ गलत नजर नहीं आ रहा। भाजपा को शायद इस बात में भी कोई आपत्ति नहीं है कि देश के राष्ट्रीय मुख्य सलाहकार अजित डोभाल रूस के राष्ट्रपति के सामने बैठकर उन्हें श्री मोदी के यूक्रेन दौरे की जानकारी दे रहे हैं। अब तक देश के प्रधानमंत्री विदेश दौरे से लौटते हुए ही प्रेस को अपनी यात्रा के बारे में बताते थे, ताकि उनके जरिए देशवासियों को पता चले कि हमारे प्रधानमंत्री ने किस देश में जाकर, क्या काम किया, जो हमारे लिए लाभकारी है। इसके बाद देश लौटने पर प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को अपनी यात्रा का ब्यौरा देते थे।

लेकिन दूसरे देश के राष्ट्रपति को इस तरह जानकारी देने का अर्थ क्या यह है कि भारत ने अपनी गुटनिरपेक्ष नीति और स्वतंत्र विदेश नीति को छोड़ दिया है। क्या अब भारत की संप्रभुता को इस तरह दांव पर लगाया जाएगा। श्री मोदी को अब यह भी स्पष्ट कर देना चाहिए कि यूक्रेन जाने से पहले क्या उन्होंने रूसी राष्ट्रपति पुतिन की अनुमति भी ली थी। अगर यूक्रेन जाने का फैसला श्री मोदी ने संप्रभु राष्ट्र का मुखिया होने के नाते लिया था, तो अब कौन सी मजबूरी में उन्हें एनएसए को रूस भेजकर सफाई देनी पड़ी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को यह भी बताना चाहिए कि विदेश मामलों में या दूसरे देशों पर कार्रवाई का फैसला अब उनके विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, केबिनेट इन सबकी सलाह से हो रहा है या भाजपा का कोई भी नेता इसके लिए बयान देने को अधिकृत है। क्योंकि त्रिपुरा में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने कहा है कि केवल ‘मुरली’ से काम नहीं चलेगा, बल्कि सुरक्षा के लिए ‘सुदर्शन’ भी आवश्यक है। इस बात का ध्यान रखना है कि विधर्मियों को अवसर नहीं देना है। बांग्लादेश जैसे स्थिति की पुनरावृत्ति यहां न होने पाए, इसके लिए ऐसी शक्तियों को हमें समाप्त करना है। हमें देश और धर्म को सुरक्षित रखना है। पाकिस्तान को मानवता का कैंसर और दुनिया का नासूर बताते हुए श्री योगी ने कहा जब तक पाकिस्तान का ऑपरेशन नहीं होगा, तब तक इलाज संभव नहीं है। पाकिस्तान का उपचार शुरू हो चुका है। अब पाक अधिकृत कश्मीर के लोग भारत में शामिल होना चाहते हैं। बलूचिस्तान भी पाकिस्तान से अलग होना चाहता है। क्या मोदी सरकार यह बता पाएगी कि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री पीओके और बलूचिस्तान को लेकर जो दावे कर रहे हैं, उनकी सच्चाई क्या है और पाकिस्तान का उपचार करने का मतलब क्या है। क्या भारत ने शांति की नीति को नकार दिया है।

मुरली के साथ सुदर्शन की बात करके आदित्यनाथ योगी ने सीधे तौर पर हिंसक विचारों का समर्थन किया है और ऐसे विचार केवल पाकिस्तान के लिए ही प्रकट नहीं हो रहे हैं। देश में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को दी जा रही धमकियां बता रही हैं कि विपक्ष के नेताओं के साथ हिंसा के लिए उकसाया जा रहा है। महाराष्ट्र में शिवसेना शिंदे गुट के विधायक संजय गायकवाड़ ने ऐलान किया है कि राहुल गांधी की ‘जीभ काटने वाले’ को 11 लाख रुपये का इनाम दिया जाएगा। श्री गायकवाड़ ने राहुल गांधी के अमेरिका में आरक्षण पर दिए बयान के बाद यह ऐलान किया है। उन्हें आपत्ति है कि श्री गांधी ने आरक्षण खत्म करने की बात कही, हालांकि यह सरासर झूठी बात है, क्योंकि राहुल गांधी ने आरक्षण खत्म करने से साफ इंकार किया है।

लेकिन उनकी चर्चा के वीडियो के एक अंश को ही गलत तरीके से फैलाया गया है। संजय गायकवाड़ साफ तौर पर फेक न्यूज का शिकार बने हैं, लेकिन उससे भी बढ़कर वे हिंसक विचारों से ग्रसित दिखाई दे रहे हैं, तभी उन्होंने बर्बर सोच को प्रदर्शित किया है। राहुल गांधी के विचारों से विरोध होने पर उसका तार्किक जवाब दिया जा सकता है, लेकिन हिंसात्मक तरीके से बदले का विचार जाहिर करता है कि बीते 10-11 बरसों में देश में नफरत और हिंसा लोगों में कूट-कूट कर भरी गई है। इससे पहले भाजपा के पूर्व विधायक तरविंदर सिंह मारवाह ने राहुल गांधी का हश्र उनकी दादी की तरह होने की बात कही थी और भाजपा सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने तो राहुल गांधी को नंबर एक आतंकी ही कह दिया।

अलग-अलग वक्त और स्थानों पर हुई ये तमाम घटनाएं साबित कर रही हैं कि न्याय, शांति, अहिंसा जैसे सद्विचारों के साथ बनाए गए भारत पर राजनैतिक विरोध के नाम पर प्रहार किए जा रहे हैं, जो असल में उसकी बुनियाद को उखाड़ने की कोशिश है। जनता पर अब यह जिम्मेदारी है कि वह ऐसे प्रहारों का विरोध करे और संवैधानिक मूल्यों और आदर्शों की रक्षा करे।

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