मेवाणी मामले में झूठी FIR कराने वाले का पता लगाने के लिए CBI जांच कराएं, चिदंबरम का CM हिमंत पर तंज

न्यायाधीश ने कहा कि उच्च न्यायालय असम पुलिस को मौजूदा मामले की तरह झूठी प्राथमिकी दर्ज करने, आरोपियों को गोली मारने या घायल करने वाले पुलिस कर्मियों को रोकने के लिए कदम उठाए जाने की जरूरत है।
नई दिल्ली
असम की एक अदालत ने गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी के खिलाफ झूठी FIR दर्ज करने के लिए राज्य पुलिस की खिंचाई की। इसे लेकर कांग्रेस के सीनियर नेता पी चिदंबरम ने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पर कटाक्ष किया। उन्होंने पूछा कि क्या सीएम CBI को यह पता लगाने का काम सौपेंगे कि वह व्यक्ति कौन था, जिसने प्राथमिकी दर्ज की।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए, चिदंबरम ने कहा कि अदालत ने पाया कि कोई भी समझदार व्यक्ति दो पुरुष पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में एक महिला पुलिस अधिकारी का शीलभंग करने की हिम्मत नहीं कर सकता और प्राथमिकी का कोई आधार नहीं है। पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री ने सिलसिलेवार ट्वीट करते हुए कहा कि अदालत ने पाया कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि मेवाणी एक पागल व्यक्ति हैं।
दरअसल बारपेटा जिला व सत्र न्यायाधीश अपरेश चक्रवर्ती ने पुलिस मुठभेड़ों का उल्लेख करते हुए गोहाटी उच्च न्यायालय से आग्रह किया कि वह राज्य पुलिस बल को खुद में सुधार करने का निर्देश दे। न्यायाधीश ने कहा कि उच्च न्यायालय असम पुलिस को मौजूदा मामले की तरह झूठी प्राथमिकी दर्ज करने, आरोपियों को गोली मारने या घायल करने वाले पुलिस कर्मियों को रोकने के लिए कदम उठाए। इसके लिए कोर्ट पुलिस को खुद में सुधार करने का निर्देश देने पर विचार कर सकता है, जो राज्य में नियमित घटना बन गई है।
आदेश में कहा गया कि उच्च न्यायालय कानून और व्यवस्था की ड्यूटी में लगे प्रत्येक पुलिसकर्मी को बॉडी कैमरा पहनने, किसी आरोपी को गिरफ्तार करते समय या किसी आरोपी को सामान या अन्य कारणों से किसी स्थान पर ले जाने के दौरान वाहनों में सीसीटीवी कैमरे लगाने, सभी पुलिस थानों के अंदर सीसीटीवी कैमरे लगाने का निर्देश देने पर भी विचार कर सकता है। अन्यथा हमारा राज्य पुलिस राज्य बन जाएगा, जिसे समाज बर्दाश्त नहीं कर सकता।