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ममता के प.बंगाल में छात्रों की आड़ में इंसाफ से कहीं अधिक राजनैतिक लाभ हासिल करने की नीयत ?

कोलकाता के आर जी कर सरकारी अस्पताल में हुए जघन्य अपराध को लेकर सियासत दिन ब दिन तेज होती जा रही है

 

 

कोलकाता के आर जी कर सरकारी अस्पताल में हुए जघन्य अपराध को लेकर सियासत दिन ब दिन तेज होती जा रही है। मंगलवार को नबन्ना अभियान की शक्ल में सियासत का एक और रूप देखने मिला। नबन्ना भवन में प.बंगाल सरकार का सचिवालय है, जिसकी सबसे ऊपरी मंजिल पर मुख्यमंत्री का दफ्तर भी है। प.बंगाल छात्र समाज ने इसी भवन तक बलात्कार कांड के विरोध में रैली निकालने का आह्वान किया था, जिसे नबन्ना मार्च या नबन्ना अभियान नाम दिया गया। प्रत्यक्ष तौर पर इस अभियान में कोई राजनैतिक चेहरा नहीं था, लेकिन इसमें जिस तरह भाजपा ने समर्थन दिया और स्वयं राज्यपाल की तरफ से वीडियो संदेश जारी हुआ। उससे समझा जा सकता है कि यह सारा अभियान बलात्कार जैसे खौफनाक अपराध में पीड़िता और उसके परिजन को मिलने वाले इंसाफ से कहीं अधिक राजनैतिक लाभ हासिल करने की नीयत से छेड़ा गया था।

नबन्ना मार्च रवीन्द्रभारती विश्वविद्यालय के छात्र प्रबीर दास, कल्याणी विश्वविद्यालय के शुभंकर हलदर और सयान लाहिड़ी नामक छात्रों द्वारा बुलाया गया था, इन छात्रों का कहना है कि उनका राजनीति से लेना-देना नहीं है। हालांकि शुभंकर हलदर ने खुद ही कहा है कि वे आरएसएस से जुड़े हैं और उन्हें इस पर गर्व है। इस मार्च को पहले विपक्ष का समर्थन भी मिला था, लेकिन बाद में संघ के तार इससे जुड़ते देख कांग्रेस और वाममोर्चा दोनों ही इससे पीछे हट गए। छात्रों ने इस अभियान के लिए तीन मांगों को सामने रखा था, अभया के लिए न्याय, अपराधी के लिए मौत की सजा और ममता बनर्जी का इस्तीफा। यह अजीब बात है कि जब मामले की सुनवाई सीधे सुप्रीम कोर्ट ने ही करनी शुरु कर दी है, तब इस तरह की मांग को लेकर रैली निकालने का औचित्य क्या है। जहां तक सवाल ममता बनर्जी के इस्तीफे का है, तो फिर इसकी शुरुआत मणिपुर से होते हुए उत्तरप्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, उत्तराखंड जैसे तमाम राज्यों में भी होनी चाहिए, क्योंकि यहां की बेटियों के साथ भी इसी तरह के अक्षम्य अपराध हुए हैं।

महाराष्ट्र के बदलापुर में नाबालिग बच्चियों के साथ हुए दुष्कर्म के विरोध में 24 तारीख को महाविकास अघाड़ी ने भी प्रदर्शन का आह्वान किया था, हालांकि अदालत में इसे रोकने के लिए एक जनहित याचिका दाखिल हुई और उसके बाद अदालत ने इस पर रोक लगाई तो फिर महाविकास अघाड़ी के नेताओं ने काली पट्टी मुंह पर बांध कर मौन प्रदर्शन कर सरकार के सामने अपना विरोध दर्ज कराया। ऐसा ही काम कोलकाता में भी हो सकता था, क्योंकि पुलिस के मुताबिक उसके पास खुफिया जानकारी थी कि कुछ उपद्रवी रैली के दौरान प्रदर्शनकारियों के बीच घुसने और बड़े पैमाने पर हिंसा व अराजकता फैलाने का प्रयास करेंगे। सरकार ने पहले ही बीएनएसएस की धारा 163 के तहत नबन्ना के निकट निषेधाज्ञा लागू कर दी थी, जिसके तहत पांच या अधिक व्यक्तियों के एकत्र होने पर रोक लगती है। सोमवार को पुलिस ने एक संवाददाता सम्मेलन कर आंदोलन को गैरकानूनी करार देते हुए इसे अशांति फैलाने की साजिश करार दिया था। लेकिन सोमवार देर शाम राजभवन की ओर से जारी एक वीडियो संदेश में राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने राज्य सरकार से आग्रह किया कि वह छात्रों को रैली रोकने के लिए बल प्रयोग न करे।

राज्यपाल पद पर बैठे व्यक्ति के लिए इस तरह के संदेश जारी करना कहां तक उचित है, यह भी विचारणीय है। इस अभियान को लेकर पुलिस की आपत्तियों पर भाजपा नेता दिलीप घोष ने कहा कि पुलिस को इसे वैध या अवैध कहने का क्या अधिकार है? लोकतांत्रिक देश में कोई भी विरोध कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि अगर कोई शांतिपूर्ण विरोध या मार्च निकाला जाता है तो पुलिस उसमें बाधा नहीं डाल सकती। काश दिलीप घोष यही बात तब कहते जब संसद की ओर अपनी मांगों को लेकर निकली महिला पहलवानों को पुलिस ने बलप्रयोग करते हुए ही रोका था और जेल में डाला था। इससे पहले किसानों के साथ भी यही सलूक किया गया।

बहरहाल, पुलिस की अनुमति न मिलने के बावजूद जब नबन्ना मार्च निकाला गया, तब हालात संभालने के लिए करीब 5 हजार पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया। फिर भी विरोध भड़कते देख प्रदर्शनकारियों को काबू में लेने के लिए पुलिस को पानी की बौछार जैसे तरीके इस्तेमाल करने पड़े। इसके बाद सियासत और तेज हो चुकी है, अब भाजपा ने बंगाल बंद का आह्वान किया है। जाहिर है यह सब ममता बनर्जी सरकार की मुश्किलें बढ़ाने के लिए किया जा रहा है।

आर जी कर अस्पताल की घटना के बाद से पूरे देश में आक्रोश देखा जा रहा है। एक स्वस्थ और जागरुक समाज को इस तरह के अपराध और नाइंसाफी पर नाराज होना भी चाहिए। लेकिन इसके साथ ही इस बात के लिए सचेत भी रहना चाहिए कि कोई उसकी नाराजगी का राजनैतिक फायदा तो नहीं उठा रहा। क्योंकि देश में कई जगह कोलकाता की घटना पर विरोध की रैलियां निकाली गईं, फिर भी लड़कियों के लिए माहौल पहले से ज्यादा असुरक्षित बना हुआ है, तो सोचना होगा कि आखिर गलती कहां हो रही है।

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