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चुनावी लाभ के लिए मोदी सरकार द्वारा लाइ गई यूपीएस पेंशन योजना क्या ये सही है या ?

देश में सरकारी कर्मचारी लंबे समय से पुरानी पेंशन योजना यानी ओपीएस को लागू करने की मांग करते आ रहे हैं

 

देश में सरकारी कर्मचारी लंबे समय से पुरानी पेंशन योजना यानी ओपीएस को लागू करने की मांग करते आ रहे हैं। पिछले 10 सालों से केंद्र की सत्ता पर काबिज नरेन्द्र मोदी ने इस मांग पर बातें तो खूब की, लेकिन ओपीएस लागू नहीं किया। लेकिन सत्ता के 11वें बरस में यानी तीसरी बार प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद अब केंद्र सरकार ने यूपीएस यानी एकीकृत पेंशन योजना को हरी झंडी दे दी है।

शनिवार को लिए इस फैसले के बारे में केन्द्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जानकारी दी। इस योजना के पांच प्रमुख बिंदु है, जिसमें पहला है 50 प्रतिशत निश्चित पेंशन, ये रकम सेवानिवृत्ति के ठीक पहले के 12 महीनों के औसत मूल वेतन का 50 प्रतिशत होगी। शर्त ये है कि कर्मचारी ने 25 साल की सेवा पूरी की हो। दूसरा बिंदु है किसी कर्मचारी की सेवा में रहते हुए मृत्यु होने की स्थिति में परिवार (पत्नी) को 60 प्रतिशत पेंशन के रूप में मिलेगा। तीसरा बिंदु है, 10 साल तक की न्यूनतम सेवा की स्थिति में कर्मचारी को कम से कम 10 हज़ार रुपये प्रति माह पेंशन के रूप में दिए जाएंगे। चौथा बिंदु कर्मचारी और फैमिली पेंशन को महंगाई के साथ जोड़ा जाएगा। इसका लाभ सभी तरह की पेंशन में मिलेगा, पांचवां और अंतिम बिंदु है, ग्रैच्युटी के अलावा नौकरी छोड़ने पर एकमुश्त रक़म दी जाएगी। इसकी गणना कर्मचारियों के हर छह महीने की सेवा पर मूल वेतन और महंगाई भत्ते का दसवां हिस्से के रूप में होगी।

सरकार का दावा है कि इससे 23 लाख केंद्रीय कर्मचारियों को फायदा होगा। पहले कर्मचारी पेंशन के लिए 10 प्रतिशत का अंशदान करते थे और केंद्र सरकार इतना ही अंशदान करती थी, लेकिन 2019 में सरकार ने सरकारी योगदान को 14 प्रतिशत कर दिया था, जिसे बढ़ाकर अब 18.5 प्रतिशत कर दिया जाएगा। नयी एकीकृत पेंशन योजना 1 अप्रैल 2025 से लागू होगी, तब तक इसके लिए संबंधित नियमों को बनाने के काम किया जाएगा और कर्मचारियों के पास एनपीएस यानी नेशनल पेंशन स्कीम या यूपीएस में रहने का विकल्प होगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने खुद ही अपने इस फैसले की तारीफ की और सरकारी कर्मचारियों द्वारा देश के लिए दिए जा रहे योगदान को रेखांकित किया है। वहीं अश्विनी वैष्णव ने इस मौके पर प्रधानमंत्री के लिए कसीदे पढ़ते हुए कहा कि पीएम मोदी कैसे काम करते हैं और विपक्ष कैसे काम करता है, इसमें अंतर है। विपक्ष के विपरीत, पीएम मोदी व्यापक विचार-विमर्श करने में विश्वास करते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक और विश्व बैंक सहित सभी के साथ विस्तार परामर्श के बाद, समिति ने एक एकीकृत पेंशन योजना की सिफारिश की है।

यह समझना कठिन है कि अश्विनी वैष्णव या केंद्र सरकार के लिए ज्यादा जरूरी बात क्या है, सरकारी कर्मचारियों के हितों का ख्याल या प्रधानमंत्री मोदी की छवि को सुधारना। क्योंकि मोदी सरकार में यह अलग ही परिपाटी चल निकली है कि किसी भी फैसले के लिए नरेन्द्र मोदी की वाहवाही की जाए, मानो देश के लिए फैसले लेना उनकी जिम्मेदारी नहीं है और जब वो फैसले लेते हैं तो एहसान करते हैं। वहीं जब श्री मोदी अपने फैसलों से पलटते हैं तब उनका कोई मंत्री आकर यह कभी नहीं कहता कि खराब फैसले के लिए श्री मोदी जिम्मेदार हैं। तब ठीकरा फोड़ने के लिए नए सिर तलाशे जाते हैं।

बहरहाल, ओपीएस की जगह यूपीएस लाकर मोदी सरकार ने यह साबित कर दिया है कि वह इस समय दबाव में ही चल रही है। कांग्रेस ने इसमें यू को यू टर्न से ही जोड़ा है। क्योंकि पेंशन के सवाल पर भाजपा पहले काफी घिर चुकी है। कई विधानसभा चुनावों में ओपीएस की मांग भाजपा पर भारी पड़ी और वहां कांग्रेस को फायदा हुआ। अब फिर से विधानसभा चुनावों का सिलसिला शुरु हो गया है, ऐसे में भाजपा अनुच्छेद 370 जैसे कार्ड के अलावा सरकारी कर्मचारियों को लुभाने वाले दांव चल रही है। 23 लाख सरकारी कर्मचारियों को फायदे की बात सरकार ने कही है, लेकिन इन्हीं कर्मचारियों में से अधिकतर ओपीएस की मांग भी कर रहे थे। दरअसल ओपीएस एक परिभाषित लाभ योजना है जो वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर समायोजन के साथ जीवन भर पेंशन के रूप में प्राप्त अंतिम वेतन के आधे हिस्से की गारंटी देती है। वहीं, एनपीएस एक परिभाषित योगदान योजना है जहां सरकारी कर्मचारी अपने मूल वेतन का 10 प्रतिशत योगदान करते हैं। सरकार ने अभी एनपीएस और यूपीएस में किसी एक को चुनने का विकल्प दिया है। इसलिए सवाल उठ रहे हैं कि यदि एनपीएस और यूपीएस का विकल्प सरकार दे सकती है, तो इसमें ओपीएस को भी शामिल क्यों नहीं किया गया है। यदि यूपीएस में मूल वेतन का 50 प्रतिशत सरकार दे सकती है तो ओपीएस में भी तो 50 प्रतिशत ही देने की बात है, फिर सरकार क्यों नहीं पुरानी पेंशन योजना को लागू करती है।

मोदी सरकार की तरफ से ऐसे सवालों का क्या तार्किक जवाब आता है, ये देखना होगा। फिलहाल सवाल यह भी उठाए जा रहे हैं कि सरकारी कर्मचारियों की पेंशन के बारे में ही फैसला लेने वाली सरकार क्या निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के बारे में भी सोचेगी, क्योंकि देश की प्रगति में योगदान तो निजी क्षेत्र भी दे रहा है और यहां के कर्मचारी भी अच्छा-खासा टैक्स देते हैं। सवाल यह भी है कि यूपीएस के लाभार्थी आने वाले बरसों में कितने रह जाएंगे, क्योंकि अब तो सरकारी नौकरियां ही नहीं मिल रही हैं।
कुल मिलाकर यह नजर आ रहा है कि जिस तरह सरकार ने वक्फ बोर्ड संशोधन अधिनियम, ब्रॉडकास्ट बिल जैसे फैसलों में यू टर्न लिया है, अब पेंशन योजना में भी सरकार विपक्ष के दबाव में आ चुकी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इसका चुनावी लाभ ले पाती है या नहीं।

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