दिल्ली

Explainer: क्यों पटरी से उतर जाती हैं ट्रेनें, एक पखवाड़े में दूसरा हादसा, क्यों ये भारतीय रेलों के लिए हमेशा रही है समस्या

आज एक और ट्रेन दुर्घटना का शिकार हो गई. मंगलवार तड़के यह हादसा झारखंड के टाटानगर के पास चक्रधरपुर में हुआ. जब हावड़ा से मुंबई जा रही हावड़ा-सीएसएमटी मेल के 18 डिब्बे पटरी से उतर गए. इस हादसे में कम से कम दो यात्रियों की मौत हो गई है. इस दुर्घटना ने एक बार फिर भारत में रेलवे सुरक्षा को लेकर चिंताएं पैदा कर दी हैं.

देश में ट्रेन हादसों का सिलसिला थमता नहीं दिख रहा है. 18 जुलाई को यूपी के गोंडा में हुए ट्रेन हादसे में मारे गए लोगों के परिजनों के आंसू अभी सूखे भी नहीं थे कि आज यानी मंगलवार को एक और ट्रेन दुर्घटना का शिकार बन गई. मंगलवार तड़के यह हादसा झारखंड के टाटानगर के पास चक्रधरपुर में हुआ, जब हावड़ा से मुंबई जा रही हावड़ा-सीएसएमटी मेल के 18 डिब्बे पटरी से उतर गए. इस हादसे में कम से कम दो यात्रियों की मौत हो गई जबकि 50 लोग घायल हो गए. बताया जाता है कि इस रूट पर दो दिन पहले एक मालगाड़ी डिरेल हुई थी. हावड़ा-सीएसएमटी मेल इसी मालगाड़ी के डिब्बों से टकरा गई. जबकि गोंडा में चंडीगढ़-डिब्रूगढ़ एक्सप्रेस के छह डिब्बे पटरी से उतर गए थे. इस हादसे में दो लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 30 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे. देश में पिछले 14 महीनों में चार बड़े रेल हादसे हुए हैं, जिसमें 320 से ज्यादा यात्रियों ने अपनी जान गंवाई है.

पिछले साल दो जून को बालासोर ट्रेन हादसे के कई सवाल अभी तक अनुत्तरित हैं. बालासोर में तीन ट्रेनें आपस में टकरा गई थीं. उस दुर्घटना में कोरोमंडल एक्सप्रेस ने एक खड़ी मालगाड़ी और फिर दूसरी तरफ से आ रही एक सुपरफास्ट एक्सप्रेस को टक्कर मार दी थी. इस हादसे में लगभग 300 लोगों की मौत हो गई थी. शुरुआती रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि दुर्घटना सिग्नल विफलता का परिणाम थी. लेकिन इसने एक बार फिर भारत में रेलवे सुरक्षा को लेकर नई चिंताएं पैदा कर दी थीं.

देश में एक लाख किमी से ज्यादा का नेटवर्क
भारत की विशाल रेलवे प्रणाली जो दुनिया चौथी सबसे बड़ी रेलवे है. यह हर दिन एक लाख किमी से अधिक फैले देशव्यापी ट्रैक नेटवर्क पर लगभग ढाई करोड़ यात्रियों को लाती ले जाती है. बीबीसी इंग्लिश की एक रिपोर्ट के मुताबिक रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के अनुसार, साल 2022 में लगभग 5,200 किमी नई पटरियाँ बिछाई गईं. मंत्री ने कहा कि हर साल 8,000 किमी ट्रैक को अपग्रेड किया जा रहा है. वैष्णव ने बताया कि 100 किमी/घंटा तक की गति से चलने वाली ट्रेनों को समायोजित करने के लिए अधिकांश पटरियों को अपग्रेड किया जा रहा था. एक बड़े हिस्से को 130 किमी/घंटा तक की गति के लिए बढ़ाया जा रहा था, और एक महत्वपूर्ण खंड को अपग्रेड किया जा रहा था. 160 किमी/घंटा तक की हाई स्पीड के लिए तैयार किया जा रहा है.

ट्रेन पटरी से उतरने के कई कारण
स्पष्ट रूप से, यह देश भर में तेज ट्रेनें चलाने की सरकार की योजना का हिस्सा है. देश की आर्थिक राजधानी मुंबई और अहमदाबाद शहर के बीच एक वास्तविक हाई-स्पीड लाइन अलग से बनाई जा रही है. फिर भी, रेलवे बोर्ड के एक पूर्व अध्यक्ष ने कहा, ‘ट्रेनों का पटरी से उतरना रेलवे के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है. एक ट्रेन कई कारणों से पटरी से उतर सकती है. ट्रैक का रखरखाव खराब हो सकता है, कोच ख़राब हो सकता है, और गाड़ी चलाने में गलती हो सकती है.”

70 फीसदी हादसे पटरी से उतरने के कारण
साल 2019-20 के लिए एक सरकारी रेलवे सुरक्षा रिपोर्ट में पाया गया कि 70 फीसदी रेलवे दुर्घटनाओं के लिए उनका पटरी से उतरना जिम्मेदार था, जो पिछले वर्ष 68 फीसदी से अधिक था. इसके बाद ट्रेन में आग लगने और टक्कर लगने के मामले आते हैं, जो कुल दुर्घटनाओं में क्रमश: 14 और आठ फीसदी के लिए जिम्मेदार हैं. रिपोर्ट में साल 2019-20 के दौरान 33 यात्री ट्रेनों और सात मालगाड़ियों से संबंधित 40 पटरी से उतरने की घटनाएं गिनाई गईं. इनमें से 17 पटरी से उतरने की घटनाएं ट्रैक खराबियों के कारण हुईं. रिपोर्ट के मुताबिक पटरी से उतरने की केवल नौ घटनाएं ट्रेनों, इंजन, कोच, वैगन में खराबी के कारण हुईं.

ट्रैक का नियमित रखरखाव जरूरी
धातु से बनी रेलवे पटरियां गर्मी के महीनों में फैलती हैं और सर्दियों में तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण सिकुड़ती हैं. उन्हें नियमित रखरखाव की जरूरत होती है – ढीले ट्रैक को कसना, स्लीपर बदलना और अन्य चीजों के अलावा, चिकनाई और समायोजन स्विच. इस तरह का ट्रैक निरीक्षण पैदल, ट्रॉली, लोकोमोटिव और अन्य वाहनों द्वारा किया जाता है. भारतीय रेलवे का सुझाव है कि ट्रैक-रिकॉर्डिंग कारों को हर तीन महीने में कम से कम एक बार 110 किमी/घंटा से 130 किमी/घंटा तक की गति बनाए रखने के लिए डिजाइन किए गए ट्रैक का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करना चाहिए.

कवच लगाए जाने पर चल रहा काम
भारतीय ट्रेनों में टकराव-रोधी उपकरण (कवच) लगाए जाने के बारे में बहुत चर्चा हुई है. कवच एक ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम (Automatic Train Protection) है, जिसे आरडीएसओ ने भारतीय रेलवे के लिए विकसित किया है. इस सिस्टम पर रेलवे ने साल 2012 में काम करना शुरू किया था. इस तकनीक का सफल प्रयोग पिछले साल ही किया जा चुका है. हालांकि, यह तकनीक देश के सभी रेल रूट पर उपलब्ध नहीं है. यह प्रणाली अभी केवल दो प्रमुख रूट – दिल्ली और कोलकाता के बीच और दिल्ली और मुंबई के बीच – लगाई जा रही है. इस टेक्नोलॉजी को सभी रेलवे ट्रैक पर लागू करने की दिशा में काम जारी है.

क्या है कवच और कैसे करता है काम
रेलवे के अनुसार, कवच टेक्नोलॉजी ट्रेनों की आपस में भिड़ंत को रोकने का काम करती है. इस तकनीक में सिग्‍नल जंप करने पर ट्रेन खुद ही रुक जाती है. कवच’ प्रणाली में हाई फ्रीक्वेंसी के रेडियो कम्युनिकेशन का इस्तेमाल किया जाता है. ये सिस्टम तीन स्थितियों में काम करता है – जैसे कि हेड-ऑन टकराव, रियर-एंड टकराव, और सिग्नल खतरा. ब्रेक विफल होने की स्थिति में ‘कवच’ ब्रेक के स्वचालित अनुप्रयोग द्वारा ट्रेन की गति को नियंत्रित करता है. ऑन बोर्ड डिस्प्ले ऑफ सिग्नल एस्पेक्ट (OBDSA) लोको पायलटों को कम दिखने पर भी यह संकेत देता है. एक बार सिस्टम सक्रिय हो जाने के बाद, 5 किलोमीटर की सीमा के अंदर ट्रेनें रुक जाती हैं. जब तक ये पूरी तरह से लागू नहीं किया जाता है, तब तक ट्रेनें भगवान भरोसे ही चलेंगी.

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