दिल्ली

CJI के रूप में जस्टिस चंद्रचूड़ के एक साल पूरे, इस दौरान लिए कई ऐतिहासिक फैसले; जानें

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट आने से पहले कई हाईकोर्ट में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। बॉम्बे हाईकोर्ट में जज बनने से पहले उन्होंने गुजरात, कलकत्ता, इलाहाबाद, मध्य प्रदेश और दिल्ली हाईकोर्ट में एक वकील की तौर पर प्रैक्टिस भी की है।

 

, नई दिल्ली

 

अपने फैसलों के लिए जाने जाने वाले जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने बुधवार को सीजेआई के रूप में  अपने कार्यकाल का पहला साल पूरा किया। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एक साल पहले आज के ही दिन यानी 9 नवंबर 2022 को भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद ग्रहण किया था। जस्टिस चंद्रचूड़ देश के 50वें प्रधान न्यायाधीश यानी  CJI हैं। सीजेआई के अपने कार्यकाल में उन्होंने शीर्ष अदालत में पारदर्शिता बढ़ाने और शीर्ष अदालत के भीतर LGBTQIA+ समुदाय को शामिल करने की दिशा में कई कदम उठाए। इसके साथ ही सीजेआई चंद्रचूड़ ने समलैंगिक जोड़ों के लिए विवाह को लेकर समान अधिकारों की भी वकालत की।

पहले जान लीजिए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के बारे में
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का जन्म 11 नवंबर 1959 को हुआ था। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से वकालत की पढ़ाई की है। इसके बाद उन्होंने प्रतिष्ठित InLaks स्कॉलरशिप की मदद से हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की। यहां से उन्होंने मास्टर्स और न्यायिक विज्ञान में डॉक्टरेट (SJD) पूरी की। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी, हार्वर्ड लॉ स्कूल, येल लॉ स्कूल और यूनिवर्सिटी ऑफ विटवॉटरलैंड में लेक्चर भी दिया है।

पिता वाईवी चंद्रचूड़ 16वें प्रधान न्यायाधीश थे, वे सबसे लंबे समय तक सीजेआई रहे 
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ (वाईवी चंद्रचूड़) देश के 16वें चीफ जस्टिस थे। वाईवी चंद्रचूड़ 22 फरवरी 1978 से 11 जुलाई 1985 तक करीब सात साल रहा। यह किसी सीजेआई को अब तक का सबसे लंबा कार्यकाल है। पिता के रिटायर होने के 37 साल बाद उनके बेटे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सीजेआई बने हैं। यह सुप्रीम कोर्ट के भी इतिहास का पहला उदाहरण जब पिता के बाद बेटा भी सीजेआई बना है।

पिता के फैसले को पलट चुके हैं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के कई फैसले चर्चित रहे हैं। इनमें वर्ष 2018 में विवाहेतर संबंधों (व्याभिचार कानून) को खारिज करने वाला फैसला शामिल है। 1985 में तत्कालीन सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ की पीठ ने सौमित्र विष्णु मामले में भारतीय दंड विधान की धारा 497 को कायम रखते हुए कहा था कि संबंध बनाने के लिए फुसलाने वाला पुरुष होता है न कि महिला। वहीं, डीवाई चंद्रचूड ने 2018 के फैसले में धारा 497 को खारिज करते हुए कहा था ‘व्याभिचार कानून महिलाओं का पक्षधर लगता है लेकिन असल में यह महिला विरोधी है। शादीशुदा संबंध में पति-पत्नी दोनों की एक बराबर जिम्मेदारी है, फिर अकेली पत्नी पति से ज्यादा क्यों सहे? व्याभिचार पर दंडात्मक प्रावधान संविधान के तहत समानता के अधिकार का परोक्ष रूप से उल्लंघन है क्योंकि यह विवाहित पुरुष और विवाहित महिलाओं से अलग-अलग बर्ताव करता है।’

इन हाईकोर्ट में दे चुके हैं सेवाएं
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट आने से पहले कई हाईकोर्ट में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। बॉम्बे हाईकोर्ट में जज बनने से पहले उन्होंने गुजरात, कलकत्ता, इलाहाबाद, मध्य प्रदेश और दिल्ली हाईकोर्ट में एक वकील की तौर पर प्रैक्टिस भी की है। इसके साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के वकील के तौर पर भी प्रैक्टिस की थी। 1998 में उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता बनाया गया था। 2000 तक वह भारत के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के रूप में काम कर चुके हैं। वकील के तौर पर उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों की लड़ाई लड़ी है।

सीजेआई के रूप में दिए कई महत्वपूर्ण फैसले
सीजेआई के रूप में उनकी अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने बीते एक साल में कई महत्वपूर्ण फैसले सुनाए हैं। इनमें दिल्ली सरकार की शक्तियों से जुड़ा फैसला, महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली पिछली महा विकास अघाड़ी सरकार की बहाली से इनकार और समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए समलैंगिक जोड़ों के अधिकार से जुड़े महत्वपूर्ण फैसले सुनाए हैं।

 

डोनेट करें - जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर क्राइम कैप न्यूज़ को डोनेट करें.
 
Show More

Related Articles

Back to top button