उत्तरप्रदेश

यूपी में पुलिस के पीछे पुलिस, करोड़ों का वसूली रैकेट जिसे डीआईजी ने खलासी बनकर पकड़ा

बलिया में एडीजी वाराणसी और डीआईजी आज़मगढ़ ने संयुक्त कार्रवाई की है और ज़िले के नरही थाने में तक़रीबन 1.50 करोड़ रुपये महीने की अवैध वसूली की बात सामने आई है

उत्तर प्रदेश पुलिस एक बार फिर सुर्ख़ियों में है. इस बार पुलिस ने पुलिस के ख़िलाफ़ ही कार्रवाई की है.

बलिया में एडीजी वाराणसी और डीआईजी आज़मगढ़ ने संयुक्त कार्रवाई की है और ज़िले के नरही थाने में तक़रीबन 1.50 करोड़ रुपये महीने की अवैध वसूली की बात सामने आई है.

इस मामले में एडीजी की टीम ने तक़रीबन 22 लोगों को गिरफ्तार किया है जिसमें दो पुलिस वाले भी शामिल हैं. जबकि कई पुलिस वाले फ़रार बताए जा रहे हैं.

इन पुलिसकर्मियों पर आरोप है कि ये लोग ट्रकों से अवैध वसूली कर रहे थे.

इनके साथ कई दलाल भी थे जो बलिया के भरौली बार्डर पर ट्रकों को रोककर पहले तलाशी लेते थे फिर उनसे पैसे लेकर जाने देते थे.

इस ख़बर के सामने आने के बाद यूपी में पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े हो गए हैं.

पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सरकार पर सवाल खड़े किए हैं.

उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर लिखा है कि ”उत्तर प्रदेश में हो रहा है नया खेल: पहले होता था ‘चोर-पुलिस’और भाजपा राज में हो रहा है ‘पुलिस-पुलिस’. ये है अपराध के ख़िलाफ़ ज़ीरो टॉलरेंस का भंडाफोड़.”

हालांकि, राज्य सरकार इसे भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ बड़ा क़दम बता रही है.

सरकार ने बलिया में नए पुलिस अधीक्षक की तैनाती भी कर दी है. डीआईजी ने नए एसपी के साथ पुलिस महकमे की बैठक की है.

भरौली बॉर्डर पर कैसे चल रहा था रैकेट?

 

बिहार के बक्सर से आने वाले ट्रक भरौली बॉर्डर से उत्तर प्रदेश में प्रवेश करते थे लेकिन पुलिस के मुताबिक, इससे पहले ट्रक ड्राइवरों से सांठगांठ की जाती थी.

हर ट्रक से पैसा पहले तय कर लिया जाता था जो पुलिस को पैसे देता था वो ट्रक आसानी से पास हो जाता था. पुलिस के मुताबिक़, तक़रीबन 1000 ट्रक रोज़ाना इस बॉर्डर से पास होते हैं.

आज़मगढ़ के स्थानीय पत्रकार मानव श्रीवास्तव का कहना है कि डीआईजी ने ख़ुद बताया है कि हर ट्रक से 500 रुपये लिए जाते थे. हालांकि, “भरौली बॉर्डर पर ये काम आज से नहीं हो रहा है, पुलिस अवैध वसूली करती रही है, पकड़े अब गए हैं.”

एक पुलिस अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त में बताया कि बॉर्डर पर लाल बालू , शराब और जानवरों की तस्करी होती रही है लेकिन इतने बड़े पैमाने पर धरपकड़ पहली बार पुलिस ने ही की है.

बॉर्डर के थाने पहले से ही बदनाम रहे हैं. प्रदेश सरकार की तरफ़ से जारी बयान में कहा गया है कि ‘इस अवैध वसूली की बात सामने आने के बाद राज्य सरकार ने सख़्त कार्रवाई की है और ये मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भ्रष्टाचार के प्रति ज़ीरो टालरेंस का नतीजा है.’

खलासी बनकर एडीजी ने मारा छापा, 2 नोट बुक खोलेंगे राज़

वैभव कृष्ण

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इमेज कैप्शन,वाराणसी ज़ोन के डीआईजी वैभव कृष्ण

वाराणसी ज़ोन के एडीजी पीयूष मोर्डिया और डीआईजी वैभव कृष्ण खलासी बनकर रात में 1.30 बजे ट्रक पर सवार हुए और यूपी-बिहार सीमा पर भरौली नाके पर अपनी टीम के साथ पहुंचे और जब पुलिसवालों ने ट्रक को रोककर पैसे मांगे तभी एडीजी के साथ चल रही टीम ने पुलिसवालों और दलालों को पकड़ लिया.

इस एक्शन से पुलिसवाले ही निशाने पर थे. अचानक इस कार्रवाई से पुलिस के जवान और दरोगा भागने लगे जिसमें जानकारी के मुताबिक़ नरही के थानाध्यक्ष फ़रार होने में कामयाब रहे लेकिन कुछ लोग पकड़ लिए गए. नरही और कोरंटाडीह के थानाध्यक्षों को निलंबित कर दिया गया है.

पुलिस के मुताबिक़, इस अभियान की तैयारी कई दिन पहले की गई थी और डीजीपी प्रशांत कुमार को शिकायत मिली थी कि बक्सर से आने वाले ट्रकों से अवैध वसूली की जा रही है.

इसके बाद इस मामले की रेकी निचले स्तर के अफ़सरों ने की जिसमें शिकायत को सही पाया गया और फिर एडीजी की अगुवाई में 24 सदस्यीय पुलिस टीम ने छापा मारा था.

इस मामले में अहम सबूत के तौर पर दो नोटबुक भी मिली है जिसमें कई महीनों की वसूली का राज़ बंद है.

इस नोटबुक की पड़ताल की जा रही है जिसमें कई और नाम सामने आ सकते हैं.

पुलिस के बयान के मुताबिक़, एडीजी की टीम ने 22 लोगों को गिरफ़्त में लिया है जिसमें दो पुलिस वाले भी हैं. लेकिन मौक़े से एसओ और दरोगा फ़रार हो गए .

इस मामले में नरही थाने के इंचार्ज पन्नेलाल समेत नौ पुलिसवालों को निलंबित कर दिया गया है और सबके ख़िलाफ़ मुक़दमा भी लिख दिया गया है.

एडीजी की टीम के साथ आज़मगढ़ के डीआईजी वैभव कृष्ण भी थे.

वैभव कृष्ण ने मीडिया से कहा, ”जब से जानकारी मिली उसके बाद रेकी की गयी और जब मामला कन्फर्म हुआ तभी रेड करने का फ़ैसला किया गया ये फ़ैसला सीक्रेट रखा गया था.”

इस अभियान की जानकारी बलिया के एसपी को भी नहीं दी गयी थी ताकि किसी को भनक ना लगे बल्कि स्थानीय एसपी को भी रेड के बाद जानकारी मिली तो वो इसके बाद ही मौके पर पहुचे थे.

सरकार ने सीओ और निलंबित पुलिसवालों की सम्पतियों की विजिलेंस जांच कराने का फैसला किया है.

जब पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह फ़रियादी बनकर पहुंचे थे कानपुर कोतवाली

यूपी पुलिस

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इमेज कैप्शन,पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि इस तरह का अभियान हर बॉर्डर पर होना चाहिए

इस तरह की रेड पहली बार नहीं हुई है. पहले भी पुलिस के अफ़सर महकमे पर निगरानी करने के लिए अचानक छापा मारते रहे हैं.

यूपी पुलिस के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह एक बार अपने कार्यकाल में लखनऊ से शताब्दी एक्सप्रेस पकड़कर कानपुर पहुंचे थे.

वहां से उन्होंने ऑटो से कोतवाली पहुंचकर एक रिपोर्ट लिखवाने का प्रयास किया था लेकिन उस वक्त डयूटी पर तैनात अफ़सर ने रिपोर्ट लिखने से इनकार कर दिया, जिसके बाद कई पुलिसवालों पर कार्रवाई की गई.

इस तरह से डीजीपी रहते हुए उन्होंने कई अभियान चलाए ताकि पुलिस में भ्रष्टाचार को रोका जा सके. मेरठ में भी विक्रम सिंह ने ट्रक पर बैठकर वसूली करने वालों पर कार्रवाई की थी.

विक्रम सिंह ने बात करते हुए कहा कि इस तरह का अभियान हर बॉर्डर पर होना चाहिए. साहिबाबाद से लेकर वाराणसी के सैयद राजा तक हर सीमा पर पुलिस कप्तानों को निगाह रखनी चाहिए.

सिंह ने कहा कि अपने कार्यकाल में उन्होंने 555 पुलिसवालों को बर्ख़ास्त किया था और जो पुलिसवाले इस तरह के काम में लिप्त पाए गए हैं उनको बर्ख़ास्त करना चाहिए .

वो कहते हैं, “पुलिस के अफ़सर का इतना डर होना चाहिए कि निचले स्तर वाला पुलिसकर्मी रिश्वत लेने से डरे. जो पकड़ा जाए उसको बर्ख़ास्त करना चाहिए. बलिया वाले मामले में निलंबित करने से काम नहीं चलेगा बल्कि एक कड़ा फैसला लेने की ज़रूरत है.”

विक्रम सिंह ने कहा कि एडीजी की रेड के बाद निलंबन पुलिस की कमजोरी को दिखाता है इसलिए खुलेआम रिश्वतखोरी में पकड़े गए लोगों को तत्काल बर्ख़ास्त करना चाहिए क्योंकि एडीजी ने खुद रेड करके पकड़ा है.

इस मामले में आज़मगढ़ पुलिस के मुताबिक़, 16 दलाल पकड़े गए हैं. 14 मोटरसाइकिल, 25 मोबाइल, 2 नोटबुक और 37,500 रुपये कैश बरामद किया गया है. इस रेड के बाद तीन पुसिलकर्मी फ़रार बताए जा रहे हैं.

डीजीपी ने भी सख़्त कार्रवाई के आदेश दिए हैं. बलिया के एसपी देवरंजन वर्मा और एएसपी दुर्गा शंकर तिवारी को हटा दिया गया है वहीं सीओ सदर शुभ शुचिता को निलंबित कर दिया गया है.

डीआईजी ने बताया कि तक़रीबन हर रोज़ पांच लाख रुपये वसूले जा रहे थे यानी 1.50 करोड़ रुपये की उगाही प्रतिमाह इसके ज़रिए की जा रही थी, जिसको पुलिसवाले और उनके दलाल आपस में बांट रहे थे.

पहले भी आ चुके हैं ऐसे मामले

10 जुलाई 2020 को गैंगेस्टर विकास दुबे की एनकाउंटर में मौत हो गई थी.

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इमेज कैप्शन,10 जुलाई 2020 को गैंगेस्टर विकास दुबे की एक एनकाउंटर में मौत हो गई थी.

ये कोई पहला मामला वाराणसी ज़ोन में नहीं हुआ है, जहां पुलिसवाले अपराध में शामिल रहे हों.

वाराणसी के नादेसर चौकी के दरोगा सूर्य प्रकाश पांडेय को भी 42 लाख की लूट में गिरफ्तार किया गया है. ये मामला एक व्यापारी से लूटपाट का है, जो पिछले महीने सामने आया.

इस मामले में फ़िल्मी अंदाज़ में दरोगा ने बस में सफ़र कर रहे व्यापारी की तलाशी ली और 93 लाख रुपये बरामद किए इसको हवाला का पैसा बताकर आधे पैसे 42 लाख रख लिए और बाक़ी 50 लाख व्यापारी को वापस कर दिया.

जब पुलिस ने जांच शुरू की तो सीसीटीवी के ज़रिए सुराग हाथ लगा लेकिन पुलिस को शक तब हुआ जब दरोग़ा ख़ुद इस मामले की फ़ोन पर कई बार अपडेट लेते रहे.

इसी तरह अवैध वसूली के आरोप में अप्रैल 2024 में अंबेडकर नगर में तीन पुलिसकर्मी निलंबित किए गए थे. इन पर आरोप था कि इन लोगों ने मारपीट कर 80 हज़ार रुपये छीन लिए थे.

जुलाई, 2020 में कानपुर का बिकरू कांड हुआ था, जिसमें गैंगस्टर विकास दुबे ने डिप्टी एसपी समेत 8 पुलिसकर्मियों को मार दिया था. इसमें भी कई पुलिसवालों की भूमिका संदिग्ध पाई गयी थी.

हालांकि, पुलिस ने विकास दुबे को एनकाउंडर में मार दिया था लेकिन पुलिस पर दाग़ अभी तक लगा हुआ है. यूपी सरकार ने इस कांड में आईपीएस अनंत देव को निलंबित किया था.

गुजरात में भी ऐसा मामला

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, इस तरह का एक मामला गुजरात में भी आया है जिसमें गुजरात एटीएस जांच कर रही है जिसमें जूनागढ़ के तीन पुलिसकर्मियों पर आरोप लगा है.

ईडी की रिपोर्ट के बाद तक़रीबन 300 बैंक अकाउंट फ़्रीज़ किए गए हैं. इस मामले में केरल के एक व्यापारी से बैंक अकाउंट को डीफ्रीज़ करने के एवज़ में 25 लाख रुपये मांगे गए थे.

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