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‘मी लॉर्ड! ये नहीं कर सकते…’ CJI चंद्रचूड़ के सामने हाईकोर्ट के ऑर्डर के खिलाफ अपील, बंट गए सुप्रीम कोर्ट के जज

कानूनी मामलों को रिपोर्ट करने वाली वेबसाइट इंडियन कानून ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच के सामने यह सवाल उठाया. वेबसाइट ने मद्रास हाईकोर्ट के एक आदेश चुनौती दी है. जानें क्या है पूरा मामला…

नई दिल्ली.

जब भी सनसनीखेज वारदात होती या फिर कोई हाई प्रोफाइल केस सामने आता है, तो उस पर देशभर में चर्चा शुरू हो जाती है. मामले के आरोपियों को लेकर कई खुलासे होते हैं, कई खबरें छपती हैं और देशभर में उसकी चर्चा भी होती है. लेकिन अगर आगे चलकर वह आरोपी उस केस से बरी कर दिया जाता है तब भी उस पर लगे आरोपों की पुरानी खबरें जस की तस बनी रहती हैं. ऐसे में क्या वह शख्स ‘भुला दिए जाने के अधिकार’ का हवाला देते हुए खुद से जुड़ी खबरें न्यूज़ वेबसाइट से हटाने की मांग कर सकता है?

कानूनी मामलों को रिपोर्ट करने वाली वेबसाइट इंडियन कानून ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच के सामने यह सवाल उठाया. वेबसाइट ने मद्रास हाईकोर्ट के एक आदेश चुनौती दी है.

क्या है पूरा मामला
दरअसल एक शख्स को निचली अदालत ने यौन उत्पीड़न केस में दोषी ठहराया था, लेकिन हाईकोर्ट यह फैसला पलटते हुए उस बरी कर दिया. इसके साथ ही कोर्ट ने पोर्टल को दोषसिद्धि का फैसला हटाने का निर्देश दिया था.

अब इस मामले एक मामले एक सवाल यह उठता है कि ‘भुला दिए जाने का अधिकार’ बड़ा है यह फिर लोगों के ‘सूचित होने के अधिकार’… सीजेआई चंद्रचूड़ जहां हाई कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं दिखे, वहीं बेंच के दूसरे जज इस मुद्दे की गहराई से जांच करने के पक्ष में दिखे.

हाईकोर्ट के आदेश पर असहमत सीजेआई चंद्रचूड़
सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, ‘कोई हाईकोर्ट किसी वेबसाइट से पहले के फैसले को हटाने का निर्देश कैसे दे सकता है, भले ही वह उसे रद्द ही क्यों न कर दे? अदालतों का हर फैसला सार्वजनिक रिकॉर्ड का हिस्सा होता है.’

बेंच ने कहा कि ज्यादा से ज्यादा हाई कोर्ट किसी संवेदनशील मामले में बरी किए गए व्यक्ति के नाम और उसके प्राइवेट डिटेल्स को वेबसाइट पर अपलोड किए गए फैसले से हटाने या छिपाने का निर्देश दे सकता है. बेंच ने कहा, ‘किसी फैसले को हटाने का आदेश देना एक कठोर कदम है जो सूचना के सार्वभौमिक अधिकार के खिलाफ जाता है.’

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है और इस मुद्दे पर फैसला करने का निर्णय लिया है.

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