मोदीजी का बजट सामान्य मध्यम आम जनता के लिए निराशा जनक

एनडीए सरकार ने 23 जुलाई मंगलवार को अपना आम बजट पेश किया। लोकतांत्रिक सरकार के आम बजट में सर्वोच्च प्राथमिकता आम जनता को दी जानी चाहिए
एनडीए सरकार ने 23 जुलाई मंगलवार को अपना आम बजट पेश किया। लोकतांत्रिक सरकार के आम बजट में सर्वोच्च प्राथमिकता आम जनता को दी जानी चाहिए। समाज के हाशिए के वर्गों को मुख्यधारा में दौड़ने लायक सक्षम किया जा सके, ऐसे प्रावधान बजट में होने चाहिए। लेकिन यह दुखद है कि अब बजट जैसी बेहद जरूरी चीज भी सत्ता के हित साधन का जरिया बन गया है। यही बात इस बजट में भी नजर आई।
इस बजट में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राजनैतिक मजबूरियों और प्राथमिकताओं में बदलाव को साफ तौर पर देखा जा सकता है। आंध्रप्रदेश की तेलुगूदेसम पार्टी और बिहार की जनता दल यूनाइटेड इन दो के सहारे एनडीए सरकार केंद्र की सत्ता पर बनी हुई है। इन दोनों ही दलों ने सरकार बनने के साथ यह उम्मीद बार-बार जाहिर की कि सरकार उन पर विशेष ध्यान देगी। आंध्र प्रदेश और बिहार दोनों ही राज्य लंबे वक्त से विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहे हैं। 2018 में चंद्रबाबू नायडू एनडीए से इसी मांग के पूरे न होने को लेकर ही अलग भी हुए थे। वहीं नीतीश कुमार भी अब तक इस उम्मीद में थे कि श्री मोदी उनकी इस मांग को पूरा करेंगे। लेकिन 22 जुलाई को संसद में बाकायदा इस बात से इंकार कर दिया गया कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता। यही स्थिति आंध्र प्रदेश की भी है। इन दोनों नेताओं ने बजट से पहले जिस विशेष आर्थिक पैकेज की मांग अपने-अपने राज्यों के लिए की थी, वह भी इन्हें नहीं मिला। मगर इसके बावजूद पूरे बजट में सबसे अधिक चर्चा इसी बात की हो रही है कि निर्मला सीतारमण ने सबसे अधिक ख्याल आंध्र प्रदेश और बिहार का ही रखा है।
कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने इस बजट को कुर्सी बचाओ बजट कहा है, क्योंकि आंध्र प्रदेश की राजधानी के विकास के लिए 15 हजार करोड़ का प्रावधान किया गया है, इसी तरह बिहार के लिए एयरपोर्ट्स, सड़कों और बिजली के प्रोजेक्ट लगाने के लिए बजट में 26,000 करोड़ का प्रावधान किया गया है। खास बात यह है कि इन परियोजनाओं के लिए बहुपक्षीय विकास एजेंसियों के जरिए काम की बात की गई है। फिलहाल एनडीए सरकार के ये दोनों घटक दल बजट के इन प्रावधानों पर खुशी जाहिर कर रहे हैं, जिससे श्री मोदी राहत महसूस कर सकते हैं। मगर इस बजट से भाजपा की मजबूरी जिस तरह सामने आई है, वह उसकी मजबूती के दावों को खारिज करती दिख रही है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जन खड़गे ने बिलकुल सही सवाल उठाया है कि जब नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने से पहले ही दावा किया था कि 100 दिनों की कार्य योजना हमारे पास पहले से ही है। कार्य योजना दो महीने पहले थी तो कम से कम बजट में ही बता देते। दरअसल इस बजट में न किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी की कोई चर्चा है, न महंगाई कम करने का कोई इरादा दिखा है। आदिवासी, पिछड़े वर्ग, दलित, किसान, मजदूर सभी की एक तरह से उपेक्षा दिखाई दी है। 2014 में नरेन्द्र मोदी ने युवाओं से वादा किया था कि हर साल दो करोड़ रोजगार दिए जाएंगे और अब आलम यह है कि 2024 के बजट में मोदी सरकार ने कहा है कि वह 5 सौ बड़ी कंपनियों में 1 करोड़ युवाओं को इंटर्नशिप करने के लिए अवसर प्रदान करेगी। इसमें 5000 रुपये हर महीने अलाउंस दिया जाएगा साथ में 6000 रुपये का अतिरिक्त अलाउंस भी दिया जाएगा। कंपनियों को सीएसआर के तहत स्किल करने पर खर्च करना होगा। दो करोड़ नौकरियों से बात एक करोड़ इंटर्नशिप पर आ जाए, तो समझना कठिन नहीं है कि सरकार की कथनी और करनी में कितना अंतर है। हालांकि खबरों में सरकार के ऐसे प्रावधान को बजट में युवाओं की बल्ले-बल्ले जैसी सोच के साथ पेश किया जा रहा है।
मोदी सरकार ने रेल बजट पहले ही समाप्त कर दिया था, अब ऐसा लगता है कि बजट से रेलवे पर किए जाने वाले खर्च, यात्रियों की सुविधा, रेलवे के विस्तार जैसी अहम बातों को भी गायब कर दिया गया है। बुलेट ट्रेन का जिक्र तो खैर अब होता ही नहीं, हाल ही में जो गंभीर रेल दुर्घटनाएं हुई हैं, उन का जिक्र करते हुए बजट के जरिए मामूली समझे जाने वाले यात्रियों को आश्वस्त किया जा सकता था कि सरकार को उनका भी ध्यान है। लेकिन यहां भी आम गरीब लोगों को निराशा ही हाथ लगी है। अबकी बार नरेन्द्र मोदी किसी नयी ट्रेन को हरी झंडी दिखाने जाएं तो याद रखें कि उनकी सरकार ने कैसे आम यात्रियों की उम्मीदों को लाल झंडी दिखा दी है। रेलवे के जरिए बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन होता था, वह बात भी अब बजट से गायब है।
बजट में आंध्रप्रदेश और बिहार का जिक्र तो खूब है, लेकिन बाकी राज्यों की उम्मीदों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। पर्यावरण को लेकर कोई चिंता बजट में नजर नहीं आई, जबकि हर साल बढ़ते प्रदूषण, पराली जलाने के कारण होने वाला धुआं, बाढ़ और सूखा, जंगलों की आग, पहाड़ों पर भूस्खलन ऐसी कई बातें हैं, जो आम भारतीयों के लिए जानलेवा होती जा रही हैं। बजट में पर्यटन के नाम पर सरकार ने फिर बिहार को ही महत्व दिया है। गया में विष्णुपद मंदिर और बोधगया में महाबोधि मंदिर को काशी विश्वनाथ मंदिर गलियारे की तर्ज पर विकसित किया जाएगा। राजगीर को हिंदुओं, बौद्धों और जैनियों के लिए महत्व को ध्यान में रखते हुए एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। इसके अलावा शहरी विकास, ग्रामीण विकास, अवसरंचना, विनिर्माण आदि पर भी बातें तो हैं, लेकिन कोई बड़ी घोषणा नहीं की गई है। न ही अधोसंरचना में जो खामियां हैं, जिनके कारण जरा सी बारिश में शहरों में डूब की स्थिति बन जाती है, या दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ता रहता है, उनके स्थायी समाधान की कोई कोशिश बजट में नहीं दिखी है।