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रीइन्फोर्स्ड पेपर कप पर प्रतिबंध उचित और जनहित में : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली

न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि आईआईटी द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट (जिसके आधार पर सबसे पहले प्रतिबंध लगाया गया था) में कहा गया है कि रीइन्फोर्स्ड पेपर कप का उपयोग पर्यावरण के लिए हानिकारक होगा क्योंकि इससे अधिक पेड़ कटेंगे और इसके पुनर्चक्रण से अधिक प्रदूषण होगा।

उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु में 2019 में पेश किए गए रीइन्फोर्स्ड पेपर कप के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने के मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि राज्य सरकार की नीति जनहित में है। न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि आईआईटी द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट (जिसके आधार पर सबसे पहले प्रतिबंध लगाया गया था) में कहा गया है कि रीइन्फोर्स्ड पेपर कप का उपयोग पर्यावरण के लिए हानिकारक होगा क्योंकि इससे अधिक पेड़ कटेंगे और इसके पुनर्चक्रण से अधिक प्रदूषण होगा।

पीठ ने कहा, ”यह देखते हुए कि प्रतिबंध का वैज्ञानिक आधार है और जनहित में एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक उत्पादों की कई श्रेणियों पर प्रतिबंध लगाना राज्य सरकार का नीतिगत फैसला है, ऐसे में इस अदालत के लिए प्रतिबंध के गुण-दोष के आधार पर हस्तक्षेप करने की कोई गुंजाइश नहीं है। शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि प्रतिबंध अत्यधिक समावेशी और असंगत है।

बेंच ने कहा, “अनुच्छेद 19 (1) (जी) के तहत अपीलकर्ता के अधिकार को बिना किसी संदेह के प्रतिबंधित कर दिया गया है; लेकिन प्रदूषण मुक्त वातावरण के लिए आम जनता के व्यापक हित में भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (6) के अनुसार प्रतिबंध उचित था, और इसलिए इसे बरकरार रखा जाता है।”

शीर्ष अदालत ने हालांकि तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (टीएनपीसीबी) को संशोधित प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के आलोक में गैर-बुने हुए थैलों पर प्रतिबंध पर नए सिरे से पुनर्विचार करने का निर्देश दिया।

पीठ ने कहा, ”इस अदालत का मानना है कि गैर-बुने हुए बैग के मामले में दलीलें थोड़ी अलग हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि ये बैग कुछ हद तक प्रकृति में पुन: प्रयोज्य हैं। इन बैगों के निर्माण में इस्तेमाल किए गए पॉलीप्रोपेन और फिलर की संरचना/अनुपात को कस्टमाइज किया जा सकता है। पीठ तमिलनाडु और पुडुचेरी पेपर कप मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मद्रास उच्च न्यायालय के एक आदेश को चुनौती दी गई थी।

 

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