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लोकसभा में विपक्ष के नये तेवर सत्ता पक्ष को इस बार तगड़ी चुनौती मिलेगी !

ध्वनिमत के आधार पर 18वीं लोकसभा में बुधवार को अध्यक्ष पद पर एक बार फिर से ओम बिरला विराजमान हो गये हैं

ध्वनिमत के आधार पर 18वीं लोकसभा में बुधवार को अध्यक्ष पद पर एक बार फिर से ओम बिरला विराजमान हो गये हैं। निर्वाचन की बजाये सहमति में सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी ने जब रुचि नहीं दिखाई तो संयुक्त विपक्षी गठबन्धन इंडिया ने केरल के वरिष्ठ सांसद के. सुरेश से नामांकन तो भरवाया लेकिन बिरला की जीत को स्वीकार कर लिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ नेता प्रतिपक्ष बने राहुल गांधी एवं संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने उन्हें ससम्मान अध्यक्ष पद की आसंदी पर ले जाकर बिठाया। इस घटनाक्रम एवं तत्सम्बन्धी प्रक्रिया के दौरान लोकसभा में विपक्ष का बदला हुआ अंदाज़ स्पष्ट दिखा। इसने बतला दिया कि आने वाले समय में मोदी एवं उनकी सरकार को न केवल एक मजबूत व एकजुट बल्कि बेहतर रणनीति बनाकर आये हुए विपक्ष के साथ भिड़ना होगा। 2014 एवं 2019 की भांति कमजोर प्रतिरोध कम से कम इस लोकसभा में मोदी-भाजपा के नसीब में नहीं होने जा रहा है।

पहले सत्ता दल ने कोशिश की थी कि विपक्ष अपना उम्मीदवार खड़ा न करे। इसके लिये इंडिया के प्रतिनिधियों ने भाजपा व उसके नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस द्वारा अधिकृत रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मंगलवार को मुलाकात कर प्रस्ताव रखा गया कि डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को मिलना चाहिये। इस पर राजनाथ सिंह ने कहा कि वे इसके बारे में वे हाईकमान से चर्चा कर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को फोन करेंगे। वैसे उन्होंने यह भी आग्रह किया कि उपाध्यक्ष का मामला बाद में देखा जायेगा, पहले वे समर्थन घोषित करें। रात तक खरगे को इस बाबत कोई संदेश नहीं मिला तो के. सुरेश को उम्मीदवार बनाया गया। बुधवार सुबह तक भी राजनाथ सिंह ने कोई जवाब नहीं दिया तो साफ हो गया कि चुनाव होगा।

निर्धारित समयानुसार सुबह 11 बजे ध्वनिमत से बिरला को प्रोटेम अध्यक्ष भर्तृहरि मेहताब ने घोषित किया। जब उन्हें अध्यक्ष की कुर्सी तक लाया गया तो आदरपूर्वक मेहताब ने उन्हें पदभार सौंप दिया। यह तो पहले से तय था कि संख्या बल सत्ताधारी दल-गठबन्धन के साथ है फलत: बिरला की जीत तय है। इसलिये विपक्ष ने इस पर मतदान की कोई जोरदार मांग न कर बिरला की जीत स्वीकार कर ली। जब मेहताब ने मतदान की मांग को अस्वीकार कर दिया तो विपक्ष ने भी ज्यादा दबाव नहीं डाला। कहा जा सकता है कि इसके साथ ही सत्ता दल ने एक बाधा पार कर ली परन्तु सम्भवत: यह इंडिया की सोची-समझी चाल थी। प्रतीक स्वरूप प्रतिपक्ष ने अपना उम्मीदवार खड़ा किया, मतदान की हल्के स्वरों में मांग की और भाजपा-एनडीए के मुकाबले अपनी कम सदस्य संख्या को उजागर होने से बचा लिया। कहने को तो अभी इंडिया मजबूत है लेकिन सांसदों-विधायकों की खरीद-फरोख्त में माहिर भाजपा को कोई भी ऐसी चाल चलने का अवसर नहीं छोड़ा गया जिससे इंडिया की कमजोरी दिख जाये। उसे एक संदेश देना था कि वह सत्ता पक्ष के किसी भी फैसले को अब आंख मूंदकर समर्थन नहीं देने जा रही है; और यह संदेश बहुत साफ शब्दों में चला गया। सम्भवत: यही कारण था कि आज मोदी एवं उनके मंत्री पिछली दो लोकसभाओं के मुकाबले कहीं अधिक विनम्र व शांत नज़र आ रहे थे। पीएम ने संसदीय परम्परा के अनुरूप बिरला से सम्मानपूर्वक हाथ मिलाया तथा ‘कौन राहुल गांधी?’ पूछने वाले मोदी का राहुल गांधी के प्रति रवैया अपेक्षाकृत मृदु दिखा। दोनों एक साथ जिस प्रकार बिरला को आसंदी तक ले गये वह बतलाता है कि ‘एक अकेला मोदी सब पर भारी’ अब नहीं रहा।

लोकसभा की बदली तासीर की झलक बाद में सदस्यों के भाषणों में भी दिखी जो बिरला के सम्मान में व्यक्त किये गये। पक्ष-विपक्ष दोनों ही तरफ़ के ज्यादातर सदस्यों ने संसदीय परम्परा व गरिमा को ख्याल में रखते हुए बिरला की प्रशंसा करते हुए उनसे निष्पक्ष रहने का भरोसा तो जताया, लेकिन अनेक विपक्षी सदस्यों ने दो बातों की ताकीद कर दी- एक तो यह कि अठारहवीं लोकसभा पहले जैसी नहीं है (उनका आशय विपक्ष की बढ़ी हुई ताकत से था), दूसरे, अनेक सदस्यों ने बिरला को ध्यान दिलाया कि अपने पिछले कार्यकाल में उन्होंने विपक्ष को बोलने का अवसर कम दिया। राहुल गांधी ने कहा कि सरकार की तरह विपक्ष भी जनता की आवाज़ होता है और इस बार जनता की आवाज़ बड़ी बनकर सदन में उपस्थित हुई है। उन्होंने बिरला को याद कराया कि वे सदस्यों के अधिकारों के संरक्षक हैं और उनसे उम्मीद है कि वे प्रतिपक्ष की आवाज को दबने नहीं देंगे। समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने तंज कसते हुए आशा जतलाई कि नवनिर्वाचित अध्यक्ष का दबाव केवल विपक्ष पर नहीं चलेगा वरन सत्ता पक्ष पर भी बना रहेगा। कई वक्ताओं ने बिरला को उनके पिछले कार्यकाल की याद दिलाई जिस दौरान थोक में विपक्षी सदस्यों के निलम्बन हुए थे।

लोकसभा का बदला स्वरूप इस लिहाज़ से भी नज़र आया कि जब तमाम विपक्षी सदस्य बिरला के पिछले कार्यकाल के दौरान किये गये पक्षपातपूर्ण निर्णयों के बाबत बोल रहे थे, तब उन्होंने बहुत कम लोगों को कहने से रोका। एक-दो सदस्य जो ज्यादा लम्बा समय ले रहे थे, केवल उन्हें ही थोड़े में अपनी बात कहने के उन्होंने निर्देश दिये। सत्ता दल के सदस्यों द्वारा भी बहुत कम टोका-टाकी की जाती रही। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि आने वाला समय विपक्ष के लिये आरामदायक रहेगा। नये अध्यक्ष ने 25 जून, 1975 में लगाई गयी इमरजेंसी की निंदा करने वाला प्रस्ताव लाकर बतलाया कि वे भाजपा का एजेंडा चलाते रहेंगे। फर्क यही है कि इस बार उन्हें व सत्ता को तगड़ी चुनौती मिलेगी।

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