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मोदी का रवैया न बदलने के संकेत वे अपने पूर्ववर्ती रवैये को ही बरकरार रखेंगे ?

18वीं लोकसभा के विशेष सत्र की शुरुआत होने के पहले मीडिया के समक्ष उद्बोधन करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो कुछ कहा, उससे साफ है कि वे अपने पूर्ववर्ती रवैये को बरकरार रखेंगे

18वीं लोकसभा के विशेष सत्र की शुरुआत होने के पहले मीडिया के समक्ष उद्बोधन करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो कुछ कहा, उससे साफ है कि वे अपने पूर्ववर्ती रवैये को बरकरार रखेंगे। विपक्ष को कोसने तथा 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने जैसे सब्जबाग दिखाना वे बन्द नहीं करेंगे। इसके साथ यह भी साफ हो गया है कि विपक्ष को एक बड़ी लड़ाई के लिये तैयार रहना है। आशा इस बात से बंधती है कि इस बार सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी व उसके गठबन्धन नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) के मुकाबले संयुक्त प्रतिपक्ष इंडिया काफी मजबूत होकर लोकसभा में पहुंचा है। सोमवार को नवनिर्वाचित सदस्यों को शपथ दिलाने की कार्रवाई शुरू हुई जो मंगलवार तक जारी रहेगी। बुधवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू दोनों सदनों (राज्यसभा के साथ) के सदस्यों को सम्बोधित करेंगी। बाद में उनके अभिभाषण पर चर्चा होगी।

मोदी ने जो बातें राष्ट्र के सामने रखीं उनसे सर्वप्रथम तो उनका पराजय भाव ही नज़र आया क्योंकि उनका 370 व 400 पार का नारा विफल रहा। अपने चुनावी प्रचार के दौरान मोदी व भाजपा के सारे स्टार प्रचारक अकेली भाजपा के बूते 370 तथा एनडीए की सम्मिलित शक्ति 400 सदस्यों से अधिक होने की बात कर रहे थे। ऐसा तो नहीं हुआ, भाजपा 240 पर सिमट गई और उसे तेलुगु देशम पार्टी व जनता दल यूनाइटेड के सहारे सरकार बनानी पड़ी है। इस निराशा के चलते मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत 25 जून, 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल से की। भारतीय इतिहास की कटु व विषादपूर्ण घटनाओं को अपने राजनीतिक फायदे के लिये उछालने वाले मोदी इस कला के इसीलिये निष्णात माने जाते हैं कि वे उन्हें तोड़-मरोड़कर और सन्दर्भों से काटकर जनता के समक्ष परोसते हैं। इस सत्र की शुरुआत उन्हें सकारात्मक नोट से करनी चाहिये थी, लेकिन अपनी प्रवृत्ति के अनुरूप उन्होंने वही राह पकड़ी जिस पर वे पिछले दस वर्षों से चलते आये हैं।

मोदी की वाराणसी से तीसरी बार जीत में पहले दो के मुकाबले अंतर काफी घटा है। यहां तक कि मतदान के प्रथम दो-तीन चक्रों में वे पिछड़ भी चुके थे। अपनी इस नैतिक पराजय को भी किसी महान विश्वविजय की तरह प्रस्तुत करते मोदी ने विपक्ष को जो पाठ पढ़ाने की कोशिश की वह अपने आप में हास्यास्पद है। अपने पिछले दो कार्यकालों में जिन मोदी ने बेहद निरंकुश तरीके से सरकार चलाई, उनका यह दावा था कि ‘अब कभी भी कोई सरकार तानाशाही लागू करने की नहीं सोचेगा।’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘सांसदों से देश को बहुत अपेक्षाएं हैं अत: उन्हें जनहित व लोकसेवा के लिये इस अवसर का उपयोग करना चाहिये।’ एक जिम्मेदार विपक्ष की ज़रूरत बतलाते हुए मोदी ने कहा कि ‘लोग नारे नहीं सार्थकता चाहते हैं, व्यवधान नहीं बल्कि चर्चा और मेहनत चाहते हैं।’ उन्होंने विपक्ष के सवाल पूछे जाने व नारेबाजी को ‘ड्रामे’ की संज्ञा दी, जो बतलाता है कि मोदी ऐसी संसद चाहते हैं जो उनसे प्रश्न न करे। मोदी उसी भाजपा से आते हैं जिसने लम्बे समय तक विपक्ष की भूमिका निभाई है। उनका यह बयान बतलाता है कि मोदी को लोकतंत्र में प्रतिरोध का न तो महत्व ज्ञात है और न ही वे प्रतिपक्ष का सम्मान करना जानते हैं।

हमेशा की तरह मोदी की कथनी और करनी का अंतर साफ दिखा कि स्वयं मोदी पिछली दो सरकारों में चर्चाओं से न केवल परहेज करते रहे हैं बल्कि सरकार से पूछे जाने वाले सवालों को अवरूद्ध करते रहे हैं। किसी भी विवादास्पद विषय पर उन्होंने न तो सिलसिलेवार जवाब दिये और न ही तथ्यात्मक जानकारी संसद के अंदर प्रस्तुत की। पिछली लोकसभा के अंतिम दिनों में तो उन्होंने रिकॉर्ड डेढ़ सौ से ज्यादा सांसदों का निलम्बन कराया और अपने कारोबारी मित्रों गौतम अदानी व मुकेश अम्बानी के साथ उनके रिश्तों को लेकर पूछे गये किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया। इतना ही नहीं, मणिपुर की घटना हो या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन अथवा इलेक्टोरल बॉंडस का मुद्दा, इनमें से किसी पर भी पर मोदी ने कभी संसद में विपक्ष के पूछे सवालों के जवाब नहीं दिये। उल्टे, इस बाबत हुई चर्चाओं में विपक्षी नेताओं के वक्तव्यों के बड़े हिस्सों को विलोपित किया गया था। अक्सर मोदी विरोधियों के सवालों के उत्तर सदन के बाहर रैलियों व अन्य मंचों से दिये जाने वाले भाषणों में देते रहे। इसलिये उनका प्रतिपक्ष को चर्चा का आह्वान अपने आप में किसी बड़े लतीफे से कम नहीं है।

उनके भाषण पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जन खरगे ने जो प्रतिक्रिया दी है, वह गौर करने के लायक है। उन्होंने कहा कि ‘मोदी का अहंकार गया नहीं है। 50 वर्ष पुरानी इमरजेंसी की तो वे याद दिला रहे हैं लेकिन वे खुद पिछले दस साल अघोषित तानाशाह के रूप में कार्य करते रहे हैं।’ खरगे के अनुसार ‘मोदी की निरंकुशता के खिलाफ जनादेश है, फिर भी अगर वे प्रधानमंत्री बने हैं तो उन्हें काम करना चाहिये।’ बहरहाल, नयी लोकसभा के पहले दिन ही मोदी ने जो भाषण दिया है वह स्पष्ट इंगित करता है कि मोदी अगला कार्यकाल भी उसी अंदाज़ में चलाएंगे। अब यह विपक्ष पर है कि वह कैसे उनकी इसी कार्यप्रणाली के बीच से राह निकालता है। जैसा मोदी का दावा था कि इंडिया 4 जून की शाम को बिखर जायेगा, वैसा बिलकुल नहीं हुआ, जो संतोष की बात है। फिर, इंडिया के सांसदों ने हाथों में संविधान की प्रतियां रखी थीं जिसे बचाने वे कटिबद्ध भी दिखाई दिये।

 

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