मणिपुर पर भाजपा का अजीब रवैया डबल इंजन की सरकार फ़िरभी ….?

मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच हिंसक संघर्ष को खड़े हुए साल भर से अधिक का वक्त बीत गया है
मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच हिंसक संघर्ष को खड़े हुए साल भर से अधिक का वक्त बीत गया है। लेकिन वहां शांति कायम होने की पुख्ता जमीन अब तक तैयार नहीं हो पाई है। अलबत्ता गृहमंत्री अमित शाह ने सोमवार को एक उच्च स्तरीय बैठक की, जिसमें मणिपुर के हालात पर समीक्षा की गई। जिसमें फैसला लिया गया कि गृह मंत्रालय मैतेई और कुकी समुदाय से बात करेगा। गृह मंत्री शाह ने राज्य के मुख्य सचिव विनीत जोशी को विस्थापितों के लिए उचित स्वास्थ्य-शिक्षा सुविधाएं और उनके पुनर्वास को सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। गृह मंत्रालय को ओर से जारी बयान में कहा गया कि जरूरत पढ़ने पर राज्य में केन्द्रीय बलों की तैनाती बढ़ाई जाएगी। राज्य में शांति और सौहार्द्र बहाल करने के लिए बलों को रणनीतिक रूप से तैनात किया जाना चाहिए। मणिपुर में हिंसा फैलाने वालों को खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। इस बैठक में अमित शाह के साथ केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला, खुफिया ब्यूरो प्रमुख तपन डेका, सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे, मणिपुर के सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह, मणिपुर के मुख्य सचिव विनीत जोशी, मणिपुर के डीजीपी राजीव सिंह और असम राइफल्स के डीजी प्रदीप चंद्रन नायर शामिल थे। लेकिन मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह का नाम इसमें नहीं था।
केन्द्र और राज्य के प्रशासनिक, पुलिस और सुरक्षा अधिकारियों का बैठक में होना जरूरी था, क्योंकि सरकार के निर्णयों को जमीन पर उतारने का काम इन्हीं का होता है। लेकिन क्या मणिपुर की सत्ता राज्य सरकार नहीं बल्कि केंद्र सरकार संभाल रही है। अगर ऐसा नहीं है तो फिर बीरेन सिंह के इस बैठक में शामिल न होने के क्या कारण हो सकते हैं। क्या राज्य की सुरक्षा व्यवस्था के मामले में उन्हें दूर रखकर केंद्र सरकार ने मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को यह संदेश दिया है कि उन पर अब भरोसा नहीं रहा। कारण जो भी हो, लेकिन केंद्र सरकार का यह रवैया लोकतांत्रिक नहीं है।
मणिपुर और केंद्र दोनों जगह भाजपा ही सत्ता में है। भाजपा की जुबान में इसे डबल इंजन सरकार कहा जाता है। लेकिन दोनों जगह भाजपा के सत्ता में होने का यह अर्थ कतई नहीं है कि मणिपुर का शासन केंद्र से चले। अगर भाजपा को एन बीरेन सिंह की प्रशासनिक अक्षमता से शिकायत है, तो उन्हें पद से हटाना चाहिए या फिर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना चाहिए।
वैसे भी मणिपुर के मामले में केंद्र सरकार का रवैया समझ से परे ही रहा है। पिछले साल मई के शुरुआती दिनों में जब मणिपुर के हालात बिगड़ने शुरु हुए, प्रधानमंत्री मोदी तब भी वहां नहीं गए थे और अब जबकि उन्होंने फिर से प्रधानमंत्री का पद संभाल लिया है, उनकी प्राथमिकता में मणिपुर शायद अब भी नहीं है। जी-7 की बैठक में शामिल होने के लिए वे इटली तक हो आए, लेकिन मणिपुर जाने का उन्हें वक्त नहीं मिला है। मणिपुर पर अब भी अमित शाह बैठक कर रहे हैं। पिछले साल अमित शाह ने वहां का दौरा भी किया था, लेकिन हालात नहीं सुधरे और अब आलम ये है कि हाल ही में मुख्यमंत्री के काफिले पर हमले से लेकर उनके आवास के पास में आगजनी तक हो गई। फिर भी केंद्र सरकार मैतेई और कुकी समुदाय से चर्चा की बात ही कर रही है। पिछले एक साल में केंद्र सरकार ने दोनों पक्षों से बातचीत की ऐसी कितनी कोशिशें की हैं, और उनका क्या नतीजा निकला है, यह भी अमित शाह को बता देना चाहिए, ताकि जनता को यकीन हो कि मणिपुर को लेकर सरकार वाकई गंभीर है।
हाल ही में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने मणिपुर के मामले में अपनी नाखुशी जाहिर करते हुए कहा था कि मणिपुर पिछले एक साल से शांति स्थापित होने की प्रतीक्षा कर रहा है।
दस साल पहले मणिपुर में शांति थी। ऐसा लगा था कि वहां बंदूक संस्कृति खत्म हो गई है, लेकिन राज्य में अचानक हिंसा बढ़ गई है। मणिपुर की स्थिति पर प्राथमिकता के साथ विचार करना होगा। श्री भागवत के इस कथन के बाद ही अमित शाह ने यह उच्च स्तरीय बैठक की है, जिस पर कहा जा रहा है कि यह संघ के दबाव का असर है। इस आकलन में कितनी सच्चाई है, यह तो पता नहीं, लेकिन ऐसा है तब भी इसे आदर्श स्थिति नहीं कहा जा सकता। क्योंकि केंद्र और राज्य की सत्ता जनता ने भाजपा को सौंपी है, संघ को नहीं। इसलिए हालात संभालने की चिंता भाजपा की होनी चाहिए। मगर अब भाजपा के रवैये को देखकर चिंता बढ़ रही है।
मणिपुर में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति श्रेणी में शामिल करने की मांग के विरोध में पिछले साल कुकी और मैतेई समुदाय के बीच संघर्ष की शुरुआत हुई थी। चुराचांदपुर से शुरु हुई हिंसा धीरे-धीरे पूर्वी-पश्चिमी इंफाल, बिष्णुपुर, तेंगनुपाल और कांगपोकपी जिलों में फैलती गई और फिर पूरे राज्य को अपनी चपेट में ले लिया। अगर इस आग को शुरु में ही काबू कर लिया जाता तो एक सुंदर प्रदेश बर्बाद होने से बच जाता। मगर राज्य और केंद्र की भाजपा सरकारें न जाने किन कारणों से आग को फैलते हुए देखती रही। दो महिलाओं की नग्न परेड जैसी भयावह घटना से लेकर आगजनी और कत्ल की न जाने कितनी घटनाएं इस राज्य में हुईं। हजारों लोग अब भी घरों से बेदखल हैं। जिनेवा के इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2023 में दक्षिण एशिया में 69 हजार लोग विस्थापित हुए। इनमें से 97 प्रतिशत यानी 67 हजार लोग मणिपुर हिंसा के कारण विस्थापित हुए थे।
इतने बुरे हालात के बावजूद केंद्र सरकार अब भी केवल बैठक करके मणिपुर को संभालना चाह रही है और इस प्रक्रिया में भी मुख्यमंत्री को अलग रखा गया है, और प्रधानमंत्री अब भी मणिपुर से दूर ही हैं।