मोदी-शाह द्वारा विपक्ष को धमकाने के मायने में मोदी की जबर्दस्त घेराबन्दी ?

लोकसभा चुनाव का प्रचार करते हुए भारतीय जनता पार्टी के दोनों स्टार प्रचारकों, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह जिस प्रकार से विरोधी दलों एवं उनके नेताओं को धमका रहे हैं
लोकसभा चुनाव का प्रचार करते हुए भारतीय जनता पार्टी के दोनों स्टार प्रचारकों, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह जिस प्रकार से विरोधी दलों एवं उनके नेताओं को धमका रहे हैं, उससे यह फिर से साबित हुआ है कि भाजपा को लोकतांत्रिक मूल्यों में कतई आस्था नहीं है। अपने दस वर्षों के शासन काल में मोदी ने विपक्ष मुक्तभारत बनाने के लिये देश के लोकतांत्रिक व संवैधानिक ढांचे को ध्वस्त तो किया ही है, दोनों की हालिया धमकियां बताती हैं कि वे किसलिये तीसरी बार सरकार बनाने के लिये बेतरह उतावले हैं। साफ है कि अब तक वे जिस प्रकार से प्रतिपक्ष को कुचलते आये हैं, उसी बचे-खुचे काम को अबकी बार 400 पार का लक्ष्य पाकर करना चाहते हैं। मोदी-शाह अपनी धमकियों को किस प्रकार से अंजाम देते हैं, इसके लिये उन्हें तीसरी मर्तबा चुनाव बड़े बहुमत से जीतना होगा जिसके संकेत तो दिखलाई नहीं देते परन्तु ये धमकियां बताती हैं कि उनके जीतने पर स्थिति बदतर ही होंगी।
बिहार के काराकट की प्रचार सभा में शनिवार को मोदी ने कहा कि ‘हैलीकॉप्टर में राइड करने का समय पूरा होने के बाद ये आरजेडी वालों को नौकरी के बदले जमीन मामले में जेल जाना होगा।’ उनका आशय राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव (बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री) एवं उनके पिता लालू प्रसाद यादव (पूर्व मुख्यमंत्री-बिहार) की ओर था। पिछले कुछ समय से मोदी व भाजपा इस मुद्दे को लेकर तेजस्वी पर हमलावर हैं। वैसे पलटवार करते हुए तेजस्वी ने रविवार को कहा कि ‘एक 74 वर्ष का नेता उनके राज्य में आकर उन्हें जेल भेजने की धमकी दे रहा है।’ उन्होंने साफ किया कि ‘वे इन गीदड़ भभकियों से डरते नहीं’ और बतलाया कि- ‘यह झारखंड नहीं बिहार है। उन्हें हाथ लगाया तो पटना से दिल्ली तक आंदोलन होगा।’ इस बात को लेकर मोदी की जबर्दस्त घेराबन्दी हुई है। ये तो रही मोदी की बात, उधर अमित शाह ने पंजाब के लुधियाना की एक सभा में जनता से कहा कि ‘आप कुछ लोगों को इधर भेजो, चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी की सरकार गिर जायेगी।’ उधर एक दिन पहले ही मोदी ने अपने एक और भाषण में अपनी मुफ्त राशन योजना को वोट से जोड़ते हुए अप्रत्यक्ष रूप से कह दिया कि लाभार्थियों को उन्हें वोट देना चाहिये ताकि उन्हें ‘पुण्य’ मिल सके। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि ‘राशन देने वाले (यानी वे स्वयं) को जो वोट नहीं देगा वह पाप करेगा।’
पाप-पुण्य की बात तो अवधारणात्मक है अत: उस पर चर्चा फिजूल है, लेकिन जो दो अन्य धमकियां मोदी व शाह ने दी हैं (तेजस्वी को जेल भेजने एवं पंजाब सरकार को गिराने की) वे बहुत गम्भीर प्रकृति की हैं। मोदी ने तेजस्वी को जेल भेजने की धमकी देकर यह साबित कर दिया है कि वे चाहें केवल कार्यपालिका प्रमुख हों लेकिन वे न्यायिक शक्तियां भी रखते हैं। कायदे से किसी को जेल भेजने या न भेजने का निर्णय कोर्ट करती हैं। पुलिस या अन्य जांच एजेंसियां केवल अभियोजन पेश करती हैं। यहां तक कि दोषियों को जांच एजेंसियों की हिरासत में रखना है या न्यायिक हिरासत में, या छोड़ देना है-यह तय करने का भी काम न्यायपालिका का है, न कि पुलिस या कार्यपालिका के किसी भी अंग का- चाहे वह कितने भी ऊंचे पद पर क्यों न हो। मोदी ने जिस कथित आरोप में लालू परिवार के सदस्यों को (जिनमें तेजस्वी भी शामिल हैं) जेल भेजने की बात कही, उसकी कई बार जांच हुई और हर बार फाइल बन्द हुई है। मोदी का किसी बन्द हो चुके मामले को लेकर किसी को धमकाना बेहद शर्मनाक है, वह भी केवल इसलिये क्योंकि वह उनके विरोधी दल का है।
मोदी की धमकी यह भी दर्शाती है कि वे जिसे चाहें उसे जेल भेज सकते हैं। यानी उनके लिये अपराध का स्वरूप, उसकी वास्तविकता, अपराध संहिता या न्यायिक प्रक्रिया का कोई महत्व या मायने नहीं है। उनकी बात यह भी संकेत देती है कि उनके कार्यकाल में बगैर अपराध बड़ी संख्या में लोगों को विभिन्न तरह के मामलों में जेल भेजा गया है वे मामलों के गुण-दोषों के आधार पर नहीं बल्कि मोदी की मर्जी से भेजे गये हैं। इनमें केवल प्रतिपक्षी नेता नहीं बल्कि सरकार की आलोचना करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील, पत्रकार, लेखक, बुद्धिजीवी आदि शामिल हैं। ऐसे वक्त में जब चुनाव का आखिरी चरण बचा है और नतीजे आने में मात्र एक ही हफ्ता शेष है, मोदी की धमकी बतलाती है कि भाजपा की जमीन खिसकी हुई है और मोदी को विपक्ष की गम्भीर चुनौती मिल रही है।
शाह द्वारा लोकसभा चुनाव के बाद पंजाब सरकार को गिराने की धमकी किसी निर्वाचित सरकार को गैर लोकतांत्रिक तरीके से गिराने के उनके इरादे और अभी से तैयारी की ओर इशारा है। वैसे तो 2014 में केन्द्र की सत्ता में आई भाजपा अपने दोनों कार्यकालों में यही काम मनोयोग से करती आई है। विपक्ष की बहुमत वाली राज्य सरकारें वह विधायकों को खरीदकर या धमकाकर तोड़ती-गिराती आई है। उन्हें हटाकर भाजपा की सरकारें बिठाने को ‘ऑपरेशन लोटस’ जैसा नाम दिया गया है। पहले ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ और बाद में ‘विपक्ष मुक्त भारत’ बनाने के अपने कुटिल लक्ष्यों को हासिल करने हेतु भाजपा ने तमाम लोकतांत्रिक मर्यादाएं लांघी हैं। इससे संघवाद कमजोर हुआ और राजनीतिक अपसंस्कृति विकसित हुई है। शाह की धमकी इस बात की भी पुष्टि है कि वह विरोधी दलों की सरकारों को गिराने में कोर-कसर कभी नहीं छोड़ेगी।