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जेब पर नज़र रखने वाले वित्त मंत्री जनता के बीच जाने से करते हैं परहेज़

इसे लोकतंत्र की विडंबना ही कहा जा सकता है कि जिस मंत्री का कामकाज जनता की सीधे प्रभावित करता है वह जनता के बीच जाने से बचता है। जी हां, बात है वित्त मंत्रियों की। इनकम टैक्स से लेकर तमाम तरह के टैक्स घटा-बढ़ा कर जनता की जेब पर नजर रखने वाले वित्त…

नेशनल डेस्क

इसे लोकतंत्र की विडंबना ही कहा जा सकता है कि जिस मंत्री का कामकाज जनता की सीधे प्रभावित करता है वह जनता के बीच जाने से बचता है। जी हां, बात है वित्त मंत्रियों की। इनकम टैक्स से लेकर तमाम तरह के टैक्स घटा-बढ़ा कर जनता की जेब पर नजर रखने वाले वित्त मंत्री लोकसभा चुनाव के जरिये जनता की अदालत में जाने से परहेज करते है। पिछले 44 साल (1980) के बाद) के आकलन में यह प्रवृत्ति सामने आई है। दिलचस्प यह है कि जिन वित्त मंत्रियों ने चुनाव लड़ा उन्हें जनता ने हार का स्वाद चखाया। मौजूदा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने तो चुनाव मैदान में उतरने से यह कह कर इनकार कर दिया कि न तो उनके पास न तो चुनाव लड़ने के संसाधन है और न ही जीतने की कला।

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सरकार बनी, तो अमृतसर से लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद अरुण जेटली मंत्री बनाए गए। उनके अस्वस्थ होनेधरी पीयूष गोयल ने जनवरी- फरवरी 2019 के लिए मंत्रालय जिम्मेदारी संभाली थी। जब 2019 के लोकसभा चुनाव हुए तो दोनों ही मंत्री चुनाव नहीं लड़े। मोदी के दूसरे कार्यकाल में पांच साल से निर्मला सीतारमण लेकिन जिम्मेदारी संभाली थी। यूपीए की पहली सरकार में पी.चिदंबरम वित्त मंत्री बने लेकिन 2008 में मुंबई हमले के बाद उन्हें शिवराज पाटिल की जगह गृह मंत्रालय सौंपा गया। वित्त मंत्रालय पीएम मनमोहन सिंह ने खुद के पास ही रखा।

मनमोहन सिंह 2009 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़े। यूपीए के दूसरे दूसरे कार्यकाल में पहले प्रणब मुखर्जी और फिर चिवबरम वित्त मंत्री बने। 2014 में चिवंबरम ने चुनाव नहीं लड़ा। उनकी जगह उनके बेटे ने चुनाव लड़ा और हारे।

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