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सत्ता समाले नव साल होने पर देश की जनता को मोदीजी दें पाएगे मजबूती का परिचय ?

प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता में आने के साथ ही पुरानी सरकारों की अपनाई गई नीतियों और फैसलों को बदलने का काम किया

 

प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता में आने के साथ ही पुरानी सरकारों की अपनाई गई नीतियों और फैसलों को बदलने का काम किया, ताकि उनका नाम एक मजबूत प्रधानमंत्री के तौर पर दर्ज हो सके। भारत को पूरी तरह बदल देने के उनके जुनून ने बहुत से दीर्घकालिक नुकसान कर दिए हैं। लेकिन इस वक्त उनकी तथाकथित लोकप्रियता के फेर में इन नुकसानों का सही आकलन नहीं किया जा रहा है। विश्व में भारत की पहचान हमेशा से शांतिप्रिय देश के तौर पर रही। गांधीजी दुनिया में अहिंसा के पुजारी माने गए और नेहरूजी शांति दूत। भारत को विश्वगुरु और विश्वमित्र बनाने का कोई घोषित ऐलान पहले की सरकारों ने नहीं किया और दुनिया के मानचित्र में भारत का अनूठा, सम्मानजनक स्थान बना रहा। लेकिन मोदी सरकार के नौ सालों के कार्यकाल में विदेश नीति में अघोषित प्रयोग हुए और उसका नतीजा ये रहा कि पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल और चीन जैसे पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में उतार-चढ़ाव आए ही, अब कनाडा के साथ रिश्ते दांव पर लग गए हैं।

संबंधों में इस कड़वाहट के लिए जिम्मेदार कनाडा ही है, लेकिन सवाल मोदी सरकार पर भी उठेंगे कि आखिर उसने कनाडा की नीयत को पहचाना कैसे नहीं। क्यों खालिस्तान जैसा मुद्दा, जो भारत की अखंडता के लिए बड़ा खतरा है, वह फिर से जिंदा हो गया है। देश जानता है कि खालिस्तान आंदोलन ने किस तरह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी समेत कई बड़े राजनेताओं, अधिकारियों, और गणमान्य नागरिकों की शहादत ली। बड़ी मुश्किल से इस आग को शांत किया गया था, लेकिन अब इसकी लपटें कनाडा से उठती दिख रही हैं। याद करें कि जब 2020- 2021 में किसान आंदोलन चल रहा था, तब आंदोलनकारियों को खालिस्तानी कहकर अपमानित किया गया था। यह सब मोदी सरकार की नाक के नीचे होता रहा और प्रधानमंत्री मोदी से यह कहते नहीं बना कि देश में बंद किए जा चुके इस दुखदायी अध्याय को किसी भी कारण से फिर न खोला जाए। देश को जब भी जरूरत होती है प्रधानमंत्री चुप ही रहते हैं। अब भी कनाडा के साथ इतनी कड़वाहट बढ़ गई है और इस वजह से लाखों भारतीय जो इस समय पढ़ने, काम करने या अन्य वजहों से कनाडा में हैं, वे अपने भविष्य को लेकर सशंकित हो रहे हैं।

भारत सरकार की ओर से एडवाइज़री जारी हो चुकी है। विदेश मंत्री इस मामले में लगातार बयान दे रहे हैं, लेकिन श्री मोदी की ओर से जो आश्वस्ति कनाडा में रहने वाले भारतीयों और यहां उनके परिजनों को मिलनी चाहिए, उसकी कमी कहीं न कहीं महसूस हो रही है। इस बीच कनाडा के साथ विवाद सुलझने की जगह और उलझता दिख रहा है, क्योंकि इसमें अब अमेरिका की राय भी सामने आ गई है।

गौरतलब है कि पिछले हफ्ते जी-20 की बैठक से लौटने के बाद कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत पर एक गंभीर आरोप लगाया। कनाडाई नागरिक और भारत में आतंकी घोषित हरदीप सिंह निज्जर की जून में हुई हत्या के मामले में ट्रूडो ने कहा था कि निज्जर की हत्या के पीछे ‘भारत सरकार के एजेंट’ हो सकते हैं। ट्रूुडो ने संसद में ये बड़ा आरोप लगाया और इसके पीछे सबूतों के होने का दावा भी किया। हालांकि वो सबूत अबतक सामने नहीं आए हैं। लेकिन इसके बाद से भारत और कनाडा के बीच संबंध एकदम से बिगड़ गए। अब हालात ऐसे हैं कि राजनयिकों को वापस बुलाया जा रहा है।

भारत ने कनाडा के लोगों को वीज़ा देने पर रोक लगा दी है, वहीं कनाडा ने भारत आए कनाडाई नागरिकों के लिए नयी एडवायजरी जारी की है,जिसमें कहा गया है- ‘कनाडा और भारत में हाल के घटनाक्रमों के संदर्भ में, विरोध प्रदर्शन के आह्वान और सोशल मीडिया पर कनाडा के प्रति कुछ नकारात्मक भावनाएं हैं। कृपया सतर्क रहें और सावधानी बरतें।’ उधर निज्जर की हत्या के खिलाफ खालिस्तानी समर्थकों ने मंगलवार को कनाडा के टोरंटो, ओटावा और वैंकूवर में भारतीय दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। खालिस्तान समर्थक संगठन – ‘सिख फॉर जस्टिस’ (एसएफजे) के सदस्यों के नेतृत्व में प्रदर्शनकारियों को नारे लगाते और खालिस्तानी झंडे लहराते देखा गया।

इस बीच फाइनेंशियल टाइम्स में छपी एक खबर के मुताबिक अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और अन्य पश्चिमी नेताओं ने जी-20 सम्मेलन में निज्जर हत्या के मामले को प्रधानमंत्री मोदी के सामने उठाया था। रिपोर्ट है कि उन नेताओं ने कहा था कि नयी दिल्ली से जुड़े एजेंट वैंकूवर में सिख अलगाववादी की हत्या में शामिल थे। यही बात ट्रूडो ने भी कही थी कि उन्होंने जी-20 के दौरान निज्जर की हत्या का मामला उठाते हुए भारत से कार्रवाई की मांग की थी। लेकिन भारत ने उनकी बात का खंडन कर दिया था। खबरें ये भी हैं कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर इनपुट कनाडा के साथ साझा किए थे। इसके अलावा अमेरिका के विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कनाडा के आरोपों की गहन जांच के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि हम कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की तरफ से संदर्भित आरोपों से चिंतित हैं। हम अपने कनाडाई सहयोगियों के साथ निकट संपर्क में हैं। अमेरिका ने यह भी कहा कि जांच आगे बढ़नी चाहिए और अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाने का आह्वान किया।

अमेरिका जिस तरह का रुख इस समय दिखा रहा है वह उसके दोहरे मापदंडों को बताता है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रविवार को कहा भी कि दुनिया अभी भी डबल स्टैंडर्ड यानी दोहरे मापदंड से चल रही है। जो देश प्रभावशाली हैं वे स्थिति में बदलाव का विरोध कर रहे हैं और ऐतिहासिक रूप से शक्तिशाली देश इन क्षमताओं का इस्तेमाल हथियारों की तरह कर रहे हैं। जयशंकर का इशारा निश्चित ही पश्चिमी देशों की ओर है, लेकिन अब भारत को इशारों में नहीं साफ-साफ अपनी बात वैश्विक मंच पर रखना चाहिए। अमेरिका एक ओर भारत का मित्र बनकर रहे और दूसरी ओर उन शक्तियों का समर्थन करे, जो भारत की अखंडता के लिए खतरा हैं, यह किसी हाल में स्वीकार्य नहीं होना चाहिए। श्रीमान मोदी अपनी मजबूती का परिचय वैश्विक पटल पर दें, यह वक्त की मांग है।

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