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मोदी शाशन में जनादेश का बार बारअपमान क्यों ?

महाराष्ट्र में जारी सियासी संकट के बीच आज मुख्यमंत्री और शिवसेना के मुखिया उद्धव ठाकरे ने फेसबुक लाइव के जरिए जनता को संबोधित किया…..

महाराष्ट्र में जारी सियासी संकट के बीच आज मुख्यमंत्री और शिवसेना के मुखिया उद्धव ठाकरे ने फेसबुक लाइव के जरिए जनता को संबोधित किया और शिवसेना के बागी विधायकों को दो टूक अपना फैसला सुना दिया कि अगर कोई उनसे आमने-सामने आ कर कहे कि वे मुख्यमंत्री पद से हट जाएं, तो वे इस्तीफा दे देंगे। उद्धव ठाकरे के पिता बाल ठाकरे बिना लाग-लपेट के खरी-खरी बात कहने और अपने तल्ख तेवरों के लिए जाने जाते थे, शिवसेना के प्रतीक शेर को चरितार्थ करते हुए। उनके भतीजे राज ठाकरे ने भी उनके जैसे तेवर अपनाए, जबकि उद्धव ठाकरे की छवि सौम्य और शांत नेता की बनी रही। मगर बुधवार शाम फेसबुक लाइव पर उद्धव ठाकरे ने शेर की तरह दहाड़ कर अपने विरोधियों को चुनौती दे दी कि उनकी सरकार और उनकी पार्टी को जो भी चुनौतियां दी जाएंगी, वो उसका सामना करने के लिए तैयार हैं।

शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे ने खुद को बाल ठाकरे का सच्चा अनुयायी और हिंदुत्व का रक्षक बताने की कोशिश की थी। जिस पर उद्धव ठाकरे ने जवाब दे दिया कि सेना और हिंदुत्व हमेशा बरकरार हैं। शिवसेना को हिंदुत्व से अलग नहीं किया जा सकता है और हिंदुत्व को शिवसेना से अलग नहीं किया जा सकता है। बाल ठाकरे के गुजर जाने के बाद 2014 में हम अकेले लड़े थे। मैं पिछले ढाई साल से सीएम हूं और जितने भी नेता चुने गए हैं, वे सब बाल ठाकरे की शिवसेना पार्टी से हैं। इसके साथ ही उद्धव ठाकरे ने ये भी बता दिया कि महाविकास अघाड़ी गठबंधन में मजबूती कायम है और कांग्रेस-एनसीपी दोनों चाहते हैं कि वे मुख्यमंत्री बने रहें।

उद्धव ठाकरे से इस तरह के जवाब या पलटवार की उम्मीद शायद एकनाथ शिंदे और भाजपा को नहीं रही होगी। कर्नाटक और मध्यप्रदेश में ऑपरेशन लोटस चलाकर भाजपा ने दूसरे दलों के विधायकों को बड़ी आसानी से अपने पक्ष में तोड़ लिया था। महाराष्ट्र में भी काफी सारे शिवसेना विधायक अभी भाजपा की निगरानी में गुवाहाटी में हैं, लेकिन फिर भी भाजपा को अपनी उम्मीदों के अनुरूप परिणाम नहीं मिल रहे हैं। क्योंकि उद्धव ठाकरे ने शिवसेना विधायकों को चुनौती दे दी है कि वे उनके सामने आकर या फोन पर कहें कि वे उन्हें मुख्यमंत्री नहीं देखना चाहते। अब बागी विधायकों में कितने लोग ऐसा कर पाएंगे, ये पता नहीं। इस बीच एकनाथ शिंदे ने भरत गोगावले को शिवसेना का चीफ व्हिप नियुक्त कर विधायकों की संख्या बल के आधार पर अपनी शिवसेना को असली शिवसेना बताने का दांव भी खेला। शिवसेना को तोड़ने की ये कोशिश कामयाब होगी या नहीं और अगर हो गई क्या तब भी सत्ता हासिल करने में एकनाथ शिंदे को सफलता मिलेगी या नहीं, इन सवालों के जवाब भी जल्द ही सामने होंगे। हो सकता है उद्धव ठाकरे विधानसभा भंग कर फिर से चुनाव कराने का प्रस्ताव दे दें। हालांकि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी इस वक्त कोरोना संक्रमित हैं और इलाज करा रहे हैं, तो वे कब तक कोई निर्णय लेंगे, ये भी देखना होगा।

फिलहाल ये देखकर दुख हो रहा है कि सत्ता हासिल करने के लिए किस तरह लोकतंत्र और संविधान की मर्यादाओं को सरेराह अपमानित किया जा रहा है। दो दिन पहले शिवसेना के बागी विधायक सूरत के एक होटल पहुंच गए थे और मंगलवार रात उन्हें गुवाहाटी पहुंचा दिया गया। जिस तरह मवेशियों को एक जगह से दूसरी जगह गड़ेरिया ले जाता है, कुछ उसी अंदाज में जनता द्वारा निर्वाचित विधायकों को ले जाया गया। फर्क इतना ही है कि भेड़-बकरियों को बाड़े में कैद रखा जाता है, और विधायकों को पांच सितारा होटल के सुविधायुक्त बाड़े में कैद रखा गया। असम इस वक्त बाढ़ की चपेट में है, हजारों लोग बाढ़ से प्रभावित हैं। जन-धन का भारी नुकसान हुआ है। सरकार की प्राथमिकता इस वक्त लोगों को राहत पहुंचाने की होनी चाहिए और वो काम अच्छे से संपन्न हो जाए, तो फिर शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून-व्यवस्था जैसे ढेरों मुद्दे हैं, जिन पर लगातार काम करने की जरूरत है। मगर असम की भाजपा सरकार इस वक्त महाराष्ट्र से आए विधायकों की देखभाल में लगी है। इस बीच एक चौंकाने वाली खबर भी आई, जिसमें शिवसेना विधायक नितिन देशमुख ने आरोप लगाया कि उन्हें जबरदस्ती सूरत ले जाया गया और वहां दिल का मरीज बताकर अस्पताल में भर्ती करने की कोशिश भी हुई। इससे पहले नितिन देशमुख की पत्नी ने उनके लापता होने की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई थी। आरोप ये भी हैं कि शिवसेना के कई विधायकों को इसी तरह जबरदस्ती ले जाया गया है। इन आरोपों की सच्चाई सामने आने ही चाहिए। अदालत इस मामले में स्वत: संज्ञान ले, तो बहुत सी बातों का खुलासा हो सकता है।

महाराष्ट्र में बाल ठाकरे और हिंदुत्व की दुहाई देते हुए सत्ता हथियाने का जो खेल रचा गया है, उसमें सीधे-सीधे जनादेश का अपमान हो रहा है। लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को अगर इस तरह कैद करके रखा जाए, उन्हें करोड़ों रुपए देकर तोड़ा जाए, और फिर बहुमत का आंकड़ा जुटा लेने के बाद संविधान की शपथ लेते हुए सरकार बनाई जाए, तो यह जनता और संविधान दोनों का अपमान है। यह अपमान किसी न किसी राज्य में लगातार हो रहा है, अब इस पर रोक लगनी जरूरी है।

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