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कंगना जैसे लोग भाजपा विरोधी दलों व नेताओं के खिलाफ सतत बयानबाजी की वे आज मोदी-भाजपा के आभूषण हैं ?

भारतीय जनता पार्टी के दस वर्षीय शासनकाल में जो विवेकशून्य और ज्ञानहीन लोगों की खेप इस संगठन में उतारी गई है उनमें हालिया नाम कंगना रनौत का है

भारतीय जनता पार्टी के दस वर्षीय शासनकाल में जो विवेकशून्य और ज्ञानहीन लोगों की खेप इस संगठन में उतारी गई है उनमें हालिया नाम कंगना रनौत का है। भाजपा व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आंखों में बहुत कम समय में चढ़ने वाली कंगना को हिमाचल प्रदेश के मंडी लोकसभा क्षेत्र से टिकट दिया गया है। हिन्दी सिनेमा की सफल अभिनेत्री के रूप में उनकी पहचान बनी है परन्तु उनका भाजपा में स्वागत व समावेश इस कारण से हुआ है क्योंकि उन्होंने पिछले कुछ समय से भाजपाविरोधी दलों व नेताओं के खिलाफ सतत बयानबाजी की है। बयान भी ऐसे ऊलजलूल कि वे भाजपा जैसे दल के लिये ही स्वीकार्य और स्वागत योग्य हो सकते हैं। वैसे तो कंगना अपने बयानों से लोगों का ध्यान खींचती रही हैं परन्तु उनका ता•ाा-तरीन बयान विशेष चर्चा में आया है। उन्होंने एक न्यू•ा चैनल में कहा कि ‘देश के पहले प्रधानमंत्री सुभाषचन्द्र बोस थे जिनका आज तक कहीं पता नहीं है।’ उनके इस बयान पर नेताजी के पोते चंद्रकुमार बोस ने उन्हें फटकार लगाई है। देश के सर्वाधिक सम्मानित नेताओं में से एक सुभाष बाबू के वारिस ने कहा कि ‘किसी को भी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिये इतिहास को विकृत नहीं करना चाहिये।’

सवाल यह है कि क्या कंगना रनौत इतिहास से इतनी अनभिज्ञ हैं कि उन्हें यह भी नहीं पता कि जिस लोकसभा में प्रवेश पाने के लिये वे मतदाताओं के बीच पसीना बहा रही हैं, उसी सदन में (बेशक पुराना भवन) करीब 75 वर्ष पहले जवाहरलाल नेहरू नामक व्यक्ति ने पीएम के पद पर बैठकर एक-दो नहीं वरन 17 वर्ष देश का नेतृत्व किया था। स्कूल की निचली कक्षाओं में भी गये हर छात्र को नेहरू का नाम अनगिनत सन्दर्भों में पढ़ने का अवसर मिलता है। कंगना इतनी तो पढ़ी-लिखी हैं ही कि वे भी एकाध ऐसे अध्यायों से ज़रूर होकर गुजरी होंगी। असली बात यह है कि 2014 में खुली वाट्सएप यूनिवर्सिटी में वे स्वेच्छा से पढ़ाई करने के लिये दाखिल हुई छात्रा हैं। इस विश्वविद्यालय की खासियत यह है कि इसमें दीक्षित होने के लिये किसी भी विद्यार्थी को अपनी पहले की स्लेट को पूरी तरह से पोंछकर आना पड़ता है। भाजपा व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा तैयार किये गये सिलेबस को रटकर समाज के बीच जाना पड़ता है तभी उसे इतना होनहार माना जाता है कि वह बगैर किसी अनुभव के ही सीधे लोकसभा चुनाव का टिकट पा सकता या सकती है।

कहना न होगा कि इस पाठ्यक्रम का सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय इतिहास होता है। नये सिरे से लिखे गये इतिहास में पराजितों को विजेता घोषित करने से लेकर गद्दारों को देशभक्त बनाने और मध्ययुग के अंधकार को विकसित भारत का प्रकाश बतलाने से लेकर दुनिया भर के ज्ञान-विज्ञान को अपनी उपलब्धियां बतलाने वाले लम्बे-लम्बे अध्याय हैं। छात्र-छात्राओं को अपनी ओर से इसमें तोड़-मरोड़ की भी पर्याप्त सुविधा व स्वतंत्रता होती है।

कंगना इस विश्वविद्यालय की होनहार छात्रा हैं। ऐसा नहीं कि उनकी इस योग्यता को रातों-रात मान लिया गया हो। उन्होंने कई मौकों पर यह साबित किया है। उन्होंने ही कुछ अरसा पहले बतलाया था कि देश को वास्तविक आजादी 1947 में नहीं वरन 2014 में मिली थी। यह वही बयान हैं जिससे मोदी एवं भाजपा को उनकी प्रतिभा का भान हुआ होगा। हालांकि उसके पहले जब वे महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में चली शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी सरकार से उलझती रहीं, तो भी माना गया था कि वे पार्टी के लिये उपयोगी हैं। उन्हें बाकायदे उच्चस्तरीय सेक्युरिटी दी गई है। उन्हें उनके अभिनय के लिये पद्मश्री पुरस्कार भी दिया गया।

22 जनवरी को अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के भव्य उद्घाटन अवसर पर जिन गिने-चुने लोगों को आमंत्रित किया गया था उनमें वे अग्रिम पंक्ति की मेहमान थीं। उनके वे वीडियो भी खूब वायरल हुए हैं जिनमें वे उमंग में भरकर इतनी ऊंची आवाज में ‘जयश्री राम’ के नारे लगा रही हैं कि वह सम्भवत: स्वर्ग में विराजमान प्रभु तक अवश्य पहुंची होगी। उसी का यह नतीजा हो सकता है कि उन्हें बगैर किसी सियासी अनुभव या पार्टी में प्राथमिक स्तर पर काम किये बिना लोकसभा में पहुंचाने की भाजपा ने ठानी। उनके लिये भाजपा ने अपने उस नियम व ख्याति के विपरीत फैसला लिया है जिसमें कहा जाता है कि यही ऐसी पार्टी है जिसमें बड़ा पद पाने के पहले किसी को भी छोटे से छोटे स्तर पर कार्यकर्ता का काम करना होता है।

यह उभरती नेत्री भाजपा की नयी ज़रूरत की एकदम मुफ़ीद है जिसमें समझ का विकास यहां से शुरू होता है कि 1947 में देश को आजादी नहीं मिली थी बल्कि अंग्रेज उसे भारतीयों को 99 वर्षों की लीज़ पर देकर गये हैं। कंगना उसी जानकारी से सुसज्जित नव नेतृत्व का हिस्सा हैं जो मानता है कि नेहरू के दादा मुस्लिम थे या नेहरूजी सरदार पटेल के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए थे। दरअसल इस दशक भर में भाजपा में आये ऐसे कई लोग हैं जिनकी विशेषता बुद्धिहीनता या बदज़ुबानी है। यहां कंगना को दोहरा लाभ मिला है।

यह भविष्य की भाजपा है। ऐसा संगठन जो मोदी व शाह मिलकर अपने लिये बना रहे हैं। इनमें गौतम गम्भीर, हेमा मालिनी, सनी देवल, निरहुआ, मनोज तिवारी जैसे लोग अग्रणी रहेंगे और मोदी को अपना नेता बनाये रखेंगे। कंगना को टिकट अकारण नहीं मिला है और यदि यह वाचाल अभिनेत्री सुभाषचंद्र बोस को देश का पहला प्रधानमंत्री कहती हैं तो वह भी सायास है। जानकारी का अभाव या ज्ञानहीनता जब विशेषण बन जाये तो ऐसे लोग किसी भी विकृत समाज के आभूषण बनकर उच्च पद पर विराजे हुए नज़र आयेंगे।

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