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भ्रष्टाचार को हटाने के नाम पर भरपूर शोर शराबा अब चुनावी बॉंड्स पर बेनकाब होते मोदी

भ्रष्टाचार को हटाने के नाम पर भरपूर शोर मचाकर केन्द्र की सत्ता में आई नरेन्द्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी किस कदर खुद ही भ्रष्टाचार में डूबी हुई है

भ्रष्टाचार को हटाने के नाम पर भरपूर शोर मचाकर केन्द्र की सत्ता में आई नरेन्द्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी किस कदर खुद ही भ्रष्टाचार में डूबी हुई है, उसके कई मामले सामने आ चुके हैं, परन्तु इलेक्टोरल बॉंड्स के मामले में उसने खूब पैसे कमाये हैं- यह धीरे-धीरे सामने आ रहा है। जिस प्रकार से सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के वकील शीर्ष न्यायालय द्वारा पिछली सुनवाई में मांगी गयी जानकारी देने से आनाकानी कर रहे हैं, उससे साफ जाहिर है कि वह कदाचार में पूर्णत: लिप्त है।

बॉंड्स को ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए 15 फरवरी को शीर्ष अदालत ने निर्देश दिये थे कि एसबीआई 6 मार्च तक उन नामों को केन्द्रीय निर्वाचन आयोग को सौंपे जिन्होंने इलेक्टोरल बॉंड्स खरीदे थे। किस राजनैतिक दल को कितना चंदा दिया गया, यह भी उसे सार्वजनिक करना था परन्तु एक दिन पहले बैंक ने यह कहकर 30 जून का समय मांगा कि जानकारी एकत्र करने में उसे समय लगेगा। कोर्ट ने 12 मार्च तक (मंगलवार) का समय निर्वाचन आयोग को दिया था कि वह प्राप्त जानकारी को अपने वेबसाइट पर डाले ताकि मतदाताओं को फैसला लेने में आसानी हो। साफ था कि चुनाव के पहले बैंक यह जानकारी देने की मंशा नहीं रखता और यह किसके दबाव में किया जा रहा है- यह बतलाने की ज़रूरत नहीं है।

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई के दौरान इस मामले में अपनी नाराजगी जाहिर की जब बैंक का पक्ष रखने वाले वकील हरीश साल्वे ने कहा कि बॉंड्स खरीदने वालों का मिलान करने व डिकोड करने में समय लग रहा है। इस दलील को नामंजूर करते हुए मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में बैठी 5 सदस्यीय खंडपीठ ने साफ किया कि ऐसा करने की उसे आवश्यकता नहीं है। बैंक को केवल बॉंड्स खरीदने वाले 22 हजार लोगों के नाम देने हैं। चूंकि सभी खाते केवाईसी किये हुए हैं इसलिये इतना समय लगने का सवाल ही नहीं है। कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त करते हुए पूछा कि बैंक ने उसके निर्देशों के बाद से लेकर अब तक की अवधि में इस दिशा में क्या कार्रवाई की। आखिरकार, सर्वोच्च न्यायालय ने साफ कर दिया कि स्टेट बैंक मंगलवार शाम तक वांछित जानकारी निर्वाचन आयोग को सौंपे जो 15 मार्च तक इसे अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा। अगर ऐसा न किया गया तो सम्बन्धित बैंक अधिकारियों पर अवमानना का मामला चलाया जायेगा।

वैसे तो इस मुद्दे को लेकर मोदी सरकार का चेहरा पहले ही बेनकाब हो चुका है। कई तरह के पर्दों में इस जानकारी को छिपाये जाने की तमाम कोशिशों के बावजूद अनेक तथ्य जो सामने आये हैं उनसे साफ है कि मामला भाजपा की रिश्वतखोरी से अधिक कुछ नहीं है। 2017-18 में यह योजना मोदी सरकार लेकर आई थी। इसके तहत मिली राशि का 90 फीसदी से अधिक भाजपा को प्राप्त हुआ है। शेष बामुश्किल 10 फीसदी ही अन्य दलों तक पहुंच पाया। चुनावी बॉंड्स के तहत धन पाने के लिये केन्द्र सरकार द्वारा केन्द्रीय जांच एजेंसियों का भी जमकर दुरुपयोग किये जाने की बात सामने आ चुकी है। विपक्षी दल, खासकर कांग्रेस साबित कर चुकी है कि चंदे के लिये प्रवर्तन निदेशालय, आयकर एवं सीबीआई के छापे डलवाये गये। बहुत से ऐसे व्यवसायिक उपक्रम थे जिन्होंने पहले कभी भी भाजपा को चंदा नहीं दिया था परन्तु कार्रवाइयों से बचने के लिये उन्हें भी ये बॉंड्स खरीदकर भाजपा को आर्थिक मदद करनी पड़ी। कांग्रेस यह तथ्य भी सामने ला चुकी है कि किस प्रकार चंदा देने के बाद छापों से लोगों को निज़ात मिली है।

इसी कारण भाजपा ने इसे सूचना के अधिकार से बाहर रखा था ताकि लोग यह न जान सकें कि किस तरह से भाजपा सत्ता के बल पर धन एकत्र कर रही है। इसके खिलाफ दायर याचिकाओं में इस प्रतिबन्ध को आरटीआई एवं नागरिक अधिकारों का हनन बतलाया था। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही इस पर सहमति जताते हुए कहा था कि मतदाता को यह जानने का अधिकार है कि वह जिसे वोट करना चाहता है उसके पास पैसे कहां से आ रहे हैं और उसके बदले में आर्थिक मदद करने वालों को कोई पार्टी या उसकी सरकार क्या फायदा पहुंचा रही है। चूंकि किसी भी वक्त 18वीं लोकसभा के चुनावों का ऐलान हो जायेगा, इसे भी ख्याल में रखते हुए सम्भवत: सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया होगा ताकि मतदान के पहले ही मतदाताओं को यह जानकारी उपलब्ध हो जाये, परन्तु जिस प्रकार से पहले 30 जून का समय देश के सबसे बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ने चाहा था और अब भी मुहैया कराने में आनाकानी कर रहा है, उसने स्पष्ट कर दिया है कि इस मामले में सरकार के हाथ साफ नहीं है। वैसे भी इसे मोदी सरकार का सबसे बड़ा घोटाला बतलाया जा रहा है।

देखना होगा कि बैंक निर्धारित तिथि यानी 12 मार्च तक यह जानकारी उपलब्ध कराता है या फिर कोई पैंतरेबाजी अपनाकर समय लेने की कोशिश करेगा। हालांकि सुप्रीम अदालत के रूख से साफ है कि वह बैंक के साथ प्रत्यक्ष तथा केन्द्र सरकार के साथ परोक्ष रूप से कोई भी मुरव्वत नहीं बरतने जा रही। जनाकांक्षा भी यही है। जिस तरह से अपने 10 साल के कार्यकाल में मोदी ने संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग किया है और लोकतांत्रिक प्रणाली को लगभग ध्वस्त किया है, उसके बीच शीर्ष अदालत आशा की किरण बनकर उभरी है। उम्मीद है कि वह सार्वजनिक जीवन में शुचिता का पालन न करने वाली भाजपा से सख्ती से निपटेगी।

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