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मोदीजी के १० साल में आज भी असुरक्षित भारत की आधी आबादी !

झारखंड में ब्राजील की एक महिला पर्यटक के साथ हुए कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार की घटना से पूरे देश का सिर शर्म से झुक जाना चाहिए

झारखंड में ब्राजील की एक महिला पर्यटक के साथ हुए कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार की घटना से पूरे देश का सिर शर्म से झुक जाना चाहिए। हालांकि मौजूदा माहौल को देखते हुए लगता नहीं कि बलात्कार के एक और मामले पर देश में बैठी सरकार और पूरा समाज यह विचार करेगा कि आखिर इस नैतिक पतन के कारण क्या हैं।

फिलहाल इस गंभीर अपराध का विश्लेषण या तो अतिथि देवो भव के दायरे में किया जा रहा है, या फिर इसे झारखंड सरकार की अपराध को रोकने की नाकामी के तौर पर देखा जा रहा है। झारखंड में पिछले महीने ही हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद भाजपा ने सरकार पलटने की कोशिश की, लेकिन उसमें उसे नाकामी मिली और चंपाई सोरेन ने झामुमो और कांग्रेस की गठबंधन सरकार को बचा लिया। अब इस घटना के बाद भाजपा झारखंड की कानून व्यवस्था पर सवाल उठा रही है। साफ तौर पर बलात्कार जैसे गंभीर अपराध के राजनीतिकरण की यह बेहूदा कोशिश है।

भाजपा को सवाल उठाने ही हैं तो केवल अपने विरोधी दल की सरकार पर न उठाए, बल्कि पूरे समाज पर उठाए कि आखिर क्या वजह है कि भारत में किसी भी उम्र, जाति और धर्म की लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं। देश की आधी आबादी खुलकर न जी पा रही है, न सांस ले पा रही है, तो क्या इसे सामान्य माना जा सकता है। हम चाहें मंगल पर झंडे गाड़ लें या चांद पर चहलकदमी कर आएं, अगर लड़कियों को धरती पर बेखौफ घूमने नहीं दे सकते, तो फिर विकास और गुरुता की सारी दलीलें बेकार हैं।

ब्राजील की जिस महिला के साथ सामूहिक बलात्कार का शर्मनाक कांड हुआ, वह जानकारी में इसलिए आ गया क्योंकि पीड़िता ने अपने पति के साथ मिलकर खुद इस घटना की जानकारी सोशल मीडिया के जरिए साझा की। यह दंपती मोटर साइकिल से विश्व भ्रमण पर निकला है और अब तक 1 लाख 70 हजार से ज्यादा किमी का सफर अपनी-अपनी मोटर साइकिलों से करते हुए झारखंड पहुंचा था। 66 देशों से गुजरते हुए ये लोग भारत पहुंचे थे और पिछले छह महीनों में अलग-अलग राज्यों से होते हुए झारखंड पहुंचे थे, भारत के बाद उन्हें नेपाल जाना था। झारखंड में सात लोगों ने इन पर तब हमला कर दिया, जब ये अपने शिविर में सो रहे थे। पीड़िता के मुताबिक अपराधियों ने इनके साथ मारपीट की, उनका कुछ सामान भी लूटा, लेकिन उनका असली मकसद बलात्कार करना था, जिसे चाकू की नोंक पर उन्होंने किया।

इस घटना की जानकारी उन्होंने स्थानीय पुलिस को दी, लेकिन भाषा की दिक्कत के कारण शुरुआती कार्रवाई में दिक्कत आई, बाद में गूगल ट्रांसलेशन की मदद से पीड़िता ने आपबीती बताई। झारखंड पुलिस ने उन्हें अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती किया है और अब तक चार आरोपियों को पकड़ा जा चुका है, जबकि तीन की तलाश बाकी है। इस घटना के बाद कई लोगों ने नाराजगी प्रकट करते हुए याद दिलाया कि हमारी संस्कृति अतिथि देवो भव की है। यह बिल्कुल सही है कि हमारी संस्कृति में अतिथि को देवता की तरह माना गया है। यहां यह भी याद किया जाना चाहिए कि हमारी संस्कृति में नारी को देवी का दर्जा भी दिया गया है।

लेकिन संस्कृति की बातों और समाज के संस्कारों में अब जमीन-आसमान का अंतर दिख रहा है। यह पहली बार नहीं है जब किसी विदेशी महिला के साथ ऐसा व्यवहार हुआ है। अभी पिछले साल दिल्ली के पहाड़गंज इलाके में एक जापानी महिला के साथ 3 लड़कों ने जबरदस्ती होली खेली थी। इस घटना से परेशान होकर महिला भारत छोड़कर बांग्लादेश चली गई। 11 मार्च को उसने इस पूरी घटना के बारे में कई ट्वीट किए थे। इससे पहले मुंबई में एक दक्षिण कोरियाई महिला यू ट्यूबर जब रात को स्ट्रीमिंग कर रही थी, इसी दौरान दो युवकों ने उसके साथ छेड़खानी की थी, यह मामला भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसके बाद पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया था। मुंबई में ही एक अमेरिकी महिला के सामने अश्लील हरकत करने के आरोप में पुलिस ने एक टैक्सी ड्राइवर को गिरफ्तार किया था।

इन मामलों में पुलिस कार्रवाई हुई, इसलिए लोगों को इसके बारे में पता चला, अन्यथा विदेशी मूल या देश की महिलाओं के साथ कई तरह की ओछी हरकतें होती रहती हैं और जब तक कोई बड़ी घटना न हो जाए, समाज इस पर परेशान नहीं होता। दरअसल समाज मानसिक तौर पर बेहद बीमार हो चुका है।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं के सम्मान में कुछ कसीदे पढ़कर और गाहे-बगाहे नारी सशक्तिकरण की बातों से हम इस बीमारी को छिपाना चाहते हैं। हम लैंगिक समानता जैसी किसी अवधारणा को ईमानदारी से स्वीकार ही नहीं कर रहे हैं, तो फिर उससे उपजी बीमारियों का इलाज तो दूर की बात है। जहां लड़कियों को माल बोल कर उनके साथ भद्दा मजाक हो, अपशब्दों के लिए महिलासूचक शब्द इस्तेमाल में लाए जाएं, जहां बिलकिस बानो के सजायाफ्ता अपराधियों को जेल से बाहर निकाल कर फूल मालाएं पहनाई जाएं और समाज उफ भी न करे, जहां प्रधानमंत्री मणिपुर में नग्न परेड का शिकार महिलाओं के लिए संवेदना के दो बोल ठीक से न बोल सके और संदेशखाली सिर्फ इसलिए पहुंचे कि वहां राजनैतिक लाभ मिलेगा, वहां महिलाओं की बराबरी या सुरक्षा की बात कैसे हो सकती है। अभी भारत जोड़ो न्याय यात्रा में राहुल गांधी से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की लड़कियों ने हिजाब पर सवाल किए तो राहुल गांधी ने सीधे कहा कि यह महिलाओं की मर्जी है, वे जो चाहे पहनें। यह जानते हुए भी कि हिजाब राजनैतिक तौर पर एक विवादास्पद विषय है, राहुल गांधी ने इसमें अपनी राय देने से परहेज नहीं किया, क्योंकि यहां सवाल महिलाओं की बराबरी और मर्जी का है।

लेकिन प्रधानमंत्री मोदी इस पर अपनी बेबाक राय दे सकेंगे, इसमें संदेह है। फिलहाल दुनिया में भारत का डंका बजाने का दावा करने वाली सरकार अगर इतना ही सुनिश्चित करे कि झारखंड में हुए अपराध पर दोषियों को कड़ी सजा मिले और लड़कियों के लिए सुरक्षित माहौल बने, तो ही बहुत है। बाकी समाज विचार करे कि आधी आबादी को अपना शिकार बनाने वाली इस मानसिक बीमारी का इलाज उसे किस तरह करना चाहिए।

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