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मोदी के भाजपा शाशन काल मे उत्तराखंड सुरंग में फसे 41 मजदूरों की जान बचाने वाले को बुलडोजर का इनाम !

गरीबों पर मोदी राजमें अन्याय का चाबुक और न्याय के नाम पर बुलडोजर भाजपा के शासनकाल की खासियत बन चुकी है

गरीबों पर अन्याय का चाबुक और न्याय के नाम पर बुलडोजर भाजपा के शासनकाल की खासियत बन चुकी है। इसकी ताजा मिसाल दिल्ली से सामने आई है, जहां दिल्ली विकास प्राधिकरण यानी डीडीए ने अतिक्रमण हटाने के लिए कुछ गरीबों के घरों को बुलडोजर से रौंद दिया है। इन घरों में एक घर वकील हसन का भी है, जो चार महीने पहले सिलक्यारा सुरंग में मजदूरों को बचाने के कारण स्टार बन चुके थे, लेकिन फिलहाल वे सड़कों पर फाकाकशी को मजबूर कर दिए गए हैं। याद दिला दें कि 12 नवंबर को उत्तराखंड के सिलक्यारा में बन रही सुरंग का एक हिस्सा धंस गया था, जिसमें 41 मजदूर फंस गए थे। इन मजदूरों को निकालने के लिए विदेशों से मशीन मंगाने से लेकर सुरंग के मुंह पर मंदिर बनाने तक सारे जतन किए गए थे, लेकिन आखिरकार मजदूरों को बचाने का काम रैट माइनर्स ने किया था। चूहों की तरह जमीन खोदने की तकनीक पर रैट माइनर्स ने 21 घंटों तक बिना रुके 10-12 मीटर गहराई तक जमीन को हाथों से खोदा, मलबे को निकाला और तब जाकर 17 दिनों बाद 41 मजदूरों की जान बच सकी। अगर रैट माइनर्स अपनी जान जोखिम में डालकर अथक परिश्रम नहीं करते तो कोई बड़ी अनहोनी हो सकती थी।

देश पर औद्योगिक हादसे का एक और कलंक लग सकता था। लेकिन रैट माइनर्स ने इन सबसे भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बचा लिया। इन रैट माइनर्स को 41 मजदूरों की जान बचाने के एवज में 50-50 हजार रुपए दिए गए, मजदूरों के बाहर आते ही प्रधानमंत्री मोदी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग से उनसे बात की, रैट माइनर्स को कुछ दिनों तक मीडिया के जरिए नायक बनाया गया, कुछ नेताओं ने उनके साथ तस्वीरें उतरवाईं ताकि चुनाव में उसका लाभ मिल सके और महीने भर के भीतर न किसी को सिलक्यारा परियोजना में हुई गलतियों की याद रही न उस गलती में जिंदगियों को बचाने वालों की। शायद इसलिए नियमों और कानूनों का हवाला देते हुए गरीबों के घर पर बुलडोजर चलाने वाले डीडीए ने वकील हसन के घर पर बुलडोजर चलाने में झिझक नहीं दिखाई।

डीडीए का अतिक्रमण विरोधी ताजा अभियान खजूरीखास इलाके में चला है। प्राधिकरण का कहना है कि वहां घर अवैध तरीके से बने हुए थे और इनमें अनियमितताएं थीं। यह सही है कि प्राधिकरण को शहर की संरचनात्मक व्यवस्था बनाए रखने के लिए अवैध निर्माण की समस्या से अक्सर जूझना पड़ता है। कहीं राजनैतिक दखल, कहीं धार्मिक मुद्दा बनाकर मनमाने निर्माण कार्य होते हैं। जनसंख्या के बढ़ते दबाव और शहर नियोजन में कमियों के कारण भी व्यवस्था बिगड़ती है। इसमें सख्ती से निपटने से ही खामियों को दुरुस्त किया जा सकता है। लेकिन क्या बरसों की खामियां महज बुलडोजर चलाने से दूर हो सकती है, यह विचारणीय है।

गरीब अगर किसी अनाधिकृत जगह पर अपनी झुग्गी बसाते हैं, तो वह मजबूरी में ऐसा करते हैं, क्योंकि सरकार उनके लिए मकान जैसी बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराने में असफल रहती है, जबकि अमीर अक्सर अपनी संपत्ति और संपर्कों का रौब दिखाकर जरूरत से ज्यादा जगह घेर लेते हैं। उनके अवैध निर्माण को अगर गिरा भी दिया जाए, तो उनके सामने बेघर होने का संकट नहीं होता। लेकिन गरीब की झुग्गी अगर तोड़ी जाए, तो उसके पास छत के नाम पर आसमान ही रह जाता है, जो सरासर जीने के संविधान प्रदत्त अधिकार का उल्लंघन है। इसलिए एक अहम सवाल यह भी है कि क्या सरकार की गलती की सजा गरीबों को दी जानी चाहिए। उनके अवैध निर्माण को तोड़ने से पहले उनके लिए घर का इंतजाम नहीं होना चाहिए।

चूंकि इस बार बुलडोजर का शिकार वकील हसन हुए हैं, इसलिए यह मामला सुर्खियों में आया और भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने यह आश्वासन दिया कि उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान दिया जाएगा। लेकिन क्या भाजपा इस सवाल का जवाब देगी कि वकील हसन के घर बुलडोजर चलाने के अलावा उनके परिवार को थाने ले जाकर किस जुर्म की सजा दी गई। वकील हसन ने बताया है कि उनकी पत्नी और बच्चों को थाने ले जाया गया, उनके बेटे को पुलिस ने मारा भी। वकील हसन की पत्नी ने भी कहा कि उन्हें घर का सामान हटाने नहीं दिया गया, बच्चों के परीक्षा परिणाम जैसे जरूरी कागजात तक साथ ले जाने की मोहलत नहीं दी गई। उन्होंने मोदी सरकार के सबका साथ, सबका विकास नारे का जिक्र करते हुए कहा कि मेरे पति तो हीरो थे उत्तरकाशी के, 41 लोगों की जान बचाई थी उन्होंने, सब उन्हें सम्मान दे रहे थे। आज उस सम्मान के बदले मेरा मकान ले लिया!

मोदी सरकार वकील हसन और उनके परिवार पर हुए इस अत्याचार को कानून की आड़ में किस तरह जायज ठहराती है, यह देखना होगा। वैसे पिछले कुछ बरसों से कानूनन बुलडोजर चलाने के अनेक प्रसंग घट चुके हैं। उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड ऐसे कई राज्यों में बुलडोजर से ही अब सरकारी हिसाब-किताब बराबर किया जाने लगा है। बुलडोजर अक्सर उन्हीं लोगों के ठिकानों पर चलते हैं, जो या तो अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं, या फिर जो सरकार के खिलाफ आवाज उठाने की हिमाकत करते हैं। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा था कि कुछ राज्यों में बुलडोजर एक्शन एक फैशन की तरह बन गया है और इस पर कोई दिशा-निर्देश तय होने चाहिए। दो साल पहले जमीयत-उलमा-ए-हिंद ने भी अदालत में बुलडोजर एक्शन को लेकर याचिका दायर की थी। तब जमीयत का पक्ष रखते हुए दुष्यंत दवे ने ही दिल्ली में सैनिक फार्म का जिक्र करते हुए कहा था कि यह पूरा अवैध निर्माण है, लेकिन पिछले 50 सालों में इसे किसी ने छुआ भी नहीं है।

हालांकि ऐसी दलीलों और याचिकाओं का कोई सुफल देखने नहीं मिल रहा है। बुलडोजर को पीले पंजे के तौर पर मीडिया का एक धड़ा प्रचारित कर रहा है और इस पीले पंजे को शासन की शक्ति और इंसाफ का पर्याय बना दिया गया है। नयी संसद में राजदंड रखने और रामलला को घर देने का श्रेय लेने वाले प्रधानमंत्री मोदी क्या वकील हसन जैसे नायकों के बेघर होने पर कोई प्रतिक्रिया देंगे, यह देखना होगा।

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