क्या हमारा नैतिक पतन हो चुका है गलत तरीकों पर सवाल उठाना अब जरूरी नहीं तो ….?

मंगलवार को राज्यसभा की 15 सीटों के लिए हुए चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर अपना वर्चस्व कायम कर लिया। हालांकि यह वर्चस्व किस तरह भाजपा ने हासिल किया है, वह एक गंभीर सवाल बन चुका है।
मंगलवार को राज्यसभा की 15 सीटों के लिए हुए चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर अपना वर्चस्व कायम कर लिया। हालांकि यह वर्चस्व किस तरह भाजपा ने हासिल किया है, वह एक गंभीर सवाल बन चुका है। गौरतलब है कि 15 सीटों में से उत्तरप्रदेश की आठ, हिमाचल प्रदेश की एक और कर्नाटक की एक सीट भाजपा के खाते में गईं, जबकि कर्नाटक की बाकी तीन सीटें कांग्रेस और उप्र की बाकी दो सीटें सपा के पास गई हैं।
उत्तरप्रदेश और हिमाचल प्रदेश दोनों जगह भाजपा ने क्रास वोटिंग करवाई, यानी अपने विधायकों के अलावा दूसरे दलों के विधायकों को किसी न किसी तरह मजबूर किया कि वे उसके उम्मीदवार को वोट दें। यह मजबूरी धन यानी रिश्वत से उपजी है, या किसी और किस्म के दबाव के कारण बनी है, इसका खुलासा कभी नहीं हो सकेगा। क्योंकि भाजपा भी अब इस बात को जानती है कि लोग उसकी जीत की तारीफ करेंगे, पत्रकार इस बात को मास्टर स्ट्रोक बताएंगे कि कैसे हारी हुई बाजी को भाजपा ने अपने पक्ष में कर लिया और इस बात पर कोई सवाल नहीं करेगा कि राजनीति में बढ़ चुके इस गलत चलन को स्वीकार क्यों किया जा रहा है।
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है, उसके पास स्पष्ट बहुमत है, फिर भी भाजपा नौ गैरभाजपाई विधायकों से अपने पक्ष में वोट डलवाने में कामयाब हो गई। यह निश्चित ही कांग्रेस की कमजोरी है कि वह अपने विधायकों को एकजुट नहीं रख पाई। सुखविंदर सिंह सुक्खू तो मुख्यमंत्री होने के नाते इस गलती के लिए जिम्मेदार हैं ही, कांग्रेस के हिमाचल प्रदेश प्रभारी की भी इसमें गलती है। लेकिन कांग्रेस की खासियत शायद यही बन गई है कि वह अपनी गलतियों से कोई सबक नहीं लेती। दूध का जला छाछ भी फूं क-फूं क कर पीता है, ऐसे मुहावरों पर कांग्रेस का कोई यकीन ही नहीं है। उसे खतरों के खिलाड़ी बनने में शायद ज्यादा मजा आता है, फिर चाहे सत्ता की बाजी ही दांव पर क्यों न लग जाए।
मध्यप्रदेश, कर्नाटक, बिहार जैसे राज्यों में कांग्रेस ने भाजपा के आपरेशन लोटस के कारण सत्ता गंवा दी, झारखंड में भी ऐसा होने का खतरा था, जो टल गया। कांग्रेस चाहती तो अपने अनुभवों से सबक ले सकती थी कि अगर भाजपा ने हिमाचल प्रदेश में महज 25 विधायकों के होने के बावजूद कांग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवार के सामने अपना उम्मीदवार खड़ा किया है, तो उसके इरादे नेक नहीं हो सकते। वह कोई न कोई कोशिश जरूर करेगी कि क्रास वोटिंग हो जाए। लेकिन कांग्रेस ने अनहोनी की अंदेशा होते हुए भी लापरवाही बरती। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू कहते रह गए कि अगर कोई बिका नहीं होगा तो हमारे 40 में से 40 वोट आएंगे। जबकि किसी के बिकने का इंतजार किए बिना मुख्यमंत्री सुक्खू कर्नाटक की कांग्रेस सरकार की तरह अपने एक-एक वोट पर नजर रखते तो आज इस हार और शर्मिंदगी से बच जाते।
राज्यसभा में कांग्रेस की एक पक्की सीट इतनी आसानी से भाजपा के हाथ में नहीं जाती। कांग्रेस आलाकमान और उसके तमाम वरिष्ठ नेता अब शायद भाजपा की चुनावी तैयारियों को गंभीरता से लेना शुरु करें। काश, उन्हें यह समझ आए कि इस दौर में भाजपा को केवल मुद्दों पर घेरकर और उसकी गलतियों की ओर ध्यान दिलाकर सत्ताच्युत नहीं किया जा सकता। भाजपा को सत्ता से तभी हटाया जा सकता है, जब उसकी रणनीतियों को विफल किया जाए।
भाजपा ने केवल हिमाचल प्रदेश ही नहीं, उत्तरप्रदेश में भी समाजवादी पार्टी के विधायकों को तोड़ कर जीत हासिल की है। अब राज्यसभा में भाजपा के 97 और एनडीए के 117 सांसद हो गए हैं और 240 सीटों की राज्यसभा में 121 के बहुमत के आंकड़ा अब भाजपा से खास दूर नहीं रह गया है। अगर तीसरी बार भी भाजपा को केंद्र की सत्ता हासिल हो जाती है, तो फिर राज्यों को किसी भी तरह जीतने का उसका खेल चलता रहेगा और इसी तरह नगरीय निकायों से लेकर राज्यसभा तक भी हर जगह केवल भाजपा का राज होगा। सियासत के मौजूदा चलन को देखकर यह कोरी कल्पना भी नहीं कही जा सकती। अभी चंद दिनों पहले चंडीगढ़ मेयर चुनाव में भाजपा ने धांधली कर जीत हासिल की थी। सुप्रीम कोर्ट के दखल के कारण और सारा वाकया सीसीटीवी में कैद हो जाने के कारण धोखे से मिली इस जीत को गलत करार दिया गया। लेकिन राज्यसभा चुनावों में फिर से धोखे का खेल ही खेला गया है, लेकिन विडंबना है कि इसे भाजपा के महान कारनामे की तरह पेश किया जा रहा है। कांग्रेस ने तो अपनी एक जीती हुई सीट इस चुनाव में गंवा दी है, लेकिन गौर से देखा जाए तो पूरा देश इसमें अपने लोकतंत्र और राजनीति में सैद्धांतिक मूल्यों को गंवा रहा है। कांग्रेस को उसकी कमजोरियों और लापरवाही के लिए दोष दिया जा सकता है। मगर क्या सवाल भाजपा से भी नहीं किए जाने चाहिए कि आखिर जीत के लिए गलत तरीकों को अपना कर वह कौन सी परिपाटी इस देश में कायम करना चाहती है। क्या झूठ, फरेब, छल, भ्रष्टाचार इन अवगुणों के सहारे भाजपा देश में शासन करना चाहती है।
अगर ऐसा है तो फिर वह इस बात की गारंटी कैसे देगी कि उसके शासन में भ्रष्टाचार के लिए शून्य सहनशक्ति रहेगी। क्या भाजपा का तथाकथित रामराज्य इन्हीं बुराइयों के साथ कायम होगा।
चंडीगढ़ से लेकर हिमाचल प्रदेश तक भाजपा ने जो सत्ता हथियाने का खेल रचा है, उसे अगर जनता की स्वीकृति मिल जाती है, तो फिर यह मान लेना चाहिए कि एक समाज के तौर पर हमारा नैतिक पतन हो चुका है। ऐसे समाज में अब अपराधी से नहीं, पीड़ित से सवाल-जवाब होने लगेंगे। और जरूरी नहीं कि पीड़ित हर बार कांग्रेस ही होगी, राजनीति के अलावा अन्य तबकों में भी यह रोग अपना असर दिखाएगा। इस रोग का इलाज करना है तो फिर गलत तरीकों पर सवाल उठाने शुरु करने होंगे।