ब्लॉग

देश का लोकतंत्र आज बेहद धुंधला नजर आ रहा धुंधलेपन को साफ करना जरूरी ?

देश आम चुनाव के मुहाने पर खड़ा है

देश आम चुनाव के मुहाने पर खड़ा है। निर्वाचन आयोग चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले की तैयारियों में जुटा है। देश में कितने मतदाता हैं, पिछली बार से इस बार कितने नए मतदाता जुड़े, युवा मतदाताओं की संख्या कितनी है, ऐसे तमाम आंकड़े आने शुरु हो चुके हैं। सर्वेक्षण एजेंसियां किस्म-किस्म के सर्वे कराने में जुट चुकी हैं। आज चुनाव हुए तो कौन जीतेगा, मोदी या राहुल किसका चेहरा मतदाताओं की पहली पसंद है, एनडीए और इंडिया गठबंधन में किसका पलड़ा भारी है, राम मंदिर उद्घाटन का फायदा भाजपा को होगा या नहीं, किसान आंदोलन का कितना असर चुनावों पर पड़ेगा, ऐसे कई सवालों के इर्द-गिर्द सर्वे हो रहे हैं और उनके नतीजों के आधार पर देश की भावी सरकार बनाई जा रही है। इन सवालों में एक सवाल और पूछा जाना चाहिए कि क्या इन चुनावों में या इन चुनावों के बाद लोकतंत्र के बचने की कितनी उम्मीदें बाकी रह जाएंगी। क्योंकि फिलहाल देश का जो माहौल है, उसमें लोकतंत्र के आगे बैरिकेड्स लगाए जा चुके हैं। बैरिकेड्स के एक ओर लोकतंत्र और दूसरी ओर सरकार दिखाई दे रही है।

13 फरवरी से दिल्ली कूच के लिए निकले किसानों को भाजपा सरकार ने जोर-जबरदस्ती से हरियाणा-पंजाब की सीमा पर ही रोका हुआ है। किसान सरकार को उसके वादों की याद दिलाते हुए ही फिर से आंदोलन कर रहे हैं। उनकी मांगें वहीं हैं, जो तीन साल पहले के किसान आंदोलन में थीं। तब केंद्र सरकार ने साल भर चले उनके आंदोलन को खत्म कराने के लिए उनसे वादे किए थे कि एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जाएगी, लखीमपुर खीरी में मारे गए किसानों के साथ इंसाफ होगा, इसी तरह के कुछ और वादे भी थे, जो तीन साल में पूरे नहीं हुए तो अब किसान आंदोलन कर रहे हैं। लेकिन मोदी सरकार फिर से किसानों से वार्ताएं कर रही हैं। बातचीत से समस्या का हल निकालना बिल्कुल सही है, लेकिन इसमें नीयत भी सही होनी चाहिए। अपने ही वादों को पूरा करने के लिए आखिर सरकार कौन सी बैठकें कर रही हैं। जो फैसला लेना है, वो सरकार को लेना है, इसमें किसान तो इंतजार के सिवाए कुछ कर ही नहीं सकते। तीन साल तक किसानों ने इंतजार ही किया है, और सरकार चाहती है कि वो और इंतजार करते रहें।

शांतिपूर्ण तरीके से विरोध के अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए ही किसान पंजाब-हरियाणा से आगे बढ़ रहे थे, लेकिन उन पर लगातार आंसू गैस के गोले और छर्रे चलाए जा रहे हैं। पिछले किसान आंदोलन में भी सरकार ने ऐसी ही ज्यादतियां की थीं। तब साढ़े सात सौ से अधिक किसानों की मौत हो गई थी और इस बार फिर किसानों के शहीद होने का सिलसिला शुरु हो चुका है। कुछ दिन पहले एक प्रौढ़ किसान की आंदोलन के दौरान मौत हुई थी और बुधवार को 22 बरस के एक युवा किसान की मौत हो गई। किसानों का आरोप है कि हरियाणा पुलिस ने गोलियां चलाईं, जिनमें कुछ लोग घायल हुए, कुछ लापता हैं और एक युवा किसान की मौत हो गई है। शांति के साथ विरोध करने वालों पर ऐसा अत्याचार साफ बता रहा है कि लोकतंत्र का अध्याय देश में बंद कर नया पाठ शुरु करने की तैयारी हो चुकी है।

किसानों को सरकार रामलीला मैदान आने से रोक रही है। वहीं दिल्ली में गुरुवार को जंतर-मंतर पर ईवीएम के विरोध में किए जा रहे प्रदर्शन को भी पुलिस ने रोक दिया। धारा 144 लगाकर लोगों को रोका गया और जब इस प्रदर्शन की शुरुआत युवा कांग्रेस मुख्यालय से करते हुए कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने जंतर-मंतर चलो का आह्वान किया तो पुलिस ने फिर प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर पहले से खड़ी बसों में ठूंस लिया। युवा कांग्रेस मुख्यालय के बाहर पहले से भारी पुलिस बल और बैरिकेडिंग का इंतजाम था। जाहिर है सरकार ईवीएम पर किसी आंदोलन को खड़े होने से पहले ही कुचल देना चाहती है। जबकि अपनी मांगों को लेकर आंदोलन खड़ा करना हर पार्टी और हर नागरिक का लोकतांत्रिक अधिकार है। विपक्ष का आऱोप है कि ईवीएम में छेड़छाड़ संभव है, चुनावों में जीत के लिए भाजपा ऐसा कर चुकी है।

निर्वाचन आयोग ईवीएम में गड़बड़ी की बात नहीं मानता। हालांकि भाजपा के लिए यही श्रेयस्कर होगा कि वह या तो विपक्ष की शंकाओं का समाधान करे या फिर मतपत्रों से चुनाव के लिए राजी हो। तभी लोकतांत्रिक और निष्पक्ष चुनाव के उसके दावे सही होंगे। फिलहाल तो यही दिख रहा है कि भाजपा लोकतंत्र की कसौटी पर खरे उतरने की कोई फिक्र नहीं कर रही है, उसे केवल 4 सौ पार की सीटों की फिक्र है।

भाजपा पर यह आरोप भी विपक्ष का है कि वह जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करती है। गुरुवार सुबह ही खबर आई कि जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक से जुड़े कम से कम 30 ठिकानों पर सीबीआई ने छापे मारे हैं। ये छापे जम्मू और कश्मीर में किरू हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट कॉन्ट्रैक्ट से जुड़े कथित भ्रष्टाचार के मामले में की जा रही है। यहां याद रखना जरूरी है कि सत्यपाल मलिक किसानों के मुद्दे से लेकर पुलवामा हमले तक कई मुद्दों पर मौजूदा सरकार की आलोचना कर चुके हैं। ऐसे में यही माना जा रहा है कि श्री मलिक पर सीबीआई की ताजा कार्रवाई उनके सरकार विरोधी रवैये पर हो रही है। क्योंकि जिन लोगों पर सत्यपाल मलिक ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे, उन्हें रिश्वत की पेशकश में जिन का नाम लिया था, उन लोगों पर क्या कार्रवाई हुई, यह अब तक पता नहीं चला है। एक खास बात यह भी है कि किसान आंदोलन में युवा किसान की मौत से मोदी सरकार जब बुरी तरह घिर गई थी और सरकार विरोधी माहौल बनना तेज हो गया था, उसी की अगली सुबह सत्यपाल मलिक पर हुई कार्रवाई से एक बार फिर जनता का ध्यान हटाने की कोशिश की गई।

कुल मिलाकर देश की मौजूदा तस्वीर में लोकतंत्र बेहद धुंधला नजर आ रहा है। चुनाव से पहले इस धुंधलेपन को साफ करना जरूरी है। बैरिकेड्स के आर-पार लोकतंत्र की इस लड़ाई में जो जीतेगा, उससे ही देश का भविष्य तय होगा।

डोनेट करें - जब जनता ऐसी पत्रकारिता का हर मोड़ पर साथ दे. फ़ेक न्यूज़ और ग़लत जानकारियों के खिलाफ़ इस लड़ाई में हमारी मदद करें. नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर क्राइम कैप न्यूज़ को डोनेट करें.
 
Show More

Related Articles

Back to top button