पुलिस राज नहीं चलेगा, नाहक गिरफ़्तारियां रोके केंद्र सरकार- सुप्रीम कोर्ट ने की ज़मानत से जुड़े नए क़ानून की वकालत

नई दिल्लीः
जस्टिस संजय किशन कौल एवं जस्टिस सुंद्रेश की बेंच ने केंद्र सरकार से जमानत को लेकर नया कानून बनाने पर विचार करने को कहा। खास तौर से उन मामलों में जहां दोषी पाए जाने पर अधिकतम सात साल की जेल का प्रावधान है।
भारत की जेलों में बंद दो तिहाई कैदी ऐसे हैं जो विचाराधीन की श्रेणी में आते हैं। इनको लेकर समय समय पर सवाल उठते रहे हैं लेकिन बीते दिन सुप्रीम कोर्ट ने जब इस पर चिंता जताई तो मामले की गंभीरता साफ दिखी। अदालत ने कहा कि भारत को कभी भी एक पुलिस स्टेट नहीं बनना चाहिए, जहां जांच एजेंसियां औपनिवेशिक युग की तरह काम करें। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।
जस्टिस संजय किशन कौल एवं जस्टिस सुंद्रेश की बेंच ने केंद्र सरकार से जमानत को लेकर नया कानून बनाने पर विचार करने को कहा। खास तौर से उन मामलों में जहां दोषी पाए जाने पर अधिकतम सात साल की जेल का प्रावधान है। बेंच ने कहा कि जांच एजेंसियां सीआरपीसी की धारा 41-ए का पालन करने के लिए बाध्य हैं। इसके तहत आरोपी को पुलिस अधिकारी के समक्ष पेश होने का नोटिस जारी करना होता है। अदालत ने सभी उच्च न्यायालयों से उन विचाराधीन कैदियों का पता लगाने को भी कहा, जो जमानत की शर्तों को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। ऐसे कैदियों की रिहाई के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश कोर्ट ने दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में जेल विचाराधीन कैदियों से भरे पड़े हैं। ऐसे कैदियों में गरीब और अनपढ़ लोग हैं। कोर्ट ने कहा कि इनको देखकर लगता है कि अंग्रेजी शासन वाली मानसिकता में हम आज भी जी रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन के अधिकार को दर्शाता है। पुलिस अधिकारी का काम है कि वह गिरफ्तारी की वजहों को लिखे। कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसियां उसके पहले के आदेशों का पालन नहीं कर रही हैं।
अदालत ने सभी उच्च न्यायालयों और राज्यों व केंद्र-शासित प्रदेशों की सरकारों से चार महीने में रिपोर्ट दाखिल करने को कहा। कोर्ट ने ये फैसला सीबीआई से जुडे़ एक मामले की सुनवाई के दौरान दिया। एजेंसी ने एक शख्स को गिरफ्तार किया था। उसने गिरफ्तारी के इस फैसले को अदालत में चुनौती दी थी। कोर्ट ने राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे लोगों को गिरफ्तार करने से पहले सीआरपीसी की धारा 41 एवं 41ए का पालन कराना सुनिश्चित करें।
महिला कैदियों से जुड़ी रिपोर्ट का जिक्र करते हुए अदालत ने कहा कि डाटा बताता है कि ये गरीब और लाचार हैं। 1 हजार से ज्यादा बच्चे जेल में अपनी माताओं के साथ रहते हैं। इनके बड़े होकर अपराधी बनने के अंदेशे से इन्कार नहीं किया जा सकता। कोर्ट का कहना था कि जमानत नियम है जबकि जेल अपवाद। अपने 85 पेज के फैसले में कोर्ट ने कहा कि अमेरिका के कुछ सूबों के साथ यूके में इसे लेकर दिशानिर्देश दिए गए हैं।