दिल्ली

‘समीक्षा आदेश अलमारी में रखने के लिए नहीं’, जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट बैन पर ‘सुप्रीम’ टिप्पणी

जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट सेवाओं की बहाली मामले सेे जुड़े विशेष समिति के समीक्षा आदेश को प्रकाशित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है। मामले पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि समीक्षा आदेश अलमारी में रखने के लिए नहीं है।

नई दिल्ली

जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट सेवाओं की बहाली मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की गई। मामले से जुड़ी विशेष समिति की समीक्षा आदेशों पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि यह अलमारी में रखने के लिए नहीं हैं। कोर्ट ने सख्त लहजें में प्रशासन से उन्हें प्रकाशित करने को कहा है।

विशेष समिति के आदेशों को प्रकाशित करने की मांग
फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की गई, जिसमें जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट प्रतिबंधों पर केंद्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता वाली एक विशेष समिति द्वारा पारित समीक्षा आदेशों को प्रकाशित करने की मांग की गई थी। दो जजों की खंडपीठ ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि हमें समझ नहीं आ रहा है कि समीक्षा आदेश किस लिए हैं। कोर्ट ने कहा कि समीक्षा आदेश अलमारी में रखने के लिए नहीं हैं। नटराज ने कहा कि याचिकाकर्ता समिति के समीक्षा आदेश के प्रकाशन की मांग कर रहा है।

समिति के समीक्षा आदेशों को प्रकाशित करना जरूरी- कोर्ट
पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि हमारा विचार है कि समिति के विचार विमर्श को प्रकाशित करना आवश्यक नहीं है, लेकिन पारित समीक्षा आदेशों को प्रकाशित करना जरूरी है। कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज को निर्देश लेने और सुनवाई की अगली तारीख पर कोर्ट को अवगत कराने के लिए दो सप्ताह का समय दिया।

याचिकाकर्ता ने समीक्षा आदेशों को प्रकाशित करने की थी मांग
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील शादान फरासत ने सुनवाई के दौरान कहा था कि प्रशासन को अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ मामले में 2020 के फैसले के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट प्रतिबंधों पर समीक्षा आदेश और मूल आदेश प्रकाशित करना आवश्यक है।

क्या है मामला
सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई 2020 को जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट सेवाओं की बहाली की याचिका पर विचार करने के लिए केंद्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता में एक विशेष समिति के गठन का आदेश दिया था। जिमसमें कहा गया था कि राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवाधिकारों को संतुलित करने की आवश्यकता है। गौरतलब है कि 10 जनवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने अनुराधा भसीम बनाम भारत संघ के फैसले में कहा था कि बोलने की स्वतंत्रता औ इंटरनेट के जरिए व्यापार करने की स्वतंत्रता संविधान के तहत संरक्षित है। इसमें जम्मू-कश्मीर प्रशासन से प्रतिबंध आदेशों की तुरंत समीक्षा करने को कहा था।

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