केस में लगा दी 2025 की डेट, इस पर नाराज हो गया सुप्रीम कोर्ट, लगा दी इस हाईकोर्ट की क्लास

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के एक महिला के पुरुष साथी की ओर से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले से निपटने के तरीके पर जोरदार फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि जब एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में कैद में रखी गई महिला ने हाईकोर्ट के सामने साफ शब्दों में कहा था कि वह अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए दुबई वापस जाना चाहती थी, तो हाईकोर्ट को उसको तत्काल प्रभाव से मुक्त करने का आदेश देना चाहिए था.
नई दिल्ली.
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) के एक महिला के पुरुष साथी की ओर से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus Case) मामले से निपटने के तरीके पर जोरदार फटकार लगाई है. लड़की को कथित तौर पर उसके माता-पिता ने जबरन घर में बंद करके रखा था. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि इस मामले की सुनवाई को कई बार स्थगित करके हाईकोर्ट ने महिला की अवैध कैद को लंबे समय तक बढ़ाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने मामले को जिस तरह से निपटाया है, उस पर हमें अपनी पीड़ा दर्ज करनी चाहिए.
‘बार एंड बेंच’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि जब एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में कैद में रखी गई महिला ने हाईकोर्ट के सामने साफ शब्दों में कहा था कि वह अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए दुबई वापस जाना चाहती थी, तो हाईकोर्ट को उसको तत्काल प्रभाव से मुक्त करने का आदेश देना चाहिए था. इस मामले की सुनवाई को 14 मौकों पर स्थगित करना और अब इसे अनिश्चित समय के लिए स्थगित करना और इसे साल 2025 में तारीख देना हाईकोर्ट की संवेदनशीलता की पूरी कमी को दिखाता है.
आजादी के मामले में एक दिन की देरी भी …
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट के ढुलमुल रवैये के कारण याचिका दायर करने वाले महिला के साथी और उसके माता-पिता को कैद में ली गई महिला की भलाई सुनिश्चित करने के लिए दुबई से बेंगलुरु की लगातार यात्राएं करने के लिए मजबूर होना पड़ा. सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि ‘जब किसी इंसान की आजादी का सवाल जुड़ा हो तो एक दिन की देरी भी मायने रखती है.’ सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दायर करने वाले पुरुष साथी की महिला को उसके माता-पिता की अवैध कैद से मुक्त कराने के लिए दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को मंजूरी देते हुए यह टिप्पणी की. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महिला के माता-पिता को उसे तुरंत रिहा करने का आदेश दिया.
हाईकोर्ट ने दी 10 अप्रैल, 2025 की तारीख
कोर्ट को बताया गया कि याचिकाकर्ता 9 साल से महिला के साथ रिश्ते में था और उन्होंने दुबई में एक साथ पढ़ाई की थी. बताया जाता है कि इस रिश्ते के बारे में पता चलने के बाद महिला के माता-पिता अपनी बेटी को जबरन बेंगलुरु वापस ले आए. महिला को विदेश में अपना करियर बनाने से रोकने के लिए उसके निजी सामान और दस्तावेज जब्त कर लिए गए. याचिका दायर करने वाले महिला के साथी ने पिछले साल कर्नाटक हाईकोर्ट के सामने बंदी प्रत्यक्षीकरण मामला दायर किया. 26 सितंबर, 2023 को हाईकोर्ट ने राज्य के अधिकारियों से स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा. बाद में मामले को 14 बार स्थगित किया गया और अंततः 10 अप्रैल, 2025 की तारीख दी गई. इसके चलते सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की गई.