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‘एनिमल’ की सफलता पर भड़के जावेद अख्तर? फिल्म को बताया ‘खतरनाक’, बोले- ‘समस्या यह नहीं कि…’

 हिंदी सिनेमा के मशहूर गीतकार जावेद अख्तर ने ‘अजंता एलोरा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ में उन फिल्मों और गानों पर बात की, जो काफी विवादों में रहे हैं और जिन्हें बनाते वक्त नैतिक मूल्यों की परवाह नहीं की गई. इसके बावजूद, वे फिल्में और गाने सुपरहिट हुए. जावेद अख्तर ने ‘एनिमल’ फिल्म के एक विवादित सीन का जिक्र करते हुए अपनी बात रखी.

नई दिल्ली: औरंगाबाद में ‘अजंता एलोरा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ में सिनेमा जगत की कई मशहूर शख्सियतें पहुंचीं. जावेद अख्तर ने भी फिल्म फेस्टिवल में शिरकत की. उन्होंने हिंदी सिनेमा में बन रही फिल्मों और गानों पर खुलकर बात की. उन्होंने रणबीर कपूर स्टारर फिल्म ‘एनिमल’ की सफलता को खतरनाक बताया और दर्शकों की जिम्मेदारी तय की.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, जावेद अख्तर ने संदीप रेड्डी वांगा की फिल्म ‘एनिमल’ का नाम लिए बगैर कहा, ‘अगर कोई ऐसी फिल्म है, जिसमें एक आदमी, औरत से उसके जूते चूमने को कहता है या महिला को थप्पड़ मारना सामान्य बात समझता है और वह फिल्म सुपरहिट हो जाती है, तो यह खतरनाक है.’ गीतकार ‘एनिमल’ में रणबीर कपूर और तृप्ति डिमरी के किरदारों के बीच एक सीन का जिक्र कर रहे थे. थप्पड़ मारने के सीन का जिक्र संदीप रेड्डी वांगा की पिछली फिल्म ‘कबीर सिंह’ से हो सकता है, जिसमें शाहिद कपूर और कियारा आडवाणी लीड रोल में हैं. बता दें कि ‘एनिमल’ ने बॉक्स ऑफिस से 890 करोड़ रुपये से ज्यादा कमा लिए हैं.

जावेद अख्तर ने पॉपुलर गाने का उदाहरण देकर समझाई बात
जावेद अख्तर आगे आनंद बख्शी के लिखे गाने ‘चोली के पीछे’ का जिक्र करते हैं, जो 90 के दौर में विवादों में रहने के बावजूद सुपरहिट रहा था. वे कहते हैं, ‘लोग हैरान है कि आज के गानों में इतनी समस्या क्यों है. उदाहरण के तौर पर ‘चोली के पीछे’ को ही लीजिए. समस्या यह नहीं कि इसे 7 आदमियों और 2 महिलाओं ने मिलकर बनाया था. समस्या यह थी कि इसे दर्शकों ने हिट बना दिया था. करोड़ों लोगों ने गाना पसंद किया और यह डराने वाली बात थी.’

जावेद अख्तर ने तय की दर्शकों की जिम्मेदारी
जावेद अख्तर ने इस तरह की फिल्मों और गानों को हिट बनाने के लिए दर्शकों को जिम्मेदार ठहराया. वे बोले, ‘आज फिल्ममेकर से ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी दर्शकों पर है. आप किस तरह की फिल्में देखते हैं, उसके लिए आप जिम्मेदार हैं. इससे तय होता है कि किस तरह की फिल्में बनेंगी. आप तय करें कि क्या बनना चाहिए और किसे खारिज करना चाहिए. हमारी फिल्मों में किस तरह के मूल्य और नैतिकता दिखाई जाएगी, वह आप तय करते हैं.’

 

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