नये संसद भवन में धुएं और बाहर नारों पर हमेशा की भांति मोदी जी की चुप्पी !

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भारत के नये संसद भवन में घुसकर धुंआ फैलाने और बाहर नारेबाजी करने के पीछे जो लोग हैं
बुधवार को भारत के नये संसद भवन में घुसकर धुंआ फैलाने और बाहर नारेबाजी करने के पीछे जो लोग हैं, उनमें से चार को पकड़ लिया गया है तथा कुछ की तलाश जारी है। इनसे पूछताछ से मुख्यत: जो बात सामने आई है, उससे प्रथम दृष्टया यही प्रतीत होता है कि उनका मकसद कोई बड़ी घटना को अंजाम देना नहीं था, वरन जनता की कतिपय समस्याओं की ओर देश की सबसे बड़ी पंचायत का ध्यान आकृष्ट करना था। यह तो माना जा सकता है कि युवाओं द्वारा अपनी बात को थोड़ा सनसनीखेज तरीके से ज़रूर उठाया गया है, लेकिन इसके बरक्स दो बातें सामने आई हैं-पहली तो यह कि करोड़ों रुपयों से निर्मित नये संसद भवन की सुरक्षा व्यवस्था अत्यंत लचर है; और दूसरी बात है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हमेशा की भांति चुप्पी। इस हादसे ने साबित कर दिया है कि देश के साथ बड़ी से बड़ी बात हो जाये, मोदी अपना मौन व्रत कतई नहीं तोड़ेंगे। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं वरन एक हद तक शर्मनाक भी है।
नया संसद भवन मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है। देश में जब कोविड-19 का भीषण प्रकोप था तथा देश को महामारी से लड़ने के लिये बड़ी धन राशि की आवश्यकता थी, तब इसका निर्माण किया गया था। मोदी खुद इसकी प्रगति देखने आते रहते थे। उस समय इस बात का यह कहकर विरोध हुआ था कि पुराने संसद भवन के रहते, वह भी ठीक-ठाक हालत में होने के बावजूद इस नये भवन को बनवाना एक बड़ी फिजूलखर्ची है। बाद में यह बात साफ होती चली गई कि इसका उद्देश्य पुराने भवन के साथ नत्थी देश के स्वतंत्रता संग्राम की विरासत को मिटाना है।
खासकर, उस भवन पर पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की जो सुखद छांव बनी हुई थी, वह मोदी को उनकी विचारधारा के कारण कड़ी धूप सी प्रतीत होती थी। इसी क्रम में उन्होंने नेहरू के शासकीय निवास तीन मूर्ति भवन को भी प्रधानमंत्रियों के संग्रहालय में बदलवा दिया। नेहरू विरोध के अलावा मोदी नये भवन का 2024 के लोकसभा चुनाव के लिये भी इस्तेमाल करना चाहते हैं। बहरहाल, इस भवन के बारे में दावा किया गया था कि इसकी सुरक्षा बड़ी पुख्ता है। विशेषकर 13 दिसम्बर, 2001 को पुराने भवन पर हुए आतंकी हमले के मद्देनज़र इसकी ज़रूरत भी थी।
इस भवन के उद्घाटन के अवसर पर बुलाये गये विशेष सत्र को छोड़ दें तो यही इसका नियमित सत्र (शीतकालीन) है, जो अब भी जारी है। पहले ही सत्र में, वह भी ठीक उसी दिन- 22 वर्षों के बाद इसकी सुरक्षा व्यवस्था की पोल कुछ निहत्थे युवाओं ने खोलकर रख दी। उनके कृत्य को कतई समर्थन नहीं मिल रहा है परन्तु इसमें कोई शक नहीं रह जाना चाहिये कि इस भवन की सजावट पर तो खूब ध्यान दिया गया है, लेकिन सुरक्षा की बुनियादी आवश्यकता पूरी तरह से नज़रंदाज़ की गई है। दो दशक पूर्व हुए हमले में तो जांबाज़ सुरक्षाकर्मियों ने आतंकवादियों को संसद भवन में घुसने तक नहीं दिया था। अबकी एक नहीं दो लोग दर्शक दीर्घा से सदन के बीचों-बीच कूद पड़ते हैं और बाकायदा एक से दूसरी बेंचों को फलांगने में भी सफल हो जाते हैं।
इनमें से एक युवक ने अपने जूते में छिपाकर लाये केन स्प्रे से पीला धुंआ भी फैलाया। यानी वे कोई हथियार भी ला सकते थे। वे अगर नहीं लाये तो इसका जवाब बाहर उनके द्वारा लगाये गये नारों में छिपा है। बताया जाता है कि उनके साथ दो लोग और थे परन्तु वे दर्शक दीर्घा से ही अफरा-तफरी का फायदा लेकर निकल गये। महत्वपूर्ण सदन के भीतर का धुंआ ही नहीं है वरन गिरफ्तारी के बाद उनके द्वारा लगाये गये नारे भी हैं, जो उनके उद्देश्य को बतलाता है। वे सामान्यजन हैं जो बेरोजगारी, मणिपुर, तानाशाही से सम्बन्धित नारे लगा रहे थे।
सवाल यह है कि इस घटना के लिये जिम्मेदार कौन है? इस कांड के ठीक एक दिन पहले केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह लगभग 75 साल पहले हुए देश के विभाजन और कश्मीर के मामले में नेहरू की गलतियां गिना रहे थे, जबकि सामने हुई घटना की जिम्मेदारी से वे बचते फिर रहे हैं। सिर्फ वे नहीं, मोदी भी। पूरी सरकार ही मुंह छिपा रही है। मोदीजी ने इस मामले पर अब तक कुछ नहीं कहा है। इसी तरह गृहमंत्री अमित शाह भी जवाबदेही निभाने में निराश कर रहे हैं। दिल्ली पुलिस उनके अधीन है और सुरक्षा का जिम्मा उनके ऊपर है। इस मामले पर जब विपक्ष के लोगों ने संसद में सवाल उठाए तो उनके जवाब देने की जगह सांसदों का मुंह जबरदस्ती बंद कराया गया है। राज्यसभा में गुरुवार को विपक्ष ने 28 नोटिस इस मुद्दे पर बहस के लिए दिए थे। इसी तरह लोकसभा में भी एक दर्जन से ज्यादा इंडिया के सांसदों ने नोटिस देकर इस पर चर्चा की मांग की थी। लेकिन दोनों सदनों में किसी भी नोटिस पर सरकार ने चर्चा नहीं होने दी। और सवाल पूछने के जुर्म में 15 सांसदों को निलंबित कर दिया।
उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले तेलंगाना में मोदी की प्रचार सभा में एक लड़की टावर पर चढ़ गई थी। वह भी बेरोजगारी से त्रस्त थी। रिश्तेदार बतलाते हैं कि वे देश की मूलभूत समस्याओं से व्यथित थे। नीलम ने तो कई परीक्षाएं पास की हैं पर उसके पास नौकरी नहीं है। रोजगार हो या तानाशाही का आरोप- जवाब तो मोदी को ही देने हैं लेकिन उनके पास आत्म प्रशंसा, विपक्ष को कोसने और खुद को निरीह दर्शाने के लिये कई बातें हैं पर इन बुनियादी बातों का उनके पास कोई जवाब नहीं है। यह नया संसद भवन देशवासियों के पैसों से बना है। इसलिये देश के सुरक्षित हाथों में होने का दिन-रात दावा करने वाले पीएम और भाजपा को बतलाना होगा कि इस गम्भीर चूक का दोषी कौन हैं तथा उन्हें क्या सज़ा दी जायेगी। बाहर बेरोजगारी और तानाशाही के खिलाफ जो नारे लग रहे थे, उनके जवाब भी मोदी को ही देने हैं। वैसे उनसे इसलिये उम्मीद नहीं की जा सकती क्योंकि पिछले 10 वर्षों से वे मौन ही तो हैं।