उत्तरप्रदेश

राम के लिये सत्ता का त्याग करने वाले विरले नेता थे कल्याण सिंह

यूं तो अयोध्या में रामजन्मभूमि आंदोलन में भाग लेने वाले कई नेताओं ने राजनीति के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनायी मगर बाबरी विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाने वाले कल्याण सिंह का नाम इस आंदोलन के साथ अमर हो गया।

‘बाबूजी’ के नाम से राजनीतिक गलियारों में पहचाने जाने वाले कल्याण ने छह दिसम्बर 1992 को अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद न सिर्फ सत्ता की बलि दी बल्कि इस मामले में सजा पाने वाले वह एकमात्र शख्सियत थे। कल्याण सिंह का जन्म 6 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ जिले की अतरौली तहसील के मढ़ली गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम तेजपाल लोधी और माता का नाम श्रीमती सीता देवी था। उनका विवाह रामवती से हुआ। श्री सिंह के पुत्र राजवीर सिंह एटा से भाजपा सांसद है।

वर्ष 1967 में, वह पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा सदस्य के लिए चुने गए और वर्ष 1980 तक सदस्य रहे। अतरौली विधानसभा का प्रतिनिधित्व करने वाले कल्याण 1991 और 1997 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री नियुक्त किये गये थे। जून 1991 में यूपी के मुख्यमंत्री बनाये गये श्री सिंह के कार्यकाल के दौरान छह दिसम्बर 1992 को अयोध्या में कारसेवकों में बाबरी ढांचा गिरा दिया जिसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुये उन्होने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था। उन्होने कहा था कि ये सरकार राम मंदिर के नाम पर बनी थी और उसका मकसद पूरा हुआ। ऐसे में सरकार राममंदिर के नाम पर कुर्बान हुई। मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाने के बाद कल्याण सिंह को जेल भी जाना पड़ था।

1993 के विधानसभा चुनाव में वह अतरौली के अलावा कासगंज से निर्वाचित हुये। इस चुनाव में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी-बहुजन समाज पार्टी ने गठबन्धन सरकार बनायी जबकि विधान सभा में कल्याण नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में नजर आये।

श्री सिंह सितम्बर 1997 से नवम्बर 1999 के बीच एक बार फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हालांकि 21 अक्टूबर 1997 को बसपा ने कल्याण सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया। दिसम्बर 1999 में बीजेपी के साथ मतभेदों के कारण कल्याण सिंह ने भाजपा छोड़ दी और‘राष्ट्रीय क्रांति पार्टी’का गठन किया। वर्ष 2004 में, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के अनुरोध पर वह भाजपा में वापस आ गए। वर्ष 2004 के आम चुनावों में वह बुलंदशहर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद नियुक्त किए गए। वर्ष 2009 में वह भाजपा से एक बार फिर अलग हो गये और निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर एटा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ और जीत दर्ज की।

भाजपा के वरिष्ठ नेता को चार सितम्बर 2014 राजस्थान का राज्यपाल नियुक्त किया गया जबकि 28 जनवरी 2015 में उन्हे हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया।

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