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अब नहीं चलेगा बहाना, खर्च करना होगी योजनाओं की राशि, केंद्र सरकार अब बिहार को नए सिस्टम से देगी पैसा

पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर प्रारंभिक दौर में 6 विभागों की योजनाओं का पैसा नए सिस्टम से केंद्र सरकार भेजेगा. इसके बाद दूसरे मंत्रालयों की योजनाओं का भी आवंटन इसी तरीके से किया जाना तय किया गया है. नए सिस्टम को चालू करने का काम बड़े पैमाने पर चल रहा है.

पटना.

केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए भारत सरकार से आने वाले पैसे का उपयोग दूसरे काम में ना किया जा सके और पैसा बैंक में ही न पड़ा रह जाए. इसके लिए केंद्र सरकार राज्यों को केंद्रीय मद का पैसा भेजने का तरीका अब से बदलने जा रही है. अगले साल जनवरी से भारतीय रिजर्व बैंक के एक कुबेर पोर्टल पर स्पर्श नाम की तकनीक से एक ट्रिक से सारा पैसा राज्य सरकार के खाते में पहुंच जाएगा. पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर प्रारंभिक दौर में 6 विभागों की योजनाओं का पैसा नए सिस्टम से केंद्र सरकार भेजेगा. इसके बाद दूसरे मंत्रालयों की योजनाओं का भी आवंटन इसी तरीके से किया जाना तय किया गया है. नए सिस्टम को चालू करने का काम बड़े पैमाने पर चल रहा है. इसके लिए दिल्ली से एक टीम बिहार की राजधानी पटना भी पहुंची थी और संबंधित अधिकारियों के साथ एक ट्रेनिंग और वर्कशॉप भी किया गया था.

अभी केंद्र प्रायोजित योजनाओं का पैसा राज्य सरकार के सिंगल नोडल खाते में आता है जिसमें राज्य सरकार भी अपना अंशदान डालती है और फिर काम पूरा होता है. इस प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों की माने तो राज्य सरकार की समेकित वित्तीय प्रबंधन प्रणाली को सरकार के लोक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली से जोड़ने का काम एक महीने में पूरा हो जाएगा. यानी इंटीग्रेटेड फाइनेंशियल मैनेजमेंट सिस्टम को पब्लिक फाइनेंसियल मैनेजमेंट सिस्टम से जोड़ दिया जाएगा. इस काम से जुड़े लोगों को उम्मीद बंधी है कि जनवरी से नए सिस्टम से राज्यों को पैसा मिलेगा.

नए तरीके से जनवरी में जो मंत्रालय जोड़ा जाना है उसमें शिक्षा, स्वास्थ्य पशुपालन, ग्रामीण विकास, मत्स्य पालन, समाज कल्याण और वन पर्यावरण जलवायु परिवर्तन विभाग शामिल है. आधिकारिक सूत्रों की माने तो स्पर्श सिस्टम के तहत राज्य सरकार के विभागों को पहले केंद्र की योजनाओं में केंद्रीय अंशदान के लिए डिमांड भेजना होगा. डिमांड भेजने के बाद केंद्र सरकार केंद्र प्रायोजित योजना में अपने हिस्से का पैसा आरबीआई के माध्यम से देगी. इस सिस्टम से हर केंद्र प्रायोजित योजना के लिए अलग खाता खोला जाएगा. इसमें केंद्र और राज्य दोनों को अपना-अपना हिस्सा देना होगा.

इस सिस्टम में केंद्र और राज्य दोनों के अधिकारियों को हर वक्त यह देखना होगा कि किस स्कीम में किसने कितना पैसा डाला है और उसे सही तरीके से खर्च किया जा रहा है या नहीं किया जा रहा है. रियल टाइम निगरानी से योजनाओं के पैसे को किसी और काम में लगाना या खाते में ही छोड़ देना सामने आ जाएगा. केंद्र की तैयारी है कि पैसा जिस काम के लिए दिया गया हो इस पर खर्च हो और हर हाल में उसे पैसे को खर्च कर दिया जाए. इस तरह की शिकायतें बराबर आती रही हैं की योजना का पैसा रहते हुए भी काम नहीं हुआ केंद्र अब इस चीज को खत्म करने पर आमादा दिखता है.

केंद्र से पैसा आने का नया सिस्टम शुरू हो जाने के बाद नीतीश कुमार की सरकार पर दबाव बढ़ेगा कि वह अपने हिस्से का पैसा समय पर जमा करें और योजनाओं को भी पूरा करें. राज्य सरकार कुछ साल से केंद्र की प्रायोजित योजनाओं में केंद्र की हिस्सेदारी 75% से घटकर 60% कर दिए जाने से को लेकर नाराजगी दिखाती रही है. बिहार सरकार लगातार इस मुद्दे को उठा रही है. राज्य सरकार का मानना है कि केंद्र प्रायोजित योजना लागू करने में राज्य सरकार पर बोझ बढ़ रहा है जो कई योजनाओं में 40 फ़ीसदी की हिस्सेदारी तक पहुंच गया है. राज्य सरकार का तर्क है कि अपनी योजनाओं के लिए सरकार का पैसा घट रहा है.

 

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