भुखमरी की समस्या पर मोदी सरकार जरा सिभी गंभीर नहीं ?

एक ओर तो भारत पिछले दो वर्षों की तरह इस साल भी विश्व हंगर इंडेक्स में लगातार खराब प्रदर्शन कर रहा है, तो वहीं दूसरी ओर अपना प्रदर्शन सुधारने का भरोसा दिलाने या इस बाबत देशवासियों से राय-मशविरा लेने की बजाय उसे केन्द्र सरकार द्वारा खारिज ही किया जा रहा है।
एक ओर तो भारत पिछले दो वर्षों की तरह इस साल भी विश्व हंगर इंडेक्स में लगातार खराब प्रदर्शन कर रहा है, तो वहीं दूसरी ओर अपना प्रदर्शन सुधारने का भरोसा दिलाने या इस बाबत देशवासियों से राय-मशविरा लेने की बजाय उसे केन्द्र सरकार द्वारा खारिज ही किया जा रहा है। और तो और, उसका मज़ाक तक जिम्मेदार मंत्री की ओर से उड़ाया जाता है जो यह बतलाता है कि सरकार इस मुद्दे को लेकर गम्भीर नहीं है और न ही उसे जनता की कोई चिंता है। केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने इसे लेकर जो बयान दिया है वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण एवं आपत्तिजनक है जिसकी कांग्रेस ने कटु आलोचना की है। जो हो, केन्द्र को चाहिये कि वह भुखमरी की समस्या से निपटने के ठोस उपाय करे।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में आई रिपोर्ट में 125 देशों की सूची में भारत को 111वें नंबर पर रखा गया है। पिछले साल वह 107वें नंबर पर था। साफ है कि भारत में भुखमरी की समस्या गंभीर होती जा रही है। पाकिस्तान 102वेें, बांग्लादेश 81वें, नेपाल 69वें और श्रीलंका 60वें स्थान पर है। इस प्रकार देखें तो भारत के सभी पड़ोसी देशों ने उससे बेहतर प्रदर्शन किया है। यह लगातार तीसरा साल है जब भारत की हंगर इंडेक्स रैंकिंग में गिरावट दर्ज की गई है। इससे पहले 2022 में भारत को 107वां स्थान दिया गया था। इस वर्ष भारत को 111वां रैंक मिला । एशिया में केवल अफगानिस्तान भारत से पीछे है, अन्य पड़ोसी देशों पाकिस्तान को (99वां), बांग्लादेश को (84वां), नेपाल (81वां) और श्रीलंका (64वां) का प्रदर्शन भारत से बेहतर था।
इस गिरावट से साफ जाहिर है कि भारत का प्रदर्शन सतत खराब हो रहा है क्योंकि उसके पास देशवासियों को भुखमरी से निज़ात दिलाने की न तो इच्छा शक्ति है और न ही उसके पास वह काबिलियत है।
अधिक आपत्तिजनक एवं शर्मनाक तो यह है कि भारत को जीएचआई में 125 देशों की सूची में इतने निचले पायदान पर ऐसे वक्त में रखा गया है जब वह दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने का दावा करता है। केन्द्र सरकार और विशेष कर प्रधानमंत्री भारत की तरक्की एवं खुशहाली के बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं जिसकी कलई हंगर इंडेक्स की ताजा रिपोर्ट ने फिर से उतारकर रख दी है। हालांकि इस रिपोर्ट के आने के बाद भारत सरकार ने भी इसे खारिज किया था। स्मृति ईरानी शुक्रवार को हैदराबाद में फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) के एक कार्यक्रम में बोल रहीं थीं जिसके दौरान उन्होंने कहा कि ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स जैसे सूचकांक वास्तविक रूप से भारत की स्थिति का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।’ आगे वे कहती हैं कि ‘और लोगों का मानना है कि यह सब बकवास है।
ईरानी का दावा था कि ‘कई लोगों ने उनसे कहा है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स बेतुका है। वे उस इंडेक्स को कैसे बनाते हैं?’ इसके जवाब में वे खुद बतलाती हैं कि ‘140 करोड़ के देश में तीन हजार लोगों के पास फोन आते हैं और उनसे पूछा जाता है ‘क्या आप भूखे हैं?’ उन्होंने कहा कि ‘जीएचआई के मुताबिक भारत से बेहतर पाकिस्तान कर रहा है। यह कैसे संभव है।’ ईरानी ने हंसकर यह भी कहा कि ‘वे सुबह चार बजे घर से इस कार्यक्रम के लिये निकली हैं। उन्हें अभी तक खाना न मिलने से वे भी भूखी हैं।’
इसे लेकर कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने स्मृति ईरानी को आड़े हाथों लिया है। उन्होंने मंत्री से पूछा है कि ‘क्या वे सचमुच ऐसा समझती हैं कि लोगों से फोन पर यह पूछकर हंगर इंडेक्स तय किया जाता है कि क्या आप भूखे हैं?’ सुप्रिया ने कहा है कि ‘आप भारत सरकार में मंत्री हैं यह आश्चर्य तो है ही, शर्मनाक भी। आप क्या सचमुच नहीं जानती कि किसी देश का हंगर इंडेक्स चार बातों से तय होता है, जिनमें अल्प पोषण, बच्चों में स्टंटिंग, बच्चों में वेस्टिंग एवं बाल मृत्यु दर शामिल है?’ उन्होंने कटाक्ष किया कि ‘आप एक सशक्त व धनाढ्य महिला है, भारत सरकार में मंत्री हैं। आप जिन हवाई जहाजों में सुबह-शाम यात्राएं करती हैं और जिस भी शहरों में जा रही हैं वहां आपको स्वादिष्ट और पर्याप्त भोजन मिलता है। व्यस्तता में न खाना और पर्याप्त खाना न मिलने में अंतर है। कृपया भूख का मज़ाक न उड़ाएं।’
स्मृति के बयान से साफ जाहिर होता है कि मोदी सरकार का रवैया देश की मूलभूत समस्याओं को लेकर बेहद चलताऊ है जिसका प्रदर्शन वह पहले भी कर चुकी है। भारत की सभी समस्याओं और विभिन्न क्षेत्रों में उसकी स्थिति को लेकर जब भी कोई वैश्विक रिपोर्ट सामने आती है, भारत सरकार के प्रवक्ता हों या मंत्री अथवा स्वयं प्रधानमंत्री, उसे सिरे से खारिज करते हैं। उसे कभी त्रुटिपूर्ण तो कभी दूसरे देशों का भारत के खिलाफ षडयंत्र बतलाते हैं। प्रेस स्वतंत्रता हो या धार्मिक आजादी अथवा फिर रोजगार- ज्यादातर मामलों में यही देखा गया है कि पूरी सरकार उसे गलत साबित करती है। मोदी सरकार अपना दूसरा कार्यकाल लगभग पूरा करने जा रही है परन्तु अब तक उसे यह बात समझ में नहीं आई है कि वैश्विक एजेंसियां न तो ऐसे किसी के खिलाफ षडयंत्र करती हैं और न ही गलत स्थिति को पेश करती हैं। इसके अध्ययन की वैज्ञानिक पद्धतियां होती हैं और उनका आधार भी वे आंकड़े एवं तथ्य ही होते हैं जो स्वयं सरकार तैयार करती है।