न्यूज़क्लिक मामले में यूएपीए की धाराएं लगाने पर भारतीय मीडिया जगत में हलचल है.

एक वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न छपने की शर्त पर कहा, “यूएपीए जैसे कठोर क़ानून होने ही नहीं चाहिए थे. ये ऐसे क़ानून थे जिनका इस्तेमाल हर सरकार ने किया है और कुछ सरकारों ने इनका इस्तेमाल दूसरों की तुलना में ज़यादा किया है. आपको अपने ही देश में अपने नागरिकों के ख़िलाफ़ इतने सारे कानूनों की ज़रुरत क्यों है? आतंकवादियों, जबरन वसूली करने वालों, हत्यारों, या राज्य के दुश्मनों से निपटने के लिए हमारे पास देश में पर्याप्त क़ानून हैं. तो आपको कठोर क़ानून क्यों लाते रहना पड़ता है?”
कई पत्रकारों का कहना है कि जिस वक़्त यूएपीए क़ानून लाया गया था उस वक़्त सिविल सोसाइटी इसे लेकर चिंतित थी और पत्रकार इसके ख़िलाफ़ लिख रहे थे.
“हम जानते थे कि इन क़ानूनों का इस्तेमाल निर्दोषों के ख़िलाफ़ किया जा सकता है. इन क़ानूनों का इस्तेमाल अक्सर आतंकवादियों पर नहीं बल्कि आम लोगों पर किया जाता है क्योंकि आतंकवादियों से निपटने के लिए पहले से ही पर्याप्त क़ानून मौजूद हैं. इन क़ानूनों का इस्तेमाल सरकारें हमेशा अपने ही लोगों के ख़िलाफ़ करती हैं.”
एक वरिष्ठ पत्रकार के मुताबिक़, “सभी सरकारें संदेशवाहक को नियंत्रित करना पसंद करती हैं. कुछ इसे अधिक क्रूरता के साथ करते हैं, कुछ कम क्रूरता से. लेकिन कोई भी सरकार आलोचना या स्वतंत्र मीडिया को पसंद नहीं करती, भले ही वे खुद को लोकतंत्र कहती हो. मीडिया का गला घोंट दिया गया है और वह खुद का गला घोंटने की इजाज़त दे रही है. दोनों ही बातें हैं. अगर हम नहीं उठे और हम खड़े नहीं हुए तो ये और भी बदतर हो जायेगा. चाहे सत्ता में कोई भी हो, यह बदतर होता जाएगा.”
वरिष्ठ पत्रकार ज्योति मल्होत्रा कहती हैं कि अगर पत्रकार ग़लत हैं और अगर सरकार को लगता है कि उन्होंने कोई खबर ठीक से नहीं की तो सरकार को उस ख़बर का खंडन करना चाहिए. “लेकिन आतंकवाद विरोधी क़ानून के तहत पत्रकारों को बंद करना सरासर गलत है.”
वो कहती हैं, “मोदी सरकार पत्रकारों को गिरफ़्तार करना और डरना चाहती है. और हम ये पूछना चाहते हैं कि क्या वजह है कि आप पत्रकारों को आतंकवाद-विरोधी क़ानून के तहत बंद कर रहे हैं. क्या भारत में पत्रकार अब आतंकवादी बन गए हैं? और अगर सरकार हमें आतंकवादी समझती है तो हमें ये बताये कि हमने क्या ऐसा लिखा है जिससे आपको लगता है कि हम आतंकवादी बन गए हैं.”
ज्योति मल्होत्रा के मुताबिक़ प्रेस के साथ इस तरह का सुलूक नहीं किया जा सकता.
वे कहती हैं, “एक तरफ तो आप इमरजेंसी की बात करके प्रेस की आज़ादी के लिए हमेशा खड़े रहने की बात करते हैं, दूसरी तरफ आप इस तरह की गिरफ्तारियां करते हैं.”
वो कहती हैं कि संविधान में जो बुनियादी मौलिक अधिकार हैं उनमें से एक मौलिक अधिकार अभिव्यक्ति की आज़ादी है और भारत के नागरिकों को पत्रकारों के साथ जुड़ जाना चाहिए. अपनी आवाज़ उठानी चाहिए और कहना चाहिए कि ये जो हो रहा है वो ग़लत हो रहा है.

‘मीडिया पर लगाम लगाने की कोशिश’
ख़बरों के मुताबिक न्यूज़क्लिक से जुड़े कुल 46 लोगों से दिल्ली-एनसीआर और मुंबई में 50 से अधिक जगहों पर पूछताछ की गई और उनके डिजिटल उपकरणों को ज़ब्त कर लिए गए. न्यूज़क्लिक के दिल्ली स्थित कार्यालय को भी सील कर दिया गया है.
ये कहा जा रहा है कि मंगलवार को की गई पुलिस कार्रवाई 17 अगस्त को ईडी के इनपुट के आधार पर दर्ज की गई एक एफआईआर पर आधारित थी जिसमें न्यूज़क्लिक पर अमेरिका के रास्ते चीन से अवैध धन हासिल करने का आरोप लगाया गया था.
न्यूज़क्लिक पर हुई पुलिस की कार्रवाई पर भारत के मीडिया जगत से कड़ी प्रतिक्रियाएं आई हैं.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने एक बयान जारी कर चिंता जताई और कहा कि “ये छापे मीडिया पर लगाम लगाने की एक और कोशिश है”.
गिल्ड ने कहा, “हालाँकि हम मानते हैं कि अगर वास्तविक अपराध हुए हैं तो क़ानून को अपना काम करना चाहिए लेकिन उचित प्रक्रिया का पालन करना होगा. विशिष्ट अपराधों की जांच में कठोर क़ानूनों की छाया के तहत डराने-धमकाने का माहौल नहीं बनना चाहिए, न ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति और आलोचनात्मक आवाज़ों को उठाने पर रोक लगनी चाहिए.”
एडिटर्स गिल्ड ने ये भी कहा कि “हम सरकार को एक सक्रिय लोकतंत्र में स्वतंत्र मीडिया के महत्व की याद दिलाते हैं, और यह सुनिश्चित करने का आग्रह करते हैं कि चौथे स्तंभ का सम्मान, पोषण और सुरक्षा की जाए”.