सजायाफ्ता नेताओं के आजीवन चुनाव न लड़ पाने की याचिका, जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

एमिकस क्यूरी विजय हंसारिया ने कहा कि इस याचिका में दो भाग हैं. पहला भाग एमपी/एम एल ए के खिलाफ दाखिल मामलों मे जल्द ट्रायल पूरा करने की मांग है, जिसपर फैसला 11 सितंबर को इस कोर्ट ने सुरक्षित किया हुआ है. दूसरा मामला है जिसमें गंभीर मामलों मे सजा होने पर एमपी/एमएलए को आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने की मांग का मामला है.
नई दिल्ली.
आपराधिक मामलों में सजा प्राप्त नेताओं के आजीवन चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग को फिलहाल टाल दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सजायाफ्ता नेताओं को आजीवन चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर वह अलग से सुनवाई करेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने यह बात उस याचिका पर कही जिसमें एमपी एमएलए के खिलाफ दाखिल मामलों की जल्द सुनवाई की मांग की गई थी. एमिकस क्यूरी विजय हंसारिया ने कहा कि इस याचिका में दो भाग हैं. पहला भाग एमपी/एम एल ए के खिलाफ दाखिल मामलों मे जल्द ट्रायल पूरा करने की मांग है, जिसपर फैसला 11 सितंबर को इस कोर्ट ने सुरक्षित किया हुआ है. दूसरा मामला है जिसमें गंभीर मामलों मे सजा होने पर एमपी/एमएलए को आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने की मांग का मामला है.
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई रिपोर्ट
एमिकस क्यूरी विजय हंसारिया ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट दाखिल की है. एमिकस क्यूरी ने रिपोर्ट में इस बात का समर्थन करते हुए कहा कि अगर कोई नेता दोषी है तो उसके चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाया जाए. रिपोर्ट में कहा गया है कि दोषी नेताओं पर 6 साल के बैन के बजाए आजीवन प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए.
क्या कहा गया याचिका में
एडवोकेट अश्वनी उपाध्याय ने चीफ जस्टिस (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच में याचिका दायर की है. उन्होंने जन प्रतिनिधि कानून की धारा 8 को चुनौती दी है. इसमें कहा गया है कि 2 साल या उससे अधिक की सजा पाने वाले नेताओं को गलत तरीके से रियायत मिल रही है. आपराधिक मामलों में सजा पाने वाले नेता इस धारा के तहत 6 साल बाद चुनाव लड़ने के योग्य हो जाते हैं. इस प्रावधान को ही असंवैधानिक करार दिया जाना चाहिए.