जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि विधवा को कोर्ट में नहीं घसीटा जाना चाहिए था। पीठ ने अपने आदेश में कहा, हमारे विचार में, इस तरह के मामले में, प्रतिवादी (विधवा) को इस अदालत में नहीं घसीटा जाना चाहिए था।
नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी गश्त के दौरान बलिदान हुए सैनिक की पत्नी को पेंशन देने के आदेश के खिलाफ अपील दायर करने के लिए केंद्र पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया। सशस्त्र बल न्यायाधिकरण ने उदारीकृत पेंशन देने का आदेश दिया था।
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि विधवा को कोर्ट में नहीं घसीटा जाना चाहिए था। पीठ ने अपने आदेश में कहा, हमारे विचार में, इस तरह के मामले में, प्रतिवादी (विधवा) को इस अदालत में नहीं घसीटा जाना चाहिए था। अपीलकर्ताओं के निर्णय लेने वाले प्राधिकारी को एक बलिदान सैनिक (नायक इंद्रजीत सिंह) की विधवा के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए थी, जिसकी युद्ध में जान चली गई थी। इसलिए, हम 50,000 रुपये का जुर्माना लगाते हैं जो प्रतिवादी को देय होगा।
केंद्र को मंगलवार से शुरू होने वाले दो महीनों के भीतर विधवा को इस राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया गया है। न्यायाधिकरण ने जनवरी 2013 से विधवा को उदारीकृत पारिवारिक पेंशन (एलएफपी) का भुगतान बकाये के साथ करने का आदेश दिया था। केंद्र ने इस आदेश को चुनौती दी थी, जिस पर पीठ सुनवाई कर रही थी।
क्या है मामला?
यह मामला नायक इंद्रजीत सिंह से संबंधित है, जिन्हें जनवरी 2013 में खराब मौसम की स्थिति में गश्त के दौरान दिल का दौरा पड़ा था। उनकी मृत्यु को शुरू में युद्ध दुर्घटना के रूप में वर्गीकृत किया गया था, लेकिन बाद में इसे सैन्य सेवा के कारण शारीरिक दुर्घटना के रूप में वर्गीकृत किया गया।
सिंह की पत्नी को विशेष पारिवारिक पेंशन सहित सभी अन्य लाभ प्रदान किए गए, लेकिन जब उन्हें एलएफपी से वंचित किया गया, तो उन्होंने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के समक्ष याचिका दायर की। न्यायाधिकरण ने उनके आवेदन को स्वीकार कर लिया और एलएफपी तथा युद्ध में मारे गए सैनिकों के मामले में देय अनुग्रह राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया।
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