मोदी सरकार को केवल श्रेय चाहिये, जवाबदेही नहीं !

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर अवसर और परिघटना को अपने प्रचार तंत्र का हिस्सा बनाने में महारत हासिल कर चुके हैं
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर अवसर और परिघटना को अपने प्रचार तंत्र का हिस्सा बनाने में महारत हासिल कर चुके हैं। मौका कोई भी हो पर नया दस्तूर उन्हीं से शुरू होता है और उन्हीं पर खत्म भी। भारत के प्रत्येक हिस्से में जो कुछ हो रहा है, उसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ मोदी को जाता है- बशर्तें कि वह कार्य कामयाबी का हो। असफलता, अधूरे कार्य, प्रारम्भ ही न हुए हों ऐसे शासकीय कामों को लेकर उनका कोई दायित्व नहीं है और न ही जवाबदेही। ऐसे सारे मामलों पर मोदी का मौन अब उनकी कार्यप्रणाली का हिस्सा बन चुका है- मणिपुर से लेकर नूंह और जयपुर-मुंबई एक्सप्रेस में पहचान कर मुसलिमों को मारने तक। कुछ लोगों के लिये उनका हर काम अभी भी मास्टर स्ट्रोक बना हुआ है तो ज्यादातर ऊब चुके हैं। मोदी यह भी नहीं देखते कि जो काम वे कर रहे हैं वह उनके पद के स्तर एवं प्रतिष्ठा के अनुकूल है भी या नहीं, परन्तु मोदी जी हैं कि मानते ही नहीं…
सोमवार को फिर ऐसा ही उदाहरण देखने को मिला जब उनके हाथों नियुक्ति पत्रों का वितरण किया गया। खुशनसीब हैं वे 51 हजार लोग जिन्हें सीधे पीएम द्वारा काम पर रखा गया। केन्द्रीय आरक्षित पुलिस बल, सीमा सुरक्षा बल, असम राइफल्स, केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल व भारत तिब्बत सीमा पुलिस में भर्ती के ये नियुक्ति पत्र बांटे गये। मोदी पहले भी 75 हजार नियुक्ति पत्र बाकायदा समारोह आयोजित कर बांट चुके हैं। नियुक्ति पत्र बांटने से प्रचार मिलता है, श्रेय मिलता है। हालांकि अब तक नियुक्ति पत्र जारी करने का काम सम्बन्धित विभागों के अफसरों, लिपिकों और उन्हें नियुक्त हुए लोगों तक पहुंचाना डाकिये का काम हुआ करता था। नये दौर में नियुक्ति पत्र जारी करने का काम राष्ट्राध्यक्ष का हो गया है। सम्भवत: मोदी जी लोगों को यह एहसास दिलाना चाहते हैं कि उनके राज में रोजगार की कोई कमी नहीं है और थोक के भाव में लोग नियुक्त हो रहे हैं।
यह विडंबना ही है कि प्रधानमंत्री देश में रोजगार की वास्तविक स्थिति बतलाने के लिये तैयार नहीं हैं। न ही वे यह बतलाते हैं कि उन्होंने हर साल जो 2 करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा किया था, उसका क्या हुआ। इस वायदे के अनुसार तो अब तक 18 करोड़ लोगों के पास रोजगार होना चाहिये था, पर आलम यह है कि करोड़ों लोग बेरोजगार हैं। शिक्षण संस्थाओं से पढ़कर निकलने वाले युवा तो धक्के खा ही रहे हैं, कोविड-19 के कारण करोड़ों लोगों की नौकरियां ही चली गयीं। लाखों ने काम की तलाश ही बन्द कर दी है। उनकी सरकार बाकायदा संसद में बतलाती है कि देश में बेरोजगारी का आंकड़ा उसके पास नहीं है। केन्द्र की नीति और कार्यक्रम भी ऐसे हैं जिनसे रोजगार सृजित होने का सवाल ही नहीं है।
नोटबन्दी और जीएसटी ने छोटे, मध्यम व घरेलू उद्योगों की कमर तोड़ दी। ये सेक्टर सर्वाधिक रोजगार देने वाले रहे हैं। फिर, निजीकरण की ओर सरकार का ऐसा झुकाव है जिसमें नवीनतम तकनीकों तथा लागत घटाने के उद्देश्य से लोगों की छंटनी आम है। रेलवे, सेना समेत कई विभागों एवं संस्थानों में वर्षों से लाखों पद खाली पड़े हैं। अनेक शासकीय कम्पनियों में इसलिये जान-बूझकर भर्तियां नहीं की जा रही हैं ताकि वे घाटे में आ जाएं और उन्हें निजी हाथों को बेच दिया जाये। नियुक्ति पत्र बांटने वाले मोदी यह कभी नहीं बताते कि देश के युवाओं की बेरोजगारी खत्म करने के लिये उनके पास क्या योजना है। यह भी नहीं बतलाते कि घोषणाओं की बजाये परिणाम कब दिखेंगे।
मोदी की यही कार्य प्रणाली सर्वत्र दिखती है। 85 करोड़ लोगों को हर माह जो 5 किलो राशन मुफ्त में मिल रहा है उसके पैकेट पर मोदी की तस्वीरें तो लगी हैं, पर असल में उसका सम्बन्ध उनसे सिर्फ इतना ही है कि वे जतलाने चाहते हैं कि यह राशन जनता को उन्हीं की कृपा से मिला है। देश में भुखमरी की ऐसी स्थिति क्यों है और गरीबों के पेट भरने के लिये उनके पास कौन सी उपाय योजनाएं हैं- इससे उनका कोई लेना-देना नहीं है। मनरेगा जैसी कल्याणकारी योजनाओं की हंसी उड़ाने वाले मोदी मुफ्त राशन योजना का न तो औचित्य बता रहे हैं और न ही बता सकते हैं कि विश्व भुखमरी सूचकांक की खराब रैंकिंग से देश कैसे उबरेगा।
हाल ही में ग्रीस से लौटे मोदी लौटने के बाद सीधे बेंगलुरु स्थित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र (इसरो) गये जहां उन्होंने वैज्ञानिकों से मुलाकात कर बहुत भावनात्मक भाषण किया। वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत और समर्पण भाव का उल्लेख करते हुए उनका गला रूंध गया, आंसू छलक गये। यहां तक तो ठीक है पर उन्होंने यह नहीं बताया कि 23 अगस्त को चांद पर सफल लैंडिंग करने वाले चन्द्रयान-3 और सितम्बर के पहले सप्ताह में छोड़े जाने वाले आदित्य-1एल जैसे महत्वाकांक्षी योजनाओं के बजट में 32 फीसदी की कटौती क्यों की गयी और पिछले साल के मुकाबले केन्द्र को 13200 करोड़ रुपये घटाकर क्यों दिये गये। सोशल मीडिया पर यह जो चल रहा है कि वहां के कर्मचारियों व वैज्ञानिकों को कई महीनों से तनख्वाह नहीं मिली है, सच है या गलत- मोदी यह भी बताएं।
ऐसे ही, बार-बार विदेश जाने वाले मोदी का सरोकार वहां केवल अपनी व्यक्तिगत छवि चमकाना, कारोबारी मित्रों को ठेके दिलाना तथा हथियार या टेक्नालॉजी खरीदना रह गया है। उन मुल्कों में वे प्रायोजित भीड़ से मिलते हैं और इवेंट करते हैं। यह सारा कुछ मोदी को प्रचार दिलाता है लेकिन संसदीय परम्परा के अनुरूप हर यात्रा से लौटकर राष्ट्रपति से मिलने का संवैधानिक कर्तव्य निभाना उन्हें आवश्यक नहीं जान पड़ता।