अंधेरी सुरंग में फंसा मणिपुर कैसे बाहर निकलेगा?
मणिपुर बीते तीन मई से जातीय हिंसा की ऐसी अंधेरी सुरंग में फंसा है, जिसका दूसरा छोर दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है. देश के अन्य हिस्सों के लोग भी यहां दो तबकों के बीच बड़े पैमाने पर हुई हिंसा को भुलाने लगे हैं.
मणिपुर में मैतेई और कुकी तबकों के बीच हिंसा में अब तक करीब 160 लोगों की मौत हो चुकी है और 50,000 से ज्यादा विस्थापित हो गए हैं. इसके अलावा करोड़ों की संपत्ति जलकर राख हो चुकी है.
मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह भले ही धीरे-धीरे परिस्थिति सामान्य होने का दावा करें, लेकिन जमीनी हकीकत इसके एकदम उलट है. अब भी विभिन्न इलाकों में रह-रह कर हिंसा भड़क उठती है. राज्य में भारी तादाद में सेना और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान तैनात हैं. मुख्यमंत्री अब उल्टे इस समस्या के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराने लगे हैं.
मुख्यमंत्री का दिल्ली दौरा
मई में शुरू हुई हिंसा के बाद मुख्यमंत्री बीरेन सिंह पहली बार अपने मंत्रिमंडल के कई सदस्यों के साथ दिल्ली के दौरे पर पहुंचे हैं. वहां उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की है और विस्थापितों के लिए नए आवास बनाने के लिए आर्थिक सहायता देने का अनुरोध किया है. राज्य के कुकी विधायकों ने पांच जिलों के लिए अलग मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक की मांग की है. कुकी समुदाय के 10 बीजेपी विधायक पहले ही कुकी लोगों के लिए अलग प्रशासन की मांग उठाते रहे हैं. उनकी दलील है कि अब राज्य में इन दोनों समुदायों का एक साथ रहना संभव नहीं है.
लेकिन मुख्यमंत्री का दावा है कि वह पर्वतीय जिलों के लिए अलग प्रशासन की मांग करने वाले कुकी विधायकों से मुलाकात कर चुके हैं और राज्य का कोई विभाजन नहीं होगा. बीरेन सिंह कहते हैं, “मैंने मैतेई संगठनों से बात की है और उनसे कहा है कि कुकी विधायकों के इंफाल घाटी के दौरे में बाधा नहीं पहुंचाई जानी चाहिए.”
यहां इस बात का जिक्र जरूरी है कि बीरेन सिंह खुद मैतेई हैं. राज्य के मैदानी इलाकों में बसे मैतेई समुदाय की आबादी करीब 53 प्रतिशत है. दूसरी ओर कुकी जनजाति के लोग दूसरी जनजातियों के साथ पर्वतीय इलाकों में रहते हैं. मुख्यमंत्री सफाई दे रहे हैं कि उनकी सरकार कुकी समुदाय के खिलाफ नहीं है. हालांकि असम राइफल्स की भूमिका पर भी सवाल उठते रहे हैं और राज्य पुलिस के साथ उसकी झड़प के वीडियो वायरल होने के बाद कुछ जांच चौकियों से असम राइफल्स के जवानों को हटा दिया गया है.
कैसे शुरू हुई हिंसा
राज्य में हिंसा, आदिवासियों के संगठन की ओर से आयोजित रैली पर हमले से शुरू हुई थी. उससे कुछ दिन पहले मणिपुर हाईकोर्ट ने सरकार से मैतेई तबके के लोगों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने को कहा था. दरअसल, मैतेई तबके के लोग मौजूदा कानून के तहत पर्वतीय इलाकों में जमीन नहीं खरीद सकते. इसलिए वे लंबे समय से अनुसूचित जनजाति का दर्जा मांग रहे हैं.
दूसरी ओर, कुकी समुदाय को आशंका है कि ऐसा होने से पर्वतीय इलाकों में उनकी जमीन छिन जाएगी और मैदानी इलाकों की तरह वहां भी मैतेई तबके का बोलबाला हो जाएगा.
हालांकि उस रैली से पहले भी राज्य के विभिन्न इलाकों में छिटपुट हिंसा और हथियार लूटने की घटनाएं होती रही हैं. लेकिन खुफिया एजेंसियां इस बारे में पूर्वानुमान नहीं लगा सकी थीं. हिंसाशुरू होने के बाद केंद्र ने रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी कुलदीप सिंह को राज्य का सुरक्षा सलाहकार बना कर इंफाल भेजा. पुलिस महानिदेशक के तौर पर भी बाहर से राजीव सिंह को भेजा गया. लेकिन इन दोनों अफसरों की तैनाती और बड़े पैमाने पर केंद्रीय बल को सड़कों पर उतारने के बावजूद हिंसा थमने की बजाय बढ़ती रही.
घर लौटने का इंतजार
अब हालत यह है कि इन दोनों तबकों के बीच सांप और नेवले जैसी दुश्मनी हो गई है. मैतेई बहुल इलाकों में एक भी कुकी नजर नहीं आता है. यही हालत कुकी बहुल इलाकों की है. इस हिंसा में जिनके घर जला दिए गए, ऐसे 50,000 से ज्यादा लोग विभिन्न इलाकों में बने राहत शिविरों में दिन काटते हुए अपने अनिश्चित भविष्य की ओर ताक रहे हैं. निकट भविष्य में उनके अपने घर लौटने की कोई उम्मीद नहीं है.
म्यांमार के सीमावर्ती शहर मोरे में रहने वाले ओ. सुनील सिंह अपने परिवार के साथ पांच मई से ही इंफाल के एक राहत शिविर में रह रहे हैं. वह बताते हैं, “कुकी उग्रवादियों ने हमारा सब कुछ लूटने के बाद घर में आग लगा दी. हम दो दिन जंगल के रास्ते पैदल चलते हुए किसी तरह जान बचाकर यहां तक पहुंचे हैं. अब पता नहीं आगे क्या होगा? फिलहाल कुछ भी नहीं सूझ रहा है.”
इन शिविरों में रहने वाले चाहे कुकी हों या फिर मैतेई, सबकी जुबान पर ऐसी दिल दहलाने वाली कहानियां हैं. इस हिंसा के दौरान महिलाओं के साथ शारीरिक अत्याचार की रौंगटे खड़े कर देने वाली घटनाएं भी धीरे-धीरे सामने आ रही हैं. दो युवतियों के ऐसे एक वायरल वीडियो की चर्चा पूरी दुनिया में हुई. अब सीबीआई इन मामलों की जांच कर रही हैं.
क्या पाटी जा सकेगी खाई
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि मणिपुर में मैतेई और कुकी तबकों के बीच दुश्मनी की खाई इतनी चौड़ी हो चुकी है कि निकट भविष्य में इसे पाटना असंभव नहीं, तो बेहद मुश्किल जरूर है. पर्यवेक्षक के. जीवन शर्मा कहते हैं, “केंद्र और राज्य सरकार की चुप्पी ने इस समस्या को और उलझा दिया है. शुरुआत से ही राज्य सरकार और पुलिस प्रशासन पर मैतेई तबके का पक्ष लेने के आरोप लगते रहे हैं. सरकार ने भी इस शंका को दूर करने की बजाय इस आग में घी डालने का ही काम किया.” वह कहते हैं कि राज्य में नफरत और हिंसा की चिंगारी भीतर ही भीतर सुलग रही है और अक्सर भड़क उठती है.
राज्य के विभिन्न इलाकों से लूटे गए हथियारों का एक तिहाई हिस्सा भी अभी बरामद नहीं हो सका है. दोनों समुदायों के तमाम संगठनों के हाथों में ऐसे आधुनिकतम हथियार रहने तक इस समस्या के खत्म होने का कोई आसार नहीं नजर आता.