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‘पीड़ित बच्चों की सुरक्षा और सम्मान लौटाए बिना न्याय खोखला’, कोर्ट ने कहा- मदद न मिलने से पीड़ितों में डर:सुप्रीम कोर्ट

एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन की एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा, पॉक्सो अधिनियम, 2020 में परिकल्पित ‘सहायक व्यक्ति’ की भूमिका एक प्रगतिशील कदम होने के बावजूद अधूरी है। इसे प्रभावी नहीं बनाया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चों के खिलाफ अपराधों में सिर्फ प्रारंभिक भय या आघात ही गहरा घाव नहीं है। बाद के दिनों में समर्थन और सहायता की कमी के कारण यह भय और बढ़ जाता है। पीठ ने कहा, न्याय का अनुमान तभी लगाया जा सकता है जब पीड़ितों को समाज में वापस लाया जाए, उन्हें सुरक्षित महसूस कराया जाए, उनका मूल्य और सम्मान बहाल किया जाए। इसके बिना न्याय एक खोखला मुहावरा है। एक भ्रम है।

शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्य सरकारों से पॉक्सो नियम 2020 का कड़ाई से कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए कहा है। यह नियम मामले की जांच, ट्रायल और पुनर्वास के दौरान पीड़ित बच्चों की कठिनाइयों को कम करने के लिए सहायक व्यक्तियों की नियुक्ति सहित हर जरूरी मदद की एक प्रभावी रूपरेखा की बात करता है। जस्टिस एस रवीन्द्र भट और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने कहा, ऐसे अपराधों में सच्चा न्याय सिर्फ अपराधी को पकड़ने और उसे न्याय के कटघरे में लाने या सजा से नहीं मिलता है, बल्कि जांच और ट्रायल के दौरान राज्य और उसकी सभी अथॉरिटी की तरफ से पीड़ित (या कमजोर गवाह) को समर्थन, देखभाल और दी गई सुरक्षा से प्राप्त होता है। राज्य और उसकी सभी अथॉरिटी को जांच और सुनवाई की पूरी प्रक्रिया के दौरान जितना संभव हो उतना दर्द रहित, कम कठिन अनुभव का आश्वासन देना चाहिए।

सहायक की भूमिका अहम पर इसे प्रभावी नहीं बनाया
एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन की एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा, पॉक्सो अधिनियम, 2020 में परिकल्पित ‘सहायक व्यक्ति’ की भूमिका एक प्रगतिशील कदम होने के बावजूद अधूरी है। इसे प्रभावी नहीं बनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के महिला एवं बाल कल्याण विभाग के प्रधान सचिव को कई निर्देश जारी किए। पीठ ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एमसीपीसीआर) को चार अक्टूबर, 2023 तक दिशा-निर्देश तैयार करने पर एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। पीठ छह अक्तूबर को सुनवाई करेगी।

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