Manipur: राज्य में लूटे गए करीब पांच हजार घातक हथियारों में से अभी तक केवल साढ़े 12 सौ हथियार ही बरामद हो सके हैं। इसका मतलब लोगों के पास करीब चार हजार हथियार मौजूद हैं। थौवाई कुकी गांव में हुए हमले में स्वचालित हथियारों का इस्तेमाल किया गया है।
मणिपुर में तीन मई से जारी हिंसा थमने का नाम ही नहीं ले रही है। लगभग 160 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है तो वहीं 60 हजार से अधिक लोगों ने दूसरे स्थानों पर शरण ली है। अभी तक यह संघर्ष मैतेई और कूकी समुदाय के लोगों के बीच में है। अब इसमें जबरन हैड हंटर यानी ‘नगाओं’ की एंट्री कराने की कोशिश हो रही है। सुरक्षा बलों के एक अधिकारी के मुताबिक, मणिपुर में नगा बाहुल्य क्षेत्रों के निकट ऐसी वारदात करने के प्रयास हुए हैं कि जिससे ‘नगा’ समुदाय भी थर्ड फ्रंट के तौर पर हिंसा में कूद पड़े। कुछ ऐसे प्रयास भी हो रहे हैं कि जिससे ‘कूकी और नगा’ समुदाय के बीच दूरी बढ़ जाए। एक दिन पहले ही उखरुल जिले के गांव थौवाई कुकी में तीन ग्राम रक्षकों को मार दिया गया। कुकी आदिवासियों का यह गांव, नगा जनजाति के लोगों के नियंत्रण वाले ‘तांगखुल’ से सटा है। इस हमले के पीछे जो साजिश बताई जा रही है वो यह है कि कूकी समुदाय के मन में यह सवाल आए कि ये हमला, नगा की तरफ से तो नहीं हुआ है।
मणिपुर में लूट के 1,250 हथियार बरामद हुए हैं
राज्य में लूटे गए करीब पांच हजार घातक हथियारों में से अभी तक केवल साढ़े 12 सौ हथियार ही बरामद हो सके हैं। इसका मतलब लोगों के पास करीब चार हजार हथियार मौजूद हैं। थौवाई कुकी गांव में हुए हमले में स्वचालित हथियारों का इस्तेमाल किया गया है। तीन अगस्त को भी बिश्नुपुर जिले के नरसेना में स्थित इंडिया रिजर्व बटालियन ‘आईआरबी’ 2 के हेडक्वार्टर से 500 उपद्रवियों ने 400 से अधिक घातक हथियार लूट लिए थे। उपद्रवियों ने 22000 से अधिक गोलियां भी लूट ली। इनमें एके राइफल, एक्स केलिबर राइफल, घातक राइफल, 5.56 एमएम इनसास राइफल, 5.56 एमएम इनसास एलएमजी, एसएलआर व एमपी-5 कारबाइन सहित दूसरे हथियार शामिल हैं। चुराचांदपुर में एक अनौपचारिक स्वतंत्रता दिवस परेड में लोगों ने अत्याधुनिक हथियारों का प्रदर्शन किया था। मणिपुर सरकार के सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह ने इस मामले में डीसी और एसपी से रिपोर्ट तलब की है। उन्होंने कहा, आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने कहा है कि जब तक लूटे गए छह हजार हथियार बरामद नहीं हो जाते, तब तक मणिपुर में शांति नहीं हो सकती है। उन हथियारों का इस्तेमाल राज्य में आम लोगों के खिलाफ किया जा रहा है।
‘नगा’ जनजाति के लोगों ने किया है प्रदर्शन…
मणिपुर में तामेंगलोंग, चंदेल, उखरुल और सेनापति जिले को नगा जनजाति के बाहुल्य वाला क्षेत्र माना जाता है। पिछले दिनों नगा समुदाय के हजारों लोगों ने प्रदर्शन किया है। दरअसल मणिपुर की मौजूदा परिस्थितियों में नगा समुदाय खुद को असुरक्षित समझने लगा है। जब से वहां पर हिंसा शुरु हुई है, उसी के साथ ही यह खबर फैलती जा रही है कि सरकार पहाड़ के कुछ क्षेत्र में कुकी समुदाय के लिए अलग प्रशासनिक व्यवस्था कर सकती है। इसी डर से नगा समुदाय के लोगों ने अपने प्रदर्शन के माध्यम से केंद्र सरकार तक यह संदेश पहुंचाया है कि मणिपुर के पहाड़ी जिलों के लिए जो भी अलग से प्रशासनिक व्यवस्था तैयार हो, मगर उसमें किसी भी तरह से ‘नगा’ समुदाय के हित प्रभावित नहीं होने चाहिएं। केंद्र के साथ नगा समुदाय की जो शांति प्रक्रिया चल रही है, उसकी भावना को ठेस न पहुंचे। दूसरी ओर, हिंसा के बाद कुकी इलाकों में अलग प्रशासनिक व्यवस्था की मांग तेज होती जा रही है। हिंसा के बाद वहां पर लोगों में ही नहीं, बल्कि सरकारी विभागों में भी समुदाय के आधार पर रेखा खिंच चुकी है। पुलिस और राजस्व सहित दूसरे महकमों के कर्मचारी आपस में बंट गए हैं। पहाड़ी जिले, जहां पर कूकी और नगा, इन समुदायों का प्रभाव है, वहां पर अब सरकार की पकड़ पहले जैसी नहीं रही।
क्यों है ‘नगा’ शांति वार्ता को नुकसान का खतरा
मणिपुर में ‘नगा’ समुदाय का केंद्र सरकार के साथ शांति वार्ता जारी है। अगर केंद्र सरकार, कूकी जनजाति के लोगों के लिए अलग से प्रशासनिक व्यवस्था करती है तो ‘नगा’ समुदाय को अपने हित कमजोर पड़ने का खतरा नजर आ रहा है। जैसे ही कूकी समुदाय ने अपने लिए अलग प्रशासनिक व्यवस्था लागू करने की मांग रखी, तभी नगा समुदाय के लोग भी सचेत हो गए। उन्होंने भी प्रदर्शन के जरिए दिल्ली तक अपनी बात पहुंचा दी। साथ ही यह संदेश भी दे दिया कि इस तरह की नई प्रशासनिक व्यवस्था में नगा समुदाय के हित प्रभावित हुए तो अंतिम चरण पर पहुंची नगा शांति वार्ता पटरी से उतर सकती है। मणिपुर में नगा समुदाय की सर्वोच्च संस्था, यूनाइटेड नगा काउंसिल (यूएनसी) एनजी लोरहो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे ज्ञापन में साफतौर पर यह बात कही है कि सरकार किसी भी समुदाय की मांगों पर विचार करते समय यह ध्यान रखे कि उसमें ‘नगा हित’ प्रभावित न हों। नगा बाहुल्य क्षेत्रों की भूमि के साथ कोई छेड़छाड़ न हो। अगस्त 2015 को भारत सरकार और अलगाववादी संगठन एनएससीएन-आईएम (नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड) के इसाक-मुइवा गुट के साथ हुए समझौते में जो बातें हैं, उनसे सरकार को दूर नहीं जाना चाहिए। इससे पहले जून में नगा समुदाय के विधायकों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया था।
एनएससीएन (आई-एम) ने की है ये मांग
अलगाववादी समूह एनएससीएन (आई-एम), ‘ग्रेटर नगालिम’ का समर्थन करता है। इन लोगों की मांग है कि नगा समुदाय के लिए अलग ध्वज और संविधान हो। उत्तर पूर्व में जिन स्थानों पर नगा बसे हैं, उनका एकीकरण कर ‘ग्रेटर नगालिम’ बनाया जाए। केंद्र सरकार, इस विचार को भी स्वीकार नहीं करेगी। वजह, इससे मणिपुर, असम और अरुणाचल प्रदेश की क्षेत्रीय अखंडता भंग होने का खतरा है। नगा और कूकी समुदाय के बीच पुराने समय से संघर्ष चलता आया है। अब इन समुदायों के बीच शांति है। मणिपुर की हिंसा में अब जानबूझकर ‘नगा’ समुदाय को कूकी और मैतेई के बीच में लाने का प्रयास हो रहा है। उकसावे की कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिसके जरिए नगा और कूकी समुदाय के लोगों के बीच हिंसा कराने की कोशिश की गई। पीएम मोदी को लिखे पत्र में दस कूकी विधायकों, जिनमें से सात विधायक भाजपा के हैं। इनका कहना है कि पांच पहाड़ी जिलों में अलग से प्रशासनिक व्यवस्था लागू हो। उनका अलग से मुख्य सचिव और डीजीपी हो। इन जिलों में चुराचांदपुर, कांगपोकपी, चंदेल, टेंग्नौपाल और फेरजॉल जिलें शामिल हैं।
उत्तर पूर्व में संघर्ष के नए फ्रंट खुलने की संभावना
मणिपुर की हिंसा के बीच नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालिम, ‘एनएससीएन’ ने जून में उत्तर पूर्व में संघर्ष के नए फ्रंट खुलने की संभावना जताई थी। किन्हीं कारणों से शांत दिखाई पड़ रहे ‘हैड हंटर’ नागाओं की चेतावनी बहुत डरावनी थी। उसमें कहा गया है कि मणिपुर में जानबूझकर हिंसा कराई जा रही है। इसे तुरंत रोकना होगा, अन्यथा पूरा उत्तर पूर्व इस आग से झुलस सकता है। भारत सरकार यह ध्यान रखे कि मणिपुर हिंसा के बीच दो पड़ोसी मुल्क म्यांमार और चीन सक्रिय हो रहे हैं। मणिपुर हिंसा के बाद अब वे समूह भी दोबारा से सक्रिय हो सकते हैं, जो भारत सरकार के साथ किन्हीं समझौतों में शामिल रहे हैं। उत्तर पूर्व में ‘नागा’ समुदाय के लिए हैड हंटर शब्द इस्तेमाल किया जाता रहा है। दशकों पहले जब नागा किसी लड़ाई या युद्ध का हिस्सा बनते तो इनके बारे में कहा जाता था कि ये लोग दुश्मन का सिर काटकर लाने के लिए जाने जाते हैं। ये दुश्मन पर धावा बोलकर उसका सिर काट देते थे। इनसे सब लोग डरते थे। अब मणिपुर में ‘कुकी और मैतेई’ के बीच चले संघर्ष में अब नागाओं ने आवाज उठानी शुरू कर दी है। ‘एनएससीएन’ द्वारा जारी अपने पत्र में ये चेतावनी दी गई है कि उत्तर पूर्व में चिंगारी दबी है, खत्म नहीं हुई है। मणिपुर में जल्द से जल्द हिंसा खत्म नहीं हुई तो यह आग असम, नागालैंड, मिजोरम सहित कई दूसरे हिस्सों तक पहुंचने में देर नहीं लगाएगी।
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